तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद, दर्शन करने देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु
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तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद, दर्शन करने देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु

तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ जी के कपाट सोमवार लग्न के अनुसार विधि विधान के साथ ठीक 11 बजकर 30 मिनट पर शीतकाल के लिए विधिवत बंद हो गये. 

तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ के कपाट शीतकाल के लिए बंद, दर्शन करने देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु

हरेन्द्र नेगी/रुद्रप्रयाग: पंचकेदारों में तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ जी के कपाट सोमवार लग्न के अनुसार विधि विधान के साथ ठीक 11 बजकर 30 मिनट पर शीतकाल के लिए विधिवत बंद हो गये. एशिया के सबसे ऊंची चोटी पर विद्यमान भगवान तुंगनाथ जी विराजमान हैं, ये स्थान उत्तराखण्ड़ के सबसे सुन्दर स्थानों में गिना जाता है. हर वर्ष हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से भगवान के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं.

भगवान तुंगनाथ के कपाट बंद होने के बाद भगवान तुंगनाथ की चलविग्रह उत्सव डोली उच्चय कैलाश से रवाना होकर अपने विभिन्न यात्रा पड़ावों पर भक्तों को दर्शन व आर्शीवाद देते हुए सुन्दर मखमली बुग्यालों में नृत्य करते हुए ढोल की थाप की मधुर धुनों के साथ अपने प्रथम प्रवास लिए चोपता बाजार पहुंचेगी.इस वर्ष भी भगवान तुंगनाथ के लिए हजारों श्रद्धालु धाम में पहुंचे.

दूसरे पड़ाव 8 नवम्बर- भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह डोली अपनी प्रथम पडाव से दूसरे बनियाकुण्ड ,दुग्गलबिटटा , मक्कू बैण्ड, होते हुए बनातोली पहुंचेगी. भगवान तुंगनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली का अंतिम प्रवास के लिए भण्डकुण्ड पहुंचेगी.

9 नवम्बर तृतीय प्रवास - भगवान तुंगनाथ की डोली भण्ड़कुण्ड से चलकर अपने गददीस्थल मक्कूमठ मे विराजमान होगी. 10 नवम्बर से भगवान तुंगनाथ की शीतकालीन पूजा मक्कूमठ में बैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शुरू होगी. भगवान के आगमन पर मक्कूमठ में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. जहां अनेक प्रकार व्यंजन भोग के लिए गांव के महिला पुरूषों द्धारा बनाये जाते हैं तथा भगवान चढ़ाया जाता है. इस अवसर पर लोगों में काफी उत्सुकता रहती है. 6 माह तक भगवान के दर्शन इसी स्थान पर किये जायेंगे.

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