ZEE जानकारीः हमारे देश में मीडिया ट्रायल कितना जरूरी है?
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ZEE जानकारीः हमारे देश में मीडिया ट्रायल कितना जरूरी है?

हमारा मानना है, कि कई समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनमें Media Trial का होना बहुत ज़रुरी है. समाज में मौजूद खलनायकों को इस शब्द से बहुत परेशानी होती है. 

ZEE जानकारीः हमारे देश में मीडिया ट्रायल कितना जरूरी है?

पिछले दो दिनों में हमने मीडिया ट्रायल की वजह से केंद्रीय मंत्री MJ अकबर का इस्तीफा देखा और लखनऊ के एक रईसज़ादे को मीडिया ट्रायल की वजह से ही.. सरेंडर करना पड़ा. इसलिए आज विश्लेषण की शुरुआत हम एक सवाल के साथ करना चाहते हैं. और वो सवाल ये है, कि हमारे देश में Media Trial कितना ज़रूरी है? इस शब्द को लेकर आए दिन बहस होती रहती है. कई लोगों की ये राय है, कि समाज में किसी भी चीज़ का Media Trial नहीं होना चाहिए. लेकिन हम इस विचार से सहमत नहीं है. हमारा मानना है, कि कई समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनमें Media Trial का होना बहुत ज़रुरी है. समाज में मौजूद खलनायकों को इस शब्द से बहुत परेशानी होती है. उन्हें Media Trial बिल्कुल पसंद नहीं है. और वो इससे घबराते हैं.

इसी घबराहट का नतीजा है, कि जो आदमी 3 दिन पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास से सिर्फ 8 किलोमीटर दूर एक Five star hotel के बाहर हाथ में Pistol लेकर, एक लड़के और लड़की को धमकी दे रहा था. उन्हें अभद्र भाषा में ये कहा रहा था, कि 'तू कल मिल मुझसे, तुझे बताता हूं, मैं लखनऊ से हूं. वही व्यक्ति आज अचानक संस्कारी अवतार में सामने आ गया और खुद को 'सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र' बताने की कोशिश की. खलनायकों का फॉर्मूला ये है कि ये पहले मनचाहा अपराध करेंगे.. और जब मीडिया सवाल उठाएगा तो कह देंगे कि उनका मीडिया ट्रायल हो रहा है.

BSP के पूर्व सांसद राकेश पांडे का बेटा आशीष पांडे, Five Star Hotel में बंदूक लहराने के बाद 3 दिन तक गायब था. लेकिन, आज वो अचानक 'प्रकट' हो गया. हालांकि इसके लिए आशीष पांडे ने उसी.. Social Media को अपना हथियार बनाया. जिसकी बदौलत समाज और सिस्टम ने उसका 'गुंडों' वाला चेहरा देखा था. यानी पहले वो Social Media के ज़रिए फंसा और अब वो उसी का इस्तेमाल करके खुद को भोला-भाला और मासूम साबित करने की कोशिश कर रहा है. इस व्यक्ति ने आज ये Video, दिल्ली के पटियाला House कोर्ट में सरेंडर करने से पहले जारी किया. और ये कहा, कि पिछले 3 दिनों से उसका Media Trial हो रहा है. और देश का Media पूरे देश में उसे इस तरह Project कर रहा है, जैसे वो कोई आतंकवादी है. सबसे पहले आप Pistol वाले गुंडे से 'राजा हरिश्चंद्र' बने आशीष पांडे का ये छोटा सा बयान सुनिए. फिर हम इसके द्वारा कही गई एक-एक बात को उसी की भाषा में Decode करेंगे. 

अभी आपने इसके बयान का सिर्फ एक हिस्सा सुना. लेकिन इसने देश के नाम क़रीब ढाई मिनट का संदेश जारी किया है. इस Video में आशीष पांडे ये तो स्वीकार कर रहा है, कि तीन दिन पहले सुबह करीब साढ़े 3 बजे वो घटनास्थल पर मौजूद था. लेकिन, वो ये मानने को तैयार ही नहीं है, कि उसने वहां पर मौजूद लड़की या लड़के के साथ कोई अभद्र व्यवहार किया, उन्हें बंदूक दिखाई या उन्हें अपशब्द कहे. आज के बयान और 3 दिन पहले के Videos में ज़मीन-आसमान का अंतर है. आज वो ये कह रहा है, कि उसने उस रात लड़के या लड़की से कोई बदतमीज़ी नहीं की थी. ना बंदूक लहराई थी और ना ही अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया था. लेकिन सच क्या है, ये आपने देख लिया. अब आज के एक और बयान को तस्वीरों के साथ Match करके देखते हैं. 

