अंग्रेजों के जमाने से कायम है जौनपुर की इमरती का जलवा, जानिए कैसे एक डाकिए ने शुरू किया ये कारोबार
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अंग्रेजों के जमाने से कायम है जौनपुर की इमरती का जलवा, जानिए कैसे एक डाकिए ने शुरू किया ये कारोबार

लजीज इमरती का इतिहास अंग्रेज़ों से जुड़ा हुआ है. बेनीराम ने खाने के साथ मिठाई में इमरती बनाई और उनके सामने पेश की. अंग्रेज़ अफ़सर ने जब उसका स्वाद चखा तो वो उसके कायल हो गए.

जौनपुर की इमरती

Jaunpur Famous Imarti: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 250 किलोमीटर दूर एक जिला है जौनपुर. कई लोग तो यहां पर सिर्फ इमरती खाने के लिए आते हैं. जी हां, इस छोटे से शहर की इमरती काफी मशहूर है. करीब डेढ़ दशक पुरानी यहां की इमरती के स्वाद में कोई फर्क नहीं आया है. आम आदमी से लेकर बड़े-बड़े राजनेताओं को यह व्यंजन बहुत लुभाता है.

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वैसे तो गोमती नदी के किनारे बसा जौनपुर अपने इत्र और चमेली के तेल के लिए काफी मशहूर है. लेकिन यहां की मिठाई की पहचान विदेशों में भी है. 

यह है गुणवत्ता
देशी घी से बनने वाली यह इमरती पूरी तरह से सॉफ्ट होती है. नरम इतनी होती है कि बिना दांत के भी इसका जायका ले सकते हैं. उड़द की दाल के साथ इसमें देशी चीनी का ही इस्तेमाल होता है. खास बात है कि इमरती को कई दिनों तक बगैर फ्रिज के स्टोर करके रखा जा सकता है. इमरती बनाने के लिए दाल की पिसाई से लेकर पूरा काम हाथ से ही होता है.

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चौथी पीढ़ी ने संभाली कमान
कहा जाता है कि गुलाम भारत से लेकर आज़ाद भारत में बेनीप्रसाद की मिठाइयां सबसे बेहतरीन मानी जाती .यह दुकान पीढ़ियों से चली आ रही है. इसकी प्रसिद्धि का आलम कुछ ऐसा है कि बेनीराम देवी प्रसाद की चौथी पीढ़ी के वंशजों ने पूरी तरह से संभाल लिया है.

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ऐसे हुई थी शुरुआत 
यहां की लजीज इमरती का इतिहास अंग्रेज़ों से जुड़ा हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि ब्रिटिश राज में बेनीराम देवी प्रसाद नाम के एक डाकिया हुआ करते थे. एक दिन उनके अंग्रेज़ अफ़सर ने उनसे खाना बनाने को कहा. बेनीराम ने खाने के साथ मिठाई में इमरती बनाई और उनके सामने पेश की. अंग्रेज़ अफ़सर ने जब उसका स्वाद चखा तो वो उसके कायल हो गए.

इस मिठाई का स्वाद चखने के बाद तब उसने बेनीराम को नौकरी छोड़ने को कहा. ऐसे में, बेनीराम उनसे माफी मांगने लगे और तब अधिकारी ने उनसे कहा कि उनके पास इमरती बनाने के बेहतरीन कला है और उन्हें इसका बिज़नेस शुरू करना चाहिए. तुम्हारे हाथ में जादू है. ऐसी मिठाई मैंने आज से पहले कभी नहीं खाई.

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बेनीराम ने उनसे कहा हम तो इस मिठाई को तीज़ त्योहार पर अपने नाते-रिश्तेदारों के लिए बनाते हैं. हम इसे बेचते नहीं हैं. अफ़सर के ज़्यादा जोर देने पर वो मान गए और डाक विभाग से एक साल की छुट्टी लेकर 1855 में इमरती बनाने का काम शुरू किया. उनकी दुकान चल पड़ी और आज भी लोग दूर-दूर से लोग बेनीराम की इमरती खाने आते हैं. बस फिर क्या था यह दुकान आज तक खुली है और अपना जलवा बिखेर रही है.

