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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में श्रम कानून में हुए बदलाव को लेकर सियासत लगातार गरमाती जा रही है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने ट्वीट कर श्रम कानून को लेकर योगी सरकार को आड़े हाथों लिया है. उन्होंने कानून में हुए बदलाव को अलोकतांत्रिक और अमानवीय करार दिया.
प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव ने ट्विटर पर लिखा 'UPGovt द्वारा अध्यादेश के माध्यम से श्रम कानूनों में किए गए अलोकतांत्रिक व अमानवीय बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करने वाले ‘श्रम-क़ानून’ के अधिकांश प्रावधानों को 3 साल के लिए स्थगित कर दिया गया है। क्या आपदा की कीमत केवल मजदूर चुकायेंगे?'
UPGovt द्वारा अध्यादेश के माध्यम से श्रम कानूनों में किए गए अलोकतांत्रिक व अमानवीय बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा करने वाले ‘श्रम-क़ानून’ के अधिकांश प्रावधानों को 3 साल के लिए स्थगित कर दिया गया है। क्या आपदा की कीमत केवल मजदूर चुकायेंगे?
— Shivpal Singh Yadav (@shivpalsinghyad) May 10, 2020
आपको बता दें कि कोरोना काल में योगी सरकार ने मौजूदा और नई औद्योगिक इकाइयों की मदद करने के लिए श्रम कानूनों को लेकर अध्यादेश पारित किया है. राज्य मंत्रिमंडल ने अगले तीन साल के लिए तीस से अधिक श्रम कानूनों को निष्प्रभावी कर दिया है.
श्रम विभाग में आठ कानून बरकरार
श्रम विभाग में 40 से अधिक प्रकार के श्रम कानून हैं, अध्यादेश के तहत 30 से अधिक निष्प्रभावी हो गए हैं, जबकि लगभग आठ को बरकरार रखा गया है, जिनमें 1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और 1966 का अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम शामिल है. महिलाओं और बच्चों से संबंधित कानूनों के प्रावधान जैसे कि मातृत्व अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम और मजदूरी भुगतान अधिनियम के धारा 5 को बरकरार रखा है, जिसके तहत प्रति माह 15,000 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति के वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है.
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अन्य श्रम कानून, जो औद्योगिक विवादों को निपटाने, श्रमिकों व ट्रेड यूनियनों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, ठेका व प्रवासी मजदूर से संबधित है, उन्हें तीन साल तक के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है.
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