आपने इस व्यक्ति की आज की भाषा और उस रात की हरकतों पर ध्यान दिया होगा. तीन दिन पहले बंदूक दिखाने वाला.. आज कह रहा है कि मैं सत्यवादी हूं. आज के वीडियो में आशीष पांडे ने कहा है कि मैं एक बिजनेसमैन हूं. एक Politician का बेटा होना या Politician का भाई होना, कोई गुनाह नहीं है. अपने मुंह से अपनी तारीफ करते हुए उसने ये भी कहा कि वो Tax भरता है और 20 साल से ऐसा करता आया है. और उसके खिलाफ आज तक कभी किसी ने एक थप्पड़ मारने की भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई है. और उसके पास जो Pistol है, उसका लाइसेंस भी उसके पास है. लेकिन हमारा सवाल ये है, कि अगर किसी के पास हथियार का लाइसेंस है भी, तो क्या उसे खुलेआम गुंडागर्दी करने का लाइसेंस मिल जाता है. अगर कोई व्यक्ति Income Tax भरता है, तो क्या उसे रात में तीन बजे बंदूक लहराने की खुली छूट मिल जाती है. हमने दो दिन पहले भी ये सवाल उठाए थे, कि ऐसे लोगों को Gun का लाइसेंस मिल कैसे जाता है? 

फिलहाल इस केस का Update ये है, कि दिल्ली पुलिस ने अदालत से आशीष पांडे के लिए चार दिन की Police Custody मांगी थी. लेकिन अदालत ने पुलिस को सिर्फ एक दिन की Police Custody दी है. इस दौरान पुलिस ये जांच करेगी, कि उस रात हुआ क्या था ? आशीष पांडे उस रात जो Pistol दिखा रहा था, उसका लाइसेंस उसके पास है भी या नहीं ? 

दिल्ली पुलिस ने आशीष पांडे के खिलाफ Arms Act की धारा 25/27/59 के तहत केस दर्ज किया है. और इस Act में अधिकतम 3 साल की सज़ा का प्रावधान है. ये Act अंग्रेज़ों के ज़माने से चला आ रहा है. जिसमें आखिरी बार वर्ष 1959 में बदलाव किए गए थे. यानी 59 साल पहले. लेकिन इन 59 सालों में बहुत कुछ बदल गया है. 59 साल पहले ना तो Social Media का ज़माना था और ना ही देश का Media इतना मज़बूत हुआ करता था. लेकिन, आज हालात बदल गए हैं. और हमें लगता है कि बदलते वक्त के साथ-साथ कानूनों में भी सुधार किए जाने की ज़रुरत है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इस बात की आशंका है कि कानून के Loop-holes का फायदा उठाकर ये व्यक्ति आज़ाद हो जाएगा.. और एक बार फिर अपनी पिस्टल के साथ खुलेआम घूमेगा. और इसमें उसकी मदद करेंगे, उसके वकील. 

आशीष पांडे के वकील अब अदालत में ये साबित कर देंगे कि आशीष पांडे फाइव स्टार होटल में गुंडागर्दी नहीं.. बल्कि सत्संग कर रहा था.... समाजसेवा कर रहा था और उससे समाज को कोई ख़तरा नहीं है. और फिर उसे ज़मानत मिल जाएगी. जो कुछ भी आशीष पांडे ने किया..... हो सकता है उसे कानूनी रूप से छोटे अपराधों में गिना जाए.. लेकिन नैतिक रूप से ये बहुत बड़ा अपराधी है. और समाज के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है.यहां आपको, वर्ष 2013 में आई हिन्दी फिल्म Jolly LLB का एक Scene भी देखना चाहिए. इससे आपको ये पता चलेगा, कि कोर्ट-कचहरी में कानून से खेलने वाले लोग... सच को झूठ और झूठ को सच में कैसे बदल देते हैं ?इस Scene में जो कुछ भी दिखाया गया है, वो आशीष पांडे के केस में सच साबित हो सकता है. और उसे निर्दोष साबित करने के लिए उसके वकील 'साम-दाम-दंड-भेद' हर प्रकार की रणनीति का इस्तेमाल करेंगे.

सरेंडर करने से पहले Media और Social Media में अपना Video जारी करना और लोगों की सहानुभूति बटोरना, उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है. लेकिन, जैसा कि हमने विश्लेषण की शुरुआत में कहा, ऐसे लोगों को Expose करने के लिए Media और Social Media सबसे बड़ी अदालत की भूमिका अदा कर सकती है. इन दोनों में कितनी शक्ति है, इसका एक उदाहरण कल ही देखने को मिल गया था. जब केंद्रीय मंत्री MJ अकबर को यौन उत्पीड़न के मामले में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. वो भी कोर्ट केस शुरु होने पहले. 

MJ अकबर पर कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था.. सब कुछ सिर्फ सोशल मीडिया पर था. अगर मीडिया ट्रायल ना होता तो ऐसा कभी नहीं होता.इसीलिए, हम कह रहे हैं, कि आप सभी को Media और Social Media की शक्ति को पहचानना होगा. और उसका सदुपयोग करना होगा. जिस दिन आपने इसकी ताकत पहचान ली, उस दिन कोई भी सड़कछाप गुंडा, बीच सड़क पर बंदूक लहराने से पहले 100 बार सोचेगा. और कोई भी रईस और शक्तिशाली इंसान, किसी को ये धमकी नहीं देगा, कि तू मिल मुझसे, लखनऊ का हूं मैं. ऐसे लोगों का सामाजिक तिरस्कार होना चाहिए. और उसका सबसे कारगर तरीका हमने आपको बता दिया है. मीडिया ट्रायल हमेशा बुरे नहीं होते... अगर इनकी शक्ति