बाबा की नगरी में 'मसाने' वाली होली, जहां रंग नहीं, उड़ती है 'चिता की राख'
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बाबा की नगरी में 'मसाने' वाली होली, जहां रंग नहीं, उड़ती है 'चिता की राख'

वाराणसी का मणिकर्णिका घाट, जहां आम तौर पर मातमी माहौल पसरा रहता है, क्योंकि यहां पर 24 घंटे चिताएं जलाई जाती हैं. लेकिन आज यहां पर शिव भक्त इन्हीं चिताओं की राख से न सिर्फ होली खेलते हैं...

बाबा की नगरी में 'मसाने' वाली होली, जहां रंग नहीं, उड़ती है 'चिता की राख'

वाराणसी: होली एक ऐसा त्योहार है, जिसे कई अनोखे तरीकों से मनाया जाता है. देवी-देवताओं की भूमि पर तो होली ऐसे अनोखे तरीके से मनाई जाती है, कि आप भी जानकर हैरान रह जाएंगे. कृष्ण जन्मभूमि मथुरा में बरसाने की लड्डू और लठमार होली से तो हर कोई वाकिफ है. वहीं, शिव नगरी काशी में लोग चिता की राख से होली खेलते हैं. इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. 

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मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है चिताओं की राख से होली
वाराणसी का मणिकर्णिका घाट, जहां आम तौर पर मातमी माहौल पसरा रहता है, क्योंकि यहां पर 24 घंटे चिताएं जलाई जाती हैं. यहां पर शिव भक्त इन्हीं चिताओं की राख से न सिर्फ होली खेलते हैं, बल्कि थोड़ी देर के लिए जन्म और मृत्यु के जीवन चक्र से बाहर निकलकर लोग सब कुछ भूल जाते हैं. मणिकर्णिका घाट पर चारों ओर हर-हर महादेव के नारे लगाते हुए लोग खूब मस्ती करते हैं. 

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भोलेनाथ भक्तों के साथ खेलते हैं होली
वाराणसी में होली की शुरुआत वैसे तो बाबा विश्वनाथ के गौना होने के बाद होती है, लेकिन श्मशान घाट पर शंकर के गणों के द्वारा चिता की राख से होली खेलने के बाद ही आम लोग रंगों से होली खेलना शुरू करते हैं. मान्यता है कि भूतभावन भोले नाथ अपने गणों के साथ होली खेलने श्मशान घाट पर आते हैं. ऐसा दृश्य शायद ही कहीं देखने को मिलता होगा, जहां एक तरफ चिता जल रही है और दूसरी तरफ हर हर महादेव के नारे के साथ होली खेली जा रही है.

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खुशी और गम का अनूठा संगम 
माना जाता है कि होली गीत पर गणों का नृत्य भी भगवान भोलेनाथ को खूब पसंद आता है. भगवान शिव के गण अपनी झोली में चिता भस्म की राख भरकर जमकर होली खेलकर तृप्त होते हैं. काशी की होली में राग और विराग, खुशी और गम दोनों का एक साथ समावेश नजर आता है. 

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मणिकर्णिका घाट का महत्व
गौरतलब है कि मणिकर्णिका घाट वाराणसी का वह महाश्मशान है, जहां 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं. मान्यता है कि इस श्मशान घाट पर जिसकी भी चिता जलाई जाती है, उसे भगवान भोलेनाथ ताडक मंत्र देकर सीधे मोक्ष प्रदान कर देते हैं. यही कारण है कि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित झारखंड से भी लोग दाह संस्कार के लिए आते हैं. 

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जीवन और मृत्यु को दिया जाता है सामान्य महत्व
आज की चिता भस्म की होली उसी राग-द्वेष, जीवन-मरण और सुख-दुख से ऊपर उठ कर मनाने का पर्व है और परम्परा भी. काशीवासियों ने इसे न सिर्फ जीवित रखा हुआ है, बल्कि उसे विधिवत सम्पन्न भी करते हैं. यहां पर नजारा बेहद विचित्र होता है. एक तरफ चिताएं जल रही हैं, तो दूसरी तरफ मस्ती में लोग उसी की राख से होली खेल रहे हैं. इस तरह का अद्भुत नजारा दुनिया में शायद ही कहीं देखने को मिले, जहां जितना महत्व जीवन को दिया जाता है, उतना ही मृत्यु को भी प्रदान किया जाता है. 

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यह होली मोक्ष को पाने का त्योहार है
वाराणसी की यह होली जीवन चक्र से छुटकारा पाने या मोक्ष पाने का नाम है. काशी के इस अद्भुत उत्सव में साफ दिखता है कि शंख ,घंटा घड़ियाल, डमरू और हर-हर महादेव की गूंज के साथ बनारस की होली न सिर्फ अद्भुत है, बल्कि कल्पना से भी परे है.

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