Ballia News: शादियों का सीजन शुरू हो चुका है. दूल्हा घोड़ी चढ़ने को तैयार हैं, बारात में दूल्हे के नोटों की माला पहनने का खूब चलन है. लेकिन ये नोटों की माला गर्दन की फांस भी बन सकती है. जानिए लीजिए इससे जुड़ा नियम...
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मनोज चतुर्वेदी/बलिया: शादियों का सीजन शुरू होते ही बाजार की रौनक बढ़ जाती है. जहां एक तरफ वर -वधू के लिए फूलों की माला बिक रही है तो वहीं बाजार में बड़ी संख्या में नोटों की माला भी बिकनी शुरू हो गई है. 10 रुपये से लेकर 500 रुपये तक के नोटों की माला अलग-अलग डिजाइन में दूल्हों के लिए मौजूद हैं. आमतौर पर दूल्हे नोटों की माला पहनाते हैं. लेकिन यह उनके गले की फांस बन सकती है.
दरअसल, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों के कहना है कि नोटों की माला आरबीआई के नियमों के खिलाफ है. नोटों का प्रयोग केवल लेनदेन के लिए किया जाना चाहिए. इसके बावजूद इनका इस्तेमाल खूब किया जा रहा है. वहीं,दूसरी ओर शादियों का सीजन आते ही नोटों की माला का बाजार सज चुका है. दुकानदारों का कहना है कि नोटों की माला का खूब क्रेज है, हमारे पास अलग-अलग कैटगरी की माला मौजूद हैं. जैसे लोग ऑर्डर देते हैं वैसी ही माला उनको बनाकर दे देते हैं. वहीं, नोटों की माला खरीदने आए लोगों ने बताया कि समाज में एक परंपरा बन गई है जिसमें दूल्हे को नोटों की माला पहनाई जा रही है.
इसको लेकर सेंट्रल बैंक के एलडीएम का कहना है कि नोटों की माला रिजर्व बैंक की तरफ से ऑथराइज्ड नहीं है, ये गैरकानूनी है. नोटो का यूज मॉर्केट में सर्कुलेशन और लेनदेन के लिए किया जाना चाहिए, इसको होल्ड करना नाजायज है. लेकिन लोगों की इससे भावनाएं जुड़ी होती हैं, इसलिए वह ऐसा करते हैं.
आरबीआई के बारे
भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के एक्ट के तहत 1 अप्रैल, 1935 को की गई. आरबीआई का केंद्रीय कार्यालय शुरू में कोलकाता में स्थपित किया गया था, जिसे 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में ट्रांसफर किया गया. केंद्रीय कार्यालय में ही गवर्नर बैठते हैं, जहां नीतियों को निर्धारित किया जाता है. बता दें आरबीआई पहले निजी स्वामित्व वाला था, जिसका 1949 में राष्ट्रीयकरण किया गया.