गंगा प्रदूषण मामला: अडानी कंपनी के करार पर HC की टिप्पणी, कहा- ऐसे तो गंगा साफ होने से रही
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गंगा प्रदूषण मामला: अडानी कंपनी के करार पर HC की टिप्पणी, कहा- ऐसे तो गंगा साफ होने से रही

Ganga pollution Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को निर्देश दिया है कि वह प्रयागराज के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व नालों के प्रदूषण की जांच कर ऐक्शन ले और क्लीन गंगा पर अपने सुझाव भी दें.......

फोटो क्रेडिट (फेसबुक)

मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक से पूछा है कि क्लीन गंगा के मद में कितना धन आवंटित किया गया है और यूपी को कितना धन दिया गया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या धन योजना उद्देश्य पूरा करने में ही खर्च किया गया है. भविष्य की क्या योजना है? कोर्ट ने कानपुर उन्नाव के चर्म उद्योग शिफ्ट करने पर भी केंद्र सरकार से जानकारी मांगी है. कोर्ट ने कहा, जल निगम द्वारा प्रयागराज में आने वाली भीड़ व घरों में लगे वाटर पंप के पानी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना में शामिल नहीं किया. केवल जल आपूर्ति व भविष्य की आबादी पर योजना लागू कर दी.

कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को निर्देश दिया है कि वह प्रयागराज के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व नालों के प्रदूषण की जांच कर ऐक्शन ले और क्लीन गंगा पर अपने सुझाव भी दें. बुधवार को गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई के दौरान बड़ा खुलासा भी हुआ. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अडानी की कंपनी चला रही है और करार है कि किसी समय प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आया तो शोधित करने की जवाबदेही नहीं होगी. कोर्ट ने टिप्पणी की कि ऐसे करार से तो गंगा साफ होने से रही. कोर्ट ने कहा ऐसी योजना बन रही जिससे दूसरों को लाभ पहुंचाया जा सके और जवाबदेही किसी की न हो.

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कामों पर उठा सवाल 
जनहित याचिका की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एम के गुप्ता और जस्टिस अजित कुमार ने कहा कि जब ऐसी संविदा है तो शोधन की जरूरत ही क्या है? कोर्ट ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर कहा कि बोर्ड साइलेंट इस्पेक्टेटर बना हुआ है, इसकी जरूरत ही क्या है, इसे बंद कर दिया जाना चाहिए.ऐक्शन लेने में क्या डर है? कानून में बोर्ड को अभियोग चलाने तक का अधिकार है. कोर्ट ने जलशक्ति मंत्रालय के अंतर्गत नमामि गंगे योजना के तहत करोड़ों खर्च के बाद भी स्थिति में बदलाव न आने पर तल्ख टिप्पणी की. कोर्ट के आदेश पर कमेटी के साथ बोर्ड ने नालों के पानी के सैंपल लिए. आईआईटी कानपुर नगर व बीएचयू वाराणसी सहित यूपीसीडा को जांच सौंपी गई. रिपोर्ट मानक व पैरामीटर के उल्लंघन की है. कोर्ट ने कहा जल निगम एसटीपी की निगरानी कर रहा है लेकिन उसके पास पर्यावरण इंजीनियर नहीं है.

सपा सरकार के समय बनी थी चर्म उद्योगों में जीरो डिस्चार्ज योजना
याचिका पर न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरूण कुमार गुप्ता, वीसी श्रीवास्तव, अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी, शशांक शेखर सिंह, डा एच एन त्रिपाठी, राजेश त्रिपाठी आदि अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा. कोर्ट को बताया गया कि गंगा किनारे प्रदेश में 26 शहर है. अधिकांश‌ मे एसटीपी नहीं है. सैकड़ों उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है. वीसी श्रीवास्तव ने यमुना प्रदूषण का मामला भी उठाया, जहां एसटीपी है वह ठीक से काम कर रहा है कि नहीं, इसकी निगरानी नहीं की जा रही. सपा सरकार के समय चर्म उद्योगों में जीरो डिस्चार्ज योजना बनाई गई. शिफ्ट करने की योजना रोकी गई. किंतु अब हलफनामे में शिफ्ट करने पर विचार करने की बात की गई है.

अडानी की कंपनी चला रही प्लांट 
जल निगम के अधिकारी ने बताया कि प्लांट अडानी की कंपनी चला रही है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जांच कर रहा है. निगम ऑनलाइन चेक कर रहा है. महीने की एवरेज रिपोर्ट पेश की, जितना गंदा पानी उत्सर्जित हो रहा है. उससे काफी कम क्षमता के प्लांट हैं. पानी अधिक आया तो कंपनी शोधन की जिम्मेदारी नहीं लेगी, ऐसा करार कर लिया गया है. कंपनी बिना शोधन पैसे ले रही. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपना दायित्व नहीं निभा रहा. गंदा पानी गंगा में जा रहा, कार्रवाई किसी पर नहीं हो रही. डीएलडब्ल्यू व वाराणसी घाटों पर भी विचार किया गया. नालों के बायो रेमेडियल शोधन की विफलता का मुद्दा उठाया गया. मामले में अब अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी.

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