Muharram 2022: कोरोना के बाद पहली बार मुहर्रम पर जुलूस निकालने की इजाजत मिली है. इस बार सरकार ने अस्त्र-शस्त्र ले जाने की सख्त पाबंदी लगाई है. आमतौर पर देखा जाता है कि मुहर्रम पर जुलूस में तलवारबाजी और धारदार हथियारों से खुद के शरीर पर जख्म देकर मातम मनाते हैं.
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Muharram 2022: जय पाल/वाराणसी: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मुहर्रम महीने की शुरुआत हो चुकी है. मुहर्रम गम और मातम का महीना है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है. यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल या हिजरी सन् का शुरू का महीना है. मुहर्रम बकरीद के पर्व के 20 दिनों के बाद मनाया जाता है. इस बार 9 अगस्त को मुहर्रम मनाया जाएगा.
इस्लाम को मानने वाले लोगों के लिए यह महीना बहुत अहम होता है, क्योंकि इसी महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी. बता दें कि हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे थे. उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं, जिसे आशूरा भी कहा जाता है.
हुसैन साहब के लिए मातम मना रहे मुस्लिम
वाराणसी में मुहर्रम के लिए जगह-जगह पर मजलिस हो रहा है. बनारस के दोसीपुरा के रहने वाले इमाम चौक के मुतवल्लीक (प्रबंधक) गुलजार अली ने बताया कि कर्बला के मैदान में शहीद हजरत इमाम हुसैन साहब की याद में ताजिया के साथ जुलूस निकालते हैं. इस जुलूस में मुस्लिम समुदाय के लोग मातम का इजहार करते हैं. बताया जाता है कि पैगंबर मोहम्मद हजरत इमाम हुसैन के ऊपर मुसलमानों द्वारा अत्याचार के खिलाफ यह रस्म निभाई जाती है.
शिया व सुन्नी में सालों से चल रही वर्चस्व की लड़ाई
वाराणसी के दोसीपुरा इलाके में इमाम चौक पर ताजिया रखकर मुस्लिम समुदाय खास तौर पर शिया समुदाय गम का इजहार कर रहा है. दरअसल, इस इमाम चौक के पास शिया व सुन्नी में सालों से वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 58 दिनों के लिए शिया मुसलमानों को इस पूरी जमीन पर रस्म अदायगी का अधिकार मिला है. बाकी के दिनों में सुन्नी समुदाय के लोग यहां पर नमाज अदा करते हैं.
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कोरोना के बाद पहली बार जुलूस निकालने की इजाजत
आपको बता दें कि कई दफा मुहर्रम और बाकी मौकों पर शिया व सुन्नी में हिंसा भड़क चुकी है. इसे देखते हुए हर साल यहां पर भारी पुलिस बल मौजूद रहता है. पुलिस की मौजूदगी में यहां शिया व सुन्नी आपस में त्यौहार मना पाते हैं. हालांकि, कोरोना के बाद पहली बार मुहर्रम पर जुलूस निकालने की इजाजत मिली है. इस बार सरकार ने अस्त्र-शस्त्र ले जाने की सख्त पाबंदी लगाई है. आमतौर पर देखा जाता है कि मुहर्रम पर ताजिए के साथ जुलूस में तलवारबाजी और धारदार हथियारों से खुद के शरीर पर जख्म देकर मातम का इजहार किया जाता है.
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जानें क्यों निकाली जाती है ताजिया
मुहर्रम के 10वें दिन यानी आशूरा के दिन ताजियादारी की जाती है. इमाम हुसैन की इराक में दरगाह है, जिसकी हुबहू नकल कर ताजिया बनाई जाती है. शिया उलेमा के मुताबिक मुहर्रम का चांद निकलने की पहली तारीख को ताजिया रखी जाती है. इमाम हुसैन की शहादत की याद में इस दिन लोग ताजिया और जुलूस निकालते हैं. आपको बता दें कि ताजिया निकालने की परंपरा सिर्फ शिया समुदाय में ही है.
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