क्या बाबू सिंह कुशवाहा में सुर्खाब के पर लगे हैं? ओवैसी क्यों मानते हैं उन्हें BJP को हराने का सबसे ताकतवर हथियार?
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क्या बाबू सिंह कुशवाहा में सुर्खाब के पर लगे हैं? ओवैसी क्यों मानते हैं उन्हें BJP को हराने का सबसे ताकतवर हथियार?

Babu Singh Kushwaha: रामचरन कुशवाहा उर्फ बाबू सिंह कुशवाहा 2007 से 2012 तक बहुजन समाज पार्टी की सरकार में परिवार कल्याण मंत्री थे और मायावती के सबसे भरोसेमंद नेताओं में शुमार थे. कहा जाता है कि उनपर मायावती का हाथ था, इसलिए मामूली परिवार से ताल्लुक रखने वाले बाबू सिंह कुशवाहा राजनीति में ऊंचाइयां चढ़ने लगे और देखते ही देखते अमीर भी होते गए...

क्या बाबू सिंह कुशवाहा में सुर्खाब के पर लगे हैं? ओवैसी क्यों मानते हैं उन्हें BJP को हराने का सबसे ताकतवर हथियार?

Babu Singh Kushwaha: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सभी दल जीत की कोशिशों में लगे हैं. इसी बीच हर विपक्षी दल के लिए खुद की जीत से बड़ा मुद्दा बन गया है बीजेपी को हराना. कई छोटी-बड़ी पार्टियों ने गठबंधन कर प्रदेश में बीजेपी से ज्यादा मजबूत होने की ठान ली है और इसके लिए प्रयासरत हैं. इसी क्रम में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने जन अधिकार पार्टी के प्रमुख बाबू सिंह कुशवाहा पर भरोसा जताया है और अनके साथ गठबंधन किया है. ओवैसी का यह मानना है और वह बार-बार कहते भी रहे हैं कि अगर सीएम योगी को कोई हरा सकता है तो वह अखिलेश या प्रियंका गांधी नहीं, बल्कि बाबू सिंह कुशवाहा हैं. 

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क्या बाबू सिंह कुशवाहा में सुर्खाब के पर लगे हैं?
अब यह मानना यूपी की जनता के लिए भी जरा मुश्किल है कि सबसे ताकतवर विपक्ष के नाम पर जहां समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस का नाम आता है, वहां ओवैसी इनकी तुलना जन अधिकार पार्टी से क्यों कर रहे हैं? बाबू सिंह कुशवाहा में क्या सुर्खाब के पर लगे हैं, जो वही बीजेपी को हरा सकते हैं और कोई नहीं? आइए जानते हैं कौन हैं बाबू सिंह कुशवाहा जिनपर असदुद्दीन ओवैसी भरोसा जता रहे हैं.

बसपा संस्थापक कांशीराम ने बदली किस्मत
बांदा जिले के पखरौली गांव में एक कृषि परिवार से आने वाले कुशवाहा ने अतर्रा में ही लकड़ी का टाल खोलकर जीवन यापन शुरू किया था. साल 1985 में ग्रेजुएशन का एग्जाम उत्तीर्ण किया. इसके बाद 17 अप्रैल 1988 को बसपा के संस्थापक कांशीराम की नजर उनपर पड़ी. कांशीराम ने उनको दिल्ली बुला लिया. सियासी जमीन पर अपनी किस्मत आजमाने के सपने देखने वाले बाबू सिंह तुरंत दिल्ली पहुंच गए. वहां उन्हें कांशीराम ने बसपा कार्यालय का कर्मचारी बनाया. 6 महीने भी नहीं बीते होंगे कि बाबू सिंह को प्रमोशन मिल गया और वह लखनऊ कार्यालय में संगठन का काम करने लगे. 1997 में उनको पहली बार विधान परिषद सदस्य के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी मिली. साल 2003 में वह फिर परिषद भेजे गए. 2003 में तीसरी बार बसपा की सरकार बनी तो कुशवाहा को पंचायती राज मंत्री बनाया गया.

