Sambhal: कोतवाली में मुस्लिम समुदाय के लोग पढ़ते हैं मर्सिया, बताई जा रही दशकों पुरानी परंपरा
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Sambhal: कोतवाली में मुस्लिम समुदाय के लोग पढ़ते हैं मर्सिया, बताई जा रही दशकों पुरानी परंपरा

Sambhal News: संभल कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक ओंकार सिंह बताया कि कोतवाली में मर्सिया पढ़ने की परंपरा बहुत पुरानी है. उन्होंने बताया कि यह परंपरा देश की आजादी के बाद से चल रही है. जानें क्या है इसके पीछे की वजह-

Sambhal: कोतवाली में मुस्लिम समुदाय के लोग पढ़ते हैं मर्सिया, बताई जा रही दशकों पुरानी परंपरा

सुनील सिंह/संभल: उत्तर प्रदेश के संभल में सदर कोतवाली में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मर्सिया पढ़े जाने का वीडियो सामने आया है. कोतवाली में मुस्लिम समुदाय द्वारा मर्सिया पढ़े जाने के मामले को कई दशक से चली आ रही परंपरा बताया जा रहा है. हिंदू संगठनों ने कोतवाली में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मर्सिया पढ़े जाने की परंपरा पर आपत्ति जताते हुए जांच की मांग की है.

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मर्सिया पढ़ने की परंपरा की जांच की मांग
वायरल वीडियो में मुस्लिम समुदाय के लोग कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक और अन्य पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में मर्सिया पढ़ते नजर आ रहे हैं. यह वीडियो मुहर्रम से पहले अलम के जुलूस के दिन का बताया जा रहा है और कई दिन से वायरल हो रहा है. वायरल वीडियो के सामने आने के बाद हिंदू संगठनों के नेताओं ने कोतवाली में मर्सिया पढ़े जाने पर आपत्ति जताई है. हिंदूवादी नेता कपिल दीवाना ने कोतवाली में इस परंपरा की जांच कराए जाने की मांग की है.

आजादी के बाद से ही चल रही है यह परंपरा
वहीं, कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक ओंकार सिंह ने इसे कई दशक से चली आ रही परंपरा बताया है. उनका कहना है कि यह परंपरा देश की आजादी के बाद से चली आ रही है. मुस्लिम समुदाय के लोग आजादी के बाद से हर साल कोतवाली में आकर मर्सिया पढ़ते हैं. कोतवाली पुलिस द्वारा मर्सिया पढ़ने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों को तोहफे दिए जाते हैं. वहीं, इसे कोतवाली के रजिस्टर में भी बाकायदा दर्ज किया जाता है.

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प्रायश्चित करने के लिए पढ़ते हैं मर्सिया
सदर कोतवाली में मर्सिया पढ़े जाने की परंपरा शिया मुस्लिमों द्वारा निभाई जाती है. दरअसल, शिया मुस्लिम हजरत इमाम हुसैन की हत्या के लिए स्वयं को गुनाहगार मानते हैं. इसी गुनाह के प्रायश्चित के लिए मुहर्रम से 1 दिन पहले निकाले जाने वाले आलम के जुलूस के दिन कोतवाली में पहुंचकर अपना गुनाह कबूल करते हैं और प्रायश्चित के तौर पर मर्सिया पढ़ने की परंपरा निभाते हैं.

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