ताजमहल की श्री राम जन्मभूमि मंदिर के तर्ज पर पुरातत्व विभाग से कराई जाए जांच, शिव मंदिर है तो हिंदुओं को सौंपी जाए: चक्रपाणि महाराज
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ताजमहल की श्री राम जन्मभूमि मंदिर के तर्ज पर पुरातत्व विभाग से कराई जाए जांच, शिव मंदिर है तो हिंदुओं को सौंपी जाए: चक्रपाणि महाराज

काशी के ज्ञानवापी केस में वीडियोग्राफी को लेकर चल रहे हंगामे के बीच अब ताजमहल पर भी पर भी बयानबाजी का दौर शुरु हो गया है.

ताजमहल की श्री राम जन्मभूमि मंदिर के तर्ज पर पुरातत्व विभाग से कराई जाए जांच, शिव मंदिर है तो हिंदुओं को सौंपी जाए: चक्रपाणि महाराज

लखनऊ: काशी के ज्ञानवापी केस में वीडियोग्राफी को लेकर चल रहे हंगामे के बीच अब ताजमहल पर भी पर भी बयानबाजी का दौर शुरु हो गया है. इन सबके बीच अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज ने कहा है कि ताजमहल शाहजहां द्वारा बनाया गया प्रेम का प्रतीक नहीं है, बल्कि भगवान शिव का मंदिर था. इसकी श्री राम जन्मभूमि मंदिर के तर्ज पर पुरातत्व विभाग से जांच कराई जाए. वह शिव मंदिर है और हिंदुओं को सौंपी जाए, ताकि वहां पूजा हो सके.

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ताजमहल के सर्वे की उठ चुकी मांग
हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में अयोध्या से बीजेपी के मीडिया प्रभारी रजनीश सिंह की तरफ से एक याचिका डाली है. जिसमें उन्होंने मांग की है कि ताजमहल के बंद पड़े 22 कमरों को खोला जाए और एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाकर रिपोर्ट दाखिल की जाए. ताकि यह पता चल सके कि उन कमरों में आखिर क्या है. मान्यता है कि इन सभी कमरों में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हैं. बीजेपी का कहना है कि हर व्यक्ति को अधिकार है कि किसी विवाद के समय कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. अगर कोर्ट कानून की परिधि में रहकर निर्णय देता है, तो उसमें किसी को समस्या नहीं होनी चाहिए.

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याचिका में वकील ने दिए हैं ये तर्क
दायर याचिका में रजनीश सिंह के वकील रूद्र विक्रम सिंह का तर्क है कि सन् 1600 में आए कई यात्रियों ने अपने यात्रा वृतांत में वर्णन किया है. इसमें मानसिंह के महल का भी जिक्र है. कहा जाता है कि ताजमहल 1653 में बना था. वहीं, 1651 का औरंगजेब का एक पत्र सामने आया, जिसमें वह लिखता है कि अम्मी का मकबरे को मरम्मत कराने की जरूरत है. ऐसे तमाम तथ्यों के आधार पर पता लगाए जाने की जरूरत है कि ताजमहल के बंद इन 22 कमरों मे आखिर क्या है. वहीं कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बीजेपी महंगाई-बेरोजगारी के मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए समाज में सांप्रदायिकता का बीज बोकर अपनी चुनावी रोटियां सेंक रही है. इसलिए ही ऐसी याचिकाएं दायर करवाई जा रही हैं, जो कहीं ना कहीं संविधान की अवधारणा का उल्लंघन है.

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