एशिया के वाटरहाउस कहे जाने वाले हिस्से में भी जलसंकट, दूर करने के लिए बनाया प्लान
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एशिया के वाटरहाउस कहे जाने वाले हिस्से में भी जलसंकट, दूर करने के लिए बनाया प्लान

नीति आयोग की रिपोर्ट में उत्तराखंड सहित देश भर में जल संकट की विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई थी. नीति आयोग ने 9 जुलाई 2018 को स्प्रिंग रिवाईवल के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड सहित देश के लगभग सभी राज्य बड़े जल संकट से जूझ रहे हैं.

ताजा रिपोर्ट में उत्तराखंड में भी जल संकट की बात कही गई है. फोटो : जी न्यूज

देहरादून : एशिया के वाटर हाऊस हिमालय में भी जल संकट खडा हो गया है. नीति आयोग की रिपोर्ट में आंकड़े जारी किए थे, उसमें ये डराने वाली तस्वीर पेश की गई थी कि भविष्य में देश के सामने बडा जलसंकट खडा होने जा रहा है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नही रहेगा, लेकिन पहली बार जल संरक्षण की दिशा में इससे जुड़े विभागों का एक समूह तैयार किया गया है जो अगले वर्ष बारिश के मौसम से पहले धरातल पर कार्ययोजना तैयार कर झरनों और प्राकृतिक जलस्रोतों के प्रबंधन पर नीति तैयार करेगा.

वन विभाग की पहल पर जल संरक्षण से जुड़े सभी विभागों को वैज्ञानिक तरीके से सूख रहे प्राकृतिक जलस्रोतों की धाराओं के प्रबंधन और भूजल को रिचार्ज की जाएगा. राज्य में पहली बार प्राकृतिक जल स्रोतों की जियो मैपिंग भी की जाएगी. प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने कहा कि प्रदेश में 211 जलस्रोतों का चिन्हीकरण कर लिया गया है. अब इन्हें रिचार्ज की कार्ययोजना तैयार की जाएगी. नीति आयोग ने भी जारी की है जल संकट की विस्तृत रिपोर्ट

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नीति आयोग की रिपोर्ट में उत्तराखंड सहित देश भर में जल संकट की विस्तृत रिपोर्ट जारी की गई थी. नीति आयोग ने 9 जुलाई 2018 को स्प्रिंग रिवाईवल के संबंध में एक रिपोर्ट जारी की थी. रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड सहित देश के लगभग सभी राज्य बड़े जल संकट से जूझ रहे हैं. उत्तराखंड से गंगा, यमुना, रामगंगा, काली सहित दर्जनों नदियां निकलती हैं, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिम बंगाल राज्यों को जल आपूर्ति करते है. इन सभी नदियों में जलप्रवाह ग्लेशियर और वन जल स्रोतों से आता, जिसमें बुग्लाय और वनों मे स्थित प्राकृतिक जल स्रोत प्रमुख है. नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि हिमालय क्षेत्र के प्राकृतिक जल स्रोत खासतौर पर वन क्षेत्रों में स्थित जलधाराएं और झरने सूख रहे हैं और पिछले 150 वर्षो में करीब 60 प्रतिशत तक प्राकृतिक जल स्रोत सूख चुके हैं.

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रिपोर्ट में अल्मोड़ा जिले में ही डेढ़ सौ सालों में 300 झरनें और प्राकृतिक जलस्रोत सूखने का जिक्र किया गया है जो ना सिर्फ भयावह बल्कि भविष्य के सबसे बडी चिंता का विषय भी है. इस भयावह तस्वीर के बाद वन विभाग ने जल संरक्षण से जुड़े सभी राज्य और केन्द्रीय संस्थानों का एक समूह तैयार किया है और इसमें प्रतिष्ठित एनजीओ को भी शामिल किया है, जो इस दिशा में रणनीति तैयार करेंगे. एनजीओ ग्रामीण स्तर पर स्थानीय लोगों के वार्ता करेंगे. प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने बताया कि सभी विभाग अपने स्तर से जल संरक्षण पर कार्य कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद सकारात्मक परिणाम सामने नही आए. राज्य और केन्द्र के कई विभाग और संस्थान जल संरक्षण और वर्षा जल संचय के लिए कार्य कर रहे हैं. इन्हीं को देखते हुए सभी विभागों और केन्द्रीय संस्थानों को एक समूह तैयार किया गया है जो इस पर कार्य करेंगे. वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि विगत कई वर्षों से हिमालय में सर्दियों के समय बर्फबारी कम हो रही है, जिससे भविष्य में जलसंकट का खतरा बढ सकता है.