मायावती ने बसपा से किया था बेदखल
रामचरन कुशवाहा उर्फ बाबू सिंह कुशवाहा 2007 से 2012 तक बहुजन समाज पार्टी की सरकार में परिवार कल्याण मंत्री थे और मायावती के सबसे भरोसेमंद नेताओं में शुमार थे. कहा जाता है कि उनपर मायावती का हाथ था, इसलिए मामूली परिवार से ताल्लुक रखने वाले बाबू सिंह कुशवाहा राजनीति में ऊंचाइयां चढ़ने लगे और देखते ही देखते अमीर भी होते गए. 2012 में उनकी गिनती कुछ चुनिंदा रईस राजनीतिकों में होती थी. लेकिन, एक समय आया जब मायावती भी बाबू सिंह कुशवाहा का बचाव नहीं कर सकीं और उन्हें बसपा से निकाल दिया गया. वजह बना NRHM घोटाला, जिसके मुख्यारोपी थे बाबू सिंह. 

बसपा से निकल कर कई दलों में शामिल होने की कोशिश
कुशवाहा ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए राहुल गांधी से बात की थी. उस दौरान उनकी पत्नी शिवकन्या और भाई शिव शरण कुशवाहा समाजवादी पार्टी का हिस्सा थे. साल 2012 में विधानसभा चुनाव से पहले ही उन्होंने बीजेपी का दामन थामा. लेकिन, उनके आपराधिक इतिहास को देखते हुए बीजेपी नेता नाराज हो गए और बाबू सिंह को निकालने की मांग उठी. उस समय नितिन गडकरी पार्टी अध्यक्ष थे. बाबू सिंह को बीजेपी छोड़नी पड़ी. साल 2012 में ही विधानसभा चुनाव की वोटिंग के बाद बाबू सिंह जेल गए और 4 साल बाद 2016 में वापस आए. इसके बाद जन अधिकार पार्टी बनाई.

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सबको याद होना चाहिए NRHM घोटाला
NRHM घोटाला कुछ-कुछ मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले जैसा था. 2007-12 के बीच राज्य में बसपा की सरकार थी. उस दौरान केंद्र सरकार ने नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (NRHM) के तहत यूपी को 8657 करोड़ रुपये आवंटित किए थे. लेकिन, इतनी बड़ी रकम में से करीब 1 हजार करोड़ बीच से ही गायब हो गए. सीबीआई की जांच बैठी तो मालूम हुआ कि 134 अस्पतालों को अपग्रेड करने की बात तो कही गई, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपये चट कर लिए गए. इस घोटाले में बाबू सिंह सहित कई नेताओं और अफसरों के नाम सामने आए.

कई डॉक्टर्स और अफसरों को गंवानी पड़ी जान
सिर्फ यही नहीं, आरोप यह भी लगा कि खुद को बचाने के लिए आरोपी नेताओं और अफसरों ने कई मासूमों की बली चढ़ाई थी. लखनऊ में डॉ. विनोद आर्या (2010), बीपी सिंह (2011) जैसे लोगों को गोली मार दी गई थी. वहीं, पुलिस कस्टडी में ही डिप्टी सीएमओ डॉ. सचान की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई थी. कुछ को आत्महत्या करार दे दिया गया. कुछ मौतें यूं ही दब गईं. इन मामलों में जब बाबू सिंह कुशवाहा का नाम सामने आया और उन्हें बचाना मुश्किल हो गया तो मायावती ने उनसे इस्तीफा मांग लिया और उन्हें बसपा का दामन छोड़ना पड़ा. 2012 के विधानसभा चुनाव की मतदान प्रक्रिया पूरी होते ही सीबीआई ने बाबू सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

ओवैसी के साथ गठबंधन कर उतरे चुनावी मैदान में
हालांकि, अति पिछड़ी मानी जाने वाली जातियों में बाबू सिंह कुशवाहा की अच्छी पकड़ है. ऐसे में कई दल उन्हें अपनी ओर लेना चाहते थे. लेकिन, जेल से वापस आने के बाद बाबू सिंह ने अपनी पार्टी 'जन अधिकार पार्टी' बनाई और अब असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव में उतरे हैं.

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