Joshimath History: जोशीमठ का पौराणिक इतिहास हजारों साल पुराना है, जो भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार और आदि शंकराचार्य से जुड़ा है. आज वो लैंडस्लाइड (joshimath sinking) जैसी आपदाओं से जूझ रहा है.
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History of Joshimath : जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय यानी हिमालय का द्वार भी कहते हैं. भगवान केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) और बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) की यात्रा का यह बेहद अहम पड़ाव है. उत्तराखंड के प्राचीन ऐतिहासिक और पौराणिक स्थानों एक जोशीमठ को ज्योर्तिमठ (Jyotirmath) भी कहा जाता है. कहा जाता है कि ज्योतिषमठ (Jyotishmath) का नाम बदलते बदलते जोशीमठ हो गया.
उत्तराखंड के हरिद्वार (Haridwar) बद्रीनाथ राजमार्ग पर बने जोशीमठ की स्थापना हजारों साल पहले शंकराचार्य ने की थी. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) ने स्वयं के चार विद्यापीठ में से एक ज्योतिषमठ यहीं बनाया और इसे ज्योतिर्मठ का नाम दिया गया. आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने परम प्रिय शिष्य टोटका को यहां का दायित्व सौंपा.यह पवित्र तीर्थस्थान कामप्रयाग क्षेत्र में है. अलकनंदा और धौलीगंगा नदी का संगम यहीं होता है.
जोशीमठ का पौराणिक इतिहास (Joshimath ancient history) भी है. कहा जाता है कि पहले जोशीमठ समुद्र क्षेत्र था. जैसे ही चमत्मकारिक परिवर्तनों के अनुसार, यहां हिमालय के पहाड़ों का प्रार्दुभाव हुआ तो नरसिंहरूपी भगवान विष्णु की तप भूमि बन गई.यह भी माना जाता है कि दैत्य कुल के राजा हिरण्यकश्यप और पुत्र प्रह्लाद का संबंध भी यहां से था है. हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) को भगवान विष्णु से यह वरदान मिला था कि कोई स्त्री या पुरुष,समय में यानी दिन या रात, घर के भीतर या बाहर या किसी हथियार के हमले से उसे मारा नहीं जा सकेगा.
अमर कर देने वाले ऐसे वरदान से हिरण्याकश्यप घमंड में खुद को भगवान मानने लगा. उसने अपने राज्यक्षेत्र में भगवान विष्णु की पूजा पर पाबंदी लगा दी. भगवान का भक्त प्रह्लाद अत्याचारी पिता की यातना के बावजूद विष्णु की पूजा में लीन रहा. आगबबूला हिरण्यकश्यप ने बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर धधकती आग की ज्वाला में बैठ जाए.होलिका को वरदान था कि वो आग में दहन नहीं होगी.लेकिन भक्त प्रह्लाद को कुछ नही हुआ और होलिका खाक हो गई. प्रह्लाद को गर्म कढ़ाही में डालने जा रहे दैत्य राजा पर भगवान विष्णु नाराज हो गए. भगवान विष्णु नरसिंह (आधा मनुष्य आधा शेर) के तौर पर हिरण्यकश्यप खंभे के बीच तोड़कर निकले. गोधूलि बेला में उन्होंने जांघ पर हिरण्याकश्यप को रखकर पंजों से उसका पेट फाड़ दिया.
भगवान नरसिंह का क्रोध इतना भयंकर था कि हिरण्यकश्यप को मारने के बाद भी कई दिनों तक वे क्रोध की अग्नि में जलते रहे. माता लक्ष्मी ने भक्त प्रह्लाद से मदद मांगी. वो भगवान विष्णु का जप करते रहे, जब तक कि वे शांत नहीं हो गए. कहा जाता है यही वो स्थान था,जहां भगवान विष्णु का क्रोध शांत हुआ. जोशीमठ में भगवान विष्णु के मंदिर में ऐसा ही शांत स्वरूप देखने को मिलता है. नरसिंह मंदिर का वर्णन भी स्कंद पुराण के केदारखंड में मिलता है.
ऐसी मान्यता है कि भगवान शालीग्राम की कलाई दिन प्रतिदिन पतली होती जा रही है. जब यह शरीर से अलग होकर गिरेगी तब पर्वतों के टकराने से बद्रीनाथ के सारे रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे.तब भगवान विष्णु की पूजा बद्री में ही होगी. यह तपोवन से एक किलोमीटर दूर जोशीमठ के समीप है. जोशीमठ वो स्थान है, जहां ज्ञान प्राप्ति से पहले आदि शंकराचार्य ने शहतूत के वृक्ष के नीचे कठोर तप किया था.
यह कल्पवृक्ष (KalpVriksha) जोशीमठ के पुराने शहर में स्थित है. सैकड़ों श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं.इस वृक्ष के नीचे भगवान ज्योतिश्वर महादेव पदासीन है. मंदिर के एक हिस्से में जगतगुरु शंकराचार्य की ओर प्रज्जवलित लौ है. माना जाता है कि इस अमर ज्योति के दर्शन से मनुष्य जीवन का माया मोह खत्म हो जाता है. इस पवित्र ज्योति के दर्शन से मानव को एक कल्प यज्ञ के बराबर पुण्य का फल मिलता है. बद्रीनाथ के इतर जोशीमठ प्रथम धाम या मठ या आधार शिविर है. शंकराचार्य ने इसकी स्थापना के बाद सनातन धर्म के सुधार के लिए निकल पड़े.
डिस्क्लेमर : यह जानकारी पौराणिक मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों की जानकारी पर आधारित है, हम ऐसी मान्यताओं की पुष्टि का दावा नहीं करते...)
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