Pithori Amavasya 2021: भाद्रपद की पिठोरी अमावस्या आज, जानें पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त
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Pithori Amavasya 2021: भाद्रपद की पिठोरी अमावस्या आज, जानें पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त

Pithori Amavasya 2021: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुशोत्पाटिनी का अर्थ है कुशा का संग्रह करना. धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होने वाली कुशा का इस अमावस्या पर संग्रह किया जाता है. आमतौर पर अमावस्या का उखाड़ा गया कुश का प्रयोग एक महीने तक किया जा सकता है.

Pithori Amavasya 2021: भाद्रपद की पिठोरी अमावस्या आज, जानें पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त

Pithori Amavasya 2021: आज पिठोरी अमावस्या है. पिठोरी अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या या पिठोरी अमावस्या मनाई जाती है.  इसे पोला पिठोरा भी कहते हैं. मान्यता के मुताबिक पिठौरी अमावस्या के दिन महिलाएं अपनी संतान और सुहाग के लिए व्रत करतीं हैं. इस अमावस्या पर मां दुर्गा की पूजा की जाती है.

कुशोत्पाटिनी का अर्थ है कुशा का संग्रह करना
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुशोत्पाटिनी का अर्थ है कुशा का संग्रह करना. धार्मिक कार्यों में इस्तेमाल होने वाली कुशा का इस अमावस्या पर संग्रह किया जाता है. आमतौर पर अमावस्या का उखाड़ा गया कुश का प्रयोग एक महीने तक किया जा सकता है.

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कुशोत्पाटिनी भाद्रपद अमावस्या के मुहूर्त
भाद्रपद अमावस्‍या तिथि का शुभारंभ: 6 सितंबर 2021 को शाम 7 बजकर 40 मिनट से होगा
भाद्रपद अमावस्‍या तिथि का समापनः 7 सितंबर  (मंगलवार) 2021 को शाम 6 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी.

पिठौरी अमावस्या की पूजा विधि 
ये व्रत कुंवारी महिलाओं के लिए नहीं होता है. इस दिन विवाहित महिलाएं और माताएं ही व्रत रखती हैं. सुबह उठकर स्नान करें अगर संभव हो तो पानी में गंगाजल डालकर छिड़क कर स्नान करें. स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें. इस दिन 64 देवियों की आटे से प्रतिमा बनाने का विधान है. उनकी कपड़े पहनाकर पूजा की जाती है. मूर्तियों के गहने बनाने के लिए बेसन का आटा गूंथकर उससे हार, मांग टीका, चूड़ी, कान और गले के बनाकर देवी को चढ़ाएं. सभी देवताओं को एक प्लेट में रखकर उन पर फूल माला चढ़ाएं. 

पिठोरी अमावस्या का महत्व
पिठोरी अमावस्या के दिन आटा गूंथ कर मां दुर्गा समेत 64 देवियों की आटे से मूर्ति बनाते हैं. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और उनकी पूजा करती हैं. आज के दिन आटे से बनी देवियों की पूजा होती है, इसलिए इसे पिठोरी अमावस्या कहा जाता है. स्नान के बाद पितरों की तृप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण किया जाता है. अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक लगाएं और अपने पितरों का स्मरण करें. स्नान के बाद पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और पिंडदान किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्राप्त होता है.

नोट: (इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. हम इनकी पुष्टि नहीं करते हैं. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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