राजस्थान के बीकानेर रियासत में आज से करीब 376 साल पहले एक तरबूज के फल को लेकर भीषण युद्ध हुआ था. तरबूज को लेकर हुए इस युद्ध में हजारों सैनिकों की जान गई थीं. इतिहास में हुए इस अजीबो-गरीब युद्ध को 'मतीरे की राड़' के नाम से जाना जाता है.
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कहानी अजीबोगरीब: इतिहास, लड़ाई के अजीबोगरीब या बेहद बर्बर कहानियों से भरा हुआ है. कहीं दो देशों के बीच तो कहीं दो राज्यों के बीच हुई लड़ाइयां महीनों तक चलीं. इस दौरान दोनों तरफ से सैनिक मारे जाते थे. ये लड़ाइयां ज्यादातर राज्य की सीमा बढ़ाने को लेकर हुआ करती थीं. लेकिन इतिहास में एक ऐसी भी लड़ाई है, जो एक फल के लिए लड़ी गई थी. जी हैं, तरबूज के लिए युद्ध हुआ था. बीकानेर (Bikaner) और नागौर (Nagaur) की सीमा पर उगे एक तरबूज के लिए दो खेत मालिकों की लड़ाई दो रियासतों तक पहुंच गई थी.
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आपको जानकर हैरानी होगी कि राजस्थान के बीकानेर रियासत में आज से करीब 376 साल पहले एक तरबूज के फल को लेकर भीषण युद्ध हुआ था. तरबूज को लेकर हुए इस युद्ध में हजारों सैनिकों की जान गई थीं. इतिहास में हुए इस अजीबो-गरीब युद्ध को 'मतीरे की राड़' के नाम से जाना जाता है. राजस्थान के कई हिस्सों में तरबूज को 'मतीरा' कहते हैं. वहीं राड़ से अभिप्राय झगड़ा-लड़ाई से है.
1644 ईस्वी में तरबूज के लिए युद्ध
दरअसल, यह युद्ध 1644 ईस्वी में हुआ था. बताया जाता है कि बीकानेर रियासत का सीलवा गांव और नागौर रियासत का जाखणियां गांव, जो कि एक-दूसरे के समानांतर स्थित थे. ये दोनों गांव नागौर और बीकानेर रियासत की अंतिम सीमा में थे और एक तरबूज की फसल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी लेकिन वो नागौरी की सीमा में फैल गई. दोनों ही गांव दावा कर रहे थे कि फसल उनकी तरफ लगी है.
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युद्ध में गई थीं हजारों सैनिकों की जानें
इस बात पर झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों तरफ के गांव के लोग रात-रातभर जागकर पहरा देने लगे कि दूसरे पक्ष के लोग तरबूज न उखाड़ लें. फैसला न हो पाने पर आखिरकार बात दोनों रियासतों तक पहुंच गई और फल पर शुरू ये झगड़ा युद्ध में बदल गया. इसमें दोनों रियासतों के कई सारे सैनिकों की जानें गईं. अंत में इस युद्ध को बीकानेर की रियासत ने जीता.
इतिहास में दर्ज है 'मतीरे की राड़'
इतिहास में इस लड़ाई का हालांकि खुलकर जिक्र नहीं मिलता है लेकिन आज भी राजस्थान के लोगों के बीच मतीरे की राड़ का किस्सा खूब कहा जाता है. यहां राड़ से मतलब है 'रार' यानी लड़ाई. कहा जाता है कि लड़ाई में बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था जबकि नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया.
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रियासत की लड़ाई पहुंची मुगलों के दरबार में
उस दौरान दोनों ही रिसायतों के राजाओं को तरबूज के कारण हो रही लड़ाई की खबर नहीं थी क्योंकि बीकानेर के तत्कालीन राजा करणसिंह राज्य से बाहर थे, जबकि नागौर के राजा राव अमरसिंह राठौड़ थे, जो उस दौरान मुगल साम्राज्य के लिए एक अभियान पर थे.
बता दें कि तब राजस्थान की ये दोनों ही रियासतें मुगलों का आधिपत्य स्वीकार कर चुकी थीं और उनकी बात मानती थीं. वहीं जब इस युद्ध के बारे में उन्हें जानकारी हुई तो उन्होंने मुगल दरबार से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग की. हालांकि चब तक बहुत देर हो चुकी थी. कहा जाता है कि इस युद्ध में हार नागौर को मिली, लेकिन दोनों रियासतों से हजारो सैनिक मारे गए थे.
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