Congress In UP Byelection: कांग्रेस ने अपनी शर्तों के साथ सपा को जवाब देने का संकेत दिया है. सपा और कांग्रेस के बीच साझा वोटबैंक (मुस्लिम और दलित समुदाय) के कारण दोनों के बीच राजनीतिक संघर्ष जारी रहेगा. सपा का फोकस 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों पर है, जबकि कांग्रेस भी यूपी में अपनी स्थिति मजबूत करने की योजना पर काम कर रही है. कुल मिलाकर, कांग्रेस का यह कदम अपनी स्थिति मजबूत करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है.
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Uttar Pradesh byelection 2024 : कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में उपचुनावों से दूरी बनाकर अपनी सियासी रणनीति को कई तरह से साधने की कोशिश की है. गठबंधन का हवाला देने के बावजूद कांग्रेस के बड़े नेता प्रचार के दौरान सपा के मंच पर नजर नहीं आए, सिर्फ क्षेत्रीय प्रभारी ही सक्रिय दिखे. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस कदम से कांग्रेस ने अपनी भविष्य की संभावनाओं को खुला रखा है. अगर सपा ने भविष्य में सहयोग नहीं किया, तो कांग्रेस अन्य विकल्पों पर विचार कर सकती है.
कांग्रेस ने बनाया संतुलन - लोकसभा चुनावों के बाद हुए इन उपचुनावों में कांग्रेस ने पांच सीटों की मांग की थी, लेकिन सपा ने केवल गाजियाबाद और खैर सीट देने की पेशकश की. इस पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. इस निर्णय के पीछे अन्य राज्यों में हो रहे चुनाव भी एक कारण थे. उपचुनावों से दूरी बनाकर कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सपा के दबाव को भी संतुलित किया.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और प्रभारी अविनाश पांडेय यूपी के बजाय वायनाड और महाराष्ट्र में सक्रिय रहे. सपा की ओर से मंच साझा करने के लिए कोई खास पहल न होने पर कांग्रेस ने अपनी गरिमा और रणनीति बचाने के लिए अन्य राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया.
कांग्रेस ने कम किया अपना दबाव - विश्लेषकों का कहना है कि यदि सपा ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को उपचुनावों में साथ रखा होता, तो उसे अधिक फायदा हो सकता था. अब 2027 के चुनावों में कांग्रेस सपा के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं होगी और वह अन्य विकल्पों को अपनाने के लिए स्वतंत्र होगी. सपा से अपेक्षित सहयोग न मिलने की स्थिति में कांग्रेस अन्य दलों के साथ गठबंधन कर सकती है.
गठबंधन में तालमेल की कमी - सपा और कांग्रेस के बीच तालमेल की कमी स्पष्ट दिखाई दी. कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार न उतारकर सपा को समर्थन दिया, लेकिन इसे मजबूरी में लिया गया कदम माना जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ने यह फैसला अपनी छवि बचाने के लिए किया, क्योंकि कमजोर सीटों पर हार से पार्टी को और नुकसान हो सकता था. जानकारों का मानना है कि कांग्रेस का यह फैसला कार्यकर्ताओं के मनोबल को तोड़ सकता है. हालांकि, इससे पार्टी का समर्पण और गठबंधन में सामंजस्य का संदेश जाता है. साथ ही, यह कदम कांग्रेस के लिए सपा के साथ भविष्य में बेहतर तालमेल की उम्मीद भी बनाए रखता है. यह निर्णय कांग्रेस के रणनीतिक कदमों और गठबंधन की राजनीति को समझने का एक महत्वपूर्ण संकेत है.
वोटबैंक - लोकसभा चुनाव में दोनों दलों का इंडिया गठबंधन सफल रहा था. हालांकि, यूपी में सपा की राजनीति मुस्लिम और दलित वोटबैंक पर आधारित है, जबकि कांग्रेस भी इसी वर्ग को अपना समर्थक बनाने की कोशिश कर रही है. यही कारण है कि सपा कांग्रेस को ज्यादा राजनीतिक स्पेस देने से बच रही है.