Sitapur: 84 कोसी परिक्रमा का हुआ शुभारंभ, जानिए रावण के वध के बाद भगवान राम क्यों की ये परिक्रमा?
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Sitapur: 84 कोसी परिक्रमा का हुआ शुभारंभ, जानिए रावण के वध के बाद भगवान राम क्यों की ये परिक्रमा?

UP News: सीतापुर में नैमिषारण्य की पौराणिक 84 कोसीय परिक्रमा आज से शुरू हो गई है. ये परिक्रमा अपने पहले पड़ाव कोरौना द्वारिकाधीश दर्शन के लिए निकल चुकी है. आइए बताते हैं इस यात्रा से जुड़ी कहानी...

Sitapur: 84 कोसी परिक्रमा का हुआ शुभारंभ, जानिए रावण के वध के बाद भगवान राम क्यों की ये परिक्रमा?

सीतापुर: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सीतापुर (Sitapur) में नैमिषारण्य की पौराणिक 84 कोसीय परिक्रमा आज से शुरू हो गई है. ये परिक्रमा अपने पहले पड़ाव कोरौना द्वारिकाधीश दर्शन के लिए निकल चुकी है. आपको बता दें कि इस परिक्रमा में भारत के अनेकों प्रांतों से हजारों की संख्या में साधु-संत समेत श्रद्धालु शामिल हैं. जानकारी के मुताबिक ये 84 कोसी परिक्रमा 21 फरवरी से शुरू होकर आगामी 8 मार्च तक चलेगी. वहीं, इस परिक्रमा में श्रद्धालु ग्यारह पड़ावों पर अपना डेरा डालेंगे.

नैमिषारण्य की ये 84 कोसीय परिक्रमा विश्व की सबसे प्राचीन परिक्रमा 
आपको बता दें कि नैमिषारण्य की ये पौराणिक 84 कोसीय परिक्रमा विश्व की सबसे प्राचीन काल से होने वाली परिक्रमा है. यह परिक्रमा त्रेता युग से निरंतर हर साल होती चली आ रही है. प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की प्रतिपदा से शुरू होकर होली के दिन तक ये परिक्रमा होती है. खास बात ये है कि इस परिक्रमा में समस्त तीर्थों, मंदिरों और ऋषि मुनियों की तपस्थलियों के दर्शन होते हैं. इस परिक्रमा को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति नैमिषारण्य की चौरासी कोसीय परिक्रमा करता है, उसे चौरासी लाख योनियों में कभी भटकना नहीं पड़ता है.

भगवान राम ने की थी सबसे पहले नैमिषारण्य की 84 कोसीय परिक्रमा
आपको बता दें कि सबसे पहले भगवान राम ने रावण के वध के पश्चात ब्रह्म हत्या से निवारण के लिए नैमिषारण्य की 84 कोसीय परिक्रमा की थी भगवान राम ने अपने पूरे दल के साथ इस परिक्रमा को किया था. तब से इस परिक्रमा को रामादल भी कहा जाता है. बता दें कि स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, और महाभारत में भी नैमिषारण्य की 84 कोसीय परिक्रमा वर्णन किया गया है. परिक्रमा में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल. वहीं, 84 कोसी परिक्रमा में हिंदू मुस्लिम एकता की भी मिसाल देखने को मिली मुस्लिमों ने भी परिक्रमा में साधु संतों का स्वागत किया.

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