मानसून से पहले सूखे जलस्रोत को रिवाइव के लिए शुरू होगा कार्य
हिमालयी क्षेत्र उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और नार्थ ईस्ट के राज्यों में 60 प्रतिशत लोग झरनों और प्राकृतिक जल स्रोत पर निर्भर रहते है. जैव विविधता संरक्षण और स्थानीय लोगों के साथ ही वन्यजीवों के लिए भी ये जलस्रोत को संरक्षित करना बेहद आवश्यक है. अंदाजा लगाइए अगर सभी जलस्रोत सूख जाएंगे तो पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा और महत्वपूर्ण बात ये है कि अधिकर झऱनें और प्राकृतिक जलस्रोतों का कैचमेंट वन क्षेत्र में स्थित है.

वन विभाग ने इसके लिए स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट समूह तैयार किया है, जिसमें योजना आयोग के सदस्य,जल संस्थान,पेयजल निर्माण निगम,स्वजल परियोजना,ग्राम्या, नेशनल इन्ट्टियूट आफ हाईड्रोलाजी,भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान को शामिल किया गया है. वन विभाग को इसमें नोडल विभाग बनाया गया, जो आवश्यकता के अनुसार अन्य विभागों और विशेषज्ञों को इसमें शामिल करेगा. विभागों का समूह नीति आयोग की 9 जुलाई को जारी रिपोर्ट का भी संज्ञान लेगा और सभी प्राकृतिक झरनों की मैपिंग भी किया जाएगा. प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने कहा कि इस वर्ष मानसून से पहले धरातल पर कार्ययोजना तैयार कर ली जाएगी।प्रमुख वन संरक्षक ने कहा कि जो जलस्रोत सूख चुके और यो मौजूद है उन सभी की जियो मैपिंग की जाएगी.

ग्लेशियर ही नही बल्कि नदियां,झरने भी तेजी से सूख रहे हैं
उत्तराखंड हिमालय से निकल रही जलधाराएं सूख रही है. नीति आयोग की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. उत्तराखंड में विगत कई वर्षो में कम बर्फबारी, वनों में भीषण आग और वनों के अवैध कटान से स्थिति और भी भयावह होती जा रही है. रिपोर्ट में उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड की स्थिति काफी खराब है. वाडिया हिमालयन भू विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों की मानें तो हिमालय में हो रहे वनों के कटान और वन प्रबंधन बेहतर ना होने के कारण ना सिर्फ उत्तराखंड में ही जल प्रबंधन की स्थिति नाजुक है, बल्कि इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश,बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल तक हुआ है. वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक पीएस नेगी कहते है कि भविष्य के लिए जलसंकट बड़ी समस्या है. उन्होने बताया कि कई विभाग इसके लिए कार्य तो करते हैं, लेकिन वैज्ञानिक तरीके से कार्य नही होने से सकारात्मक परिणाम नही आते.

अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जल संरक्षण का कार्य किया जाएगा तो फिर अच्छे परिणाम सामने आएंगे. उत्तराखंड में जलवायु परिवर्तन का हिमालय पर असर भी दिख रहा है. 2016 में 67 फीसदी, 2017 में 52 फीसदी और 2018 में 66 फीसदी बारिश रिकार्ड हुई है. गंगा नदी में हुए शोध के आकड़ों को देखे तो देवप्रयाग में गंगा नदी में 30 प्रतिशत जल ग्लेशियर और 70 प्रतिशत जल जंगलों, बुग्यालों, छोटी नदियों और जलधाराओं से आता है. अब सर्दियों के समय में बर्फबारी कम हो रही है, जिससे स्थिति और भी भयावह हो चुकी है. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए हर साल करोड़ों की धनराशि पानी की तरह बहाई जाती है. अब सभी विभागों को एकजुट कर एक समूह बनाया गया है, तो साफ है आने वाले समय में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे. विशेषज्ञों की राय और विभागों के बीच समन्वय बनाया गया तो भविष्य में प्राकृतिक जलस्रोत फिर से रिचार्ज हो सकते हैं. वन विभाग के पास करीब 20 करोड़ की धनराशि है, जिसमें वर्षाजल संरक्षण पर कार्य किया जाना है. इसी तरह सिंचाई विभाग, पेयजल, ग्राम्या, सहित कई विभाग जल संरक्षण पर कार्य कर रहे है.

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