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यहां पर है ये दुकान
ये दुकान जौनपुर के ओलन्दगंज के नक्खास मुहल्ले में मौजूद है. इसकी पुरानी दुकान शाही पुल के पास थी, जिसे मुग़लों के राज में बनाया गया था. बेनीराम के बाद की पीढ़ियों ने इस काम को आगे बढ़ाया और आज उनकी चौथी पीढ़ी इमरतियां बनाने का काम जारी रखे हुए हैं. अब तो इनकी इमरतियां विदेश में भी भेजी जाती है. इसकी रेसिपी को सीक्रेट रखा गया है.

10-12 दिनों तक नहीं होती ख़राब 
इमरतियों को हरी उड़द की दाल से बनाया जाता है. इसके लिए चीनी ख़ासतौर पर बलिया से मगाई जाती है. इन्हें ख़ालिस देशी घी में तला जाता है. इनकी एक और ख़ासियत ये है कि ये 10-12 दिनों तक बिना फ़्रिज में रखे भी ठीक रहती हैं. 

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दीवाने थेअटल जी, और डिंपल यादव की भी पसंदीदा
इमरती इतनी ख़ास है, तो इसके दीवाने भी हर जगह मौजूद होंगे. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को यहां की इमरती खासा पसंद थी. अटल जी तो खाने पीने के बहुत शौकीन थे उनके लिए प्राय: यहां से इमरती जाती थीं. इमरती के स्वाद ने यूपी के पूर्व सीएम की पत्नी और समाजवादी पार्टी की पूर्व सांसद डिंपल यादव को भी अपना दीवाना बनाया है. कहते हैं वह इन इमरतियों को खासा जौनपुर से मंगवाती भी हैं. 

देसी घी से बनती है खास इमरती
लकड़ी की धीमी आंच पर देसी चीनी (खांडसारी), देसी घी और उड़द की दाल को इस्तेमाल कर विशेष विधि से बनाई जाती है. यह इतनी मुलायम होती है कि यह मुंह में डालते ही घुल जाती है. जहां देश के अलग-अलग हिस्सों में मिलने वाली इमरती ताजी और गर्म ही खाई जाती है, वहीं जौनपुर की इस इमरती को गर्म तो खाया ही जा सकता है साथ ही इसको ठंडा करके खाने पर भी जबरदस्त स्वाद मिलता है.

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कहां हुई इमरती खोज?
इमरती भारत में खोजी गई मिठाई है. यह अरब से आई जलेबी का देशी वर्जन कही जा सकती है. इसमें खास बात यह है कि जलेबी की तरह, यह भी डिजाइनदार बनाई जाती है, लेकिन इसके रंग में अंतर होता है. इमरती हल्के ब्राउन रंग की नजर आती है. हालांकि, अलग-अलग जगह इसके रंग में अंतर होता है. बाहर खाने वाले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. बेनीराम-देवी प्रसाद के प्रतिष्ठान की इमरती की खास बात है कि इसमें ऊपर से कोई रंग नहीं मिलाया जाता है.

कैसे जाएं जौनपुर?
जौनपुर जाने के लिए रेल सेवा उपलब्ध है. आप जौनपुर सिटी या जौनपुर जक्शन स्टेशन पर उतर कर ऑटो या रिक्शे से दुकान तक जा सकते हैं. अगर आप हवाई सफर कर रहे हैं, तो, सबसे नजदीकी बाबतपुर हवाई अड्डा लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है.  बाबतपुर से आपको ऑनलाइन रेंटल सर्विस भी मिल सकती है. तो अगली बार जौनपुर जाना तो बेनीराम की इमरतियां खाना मत भूलना.

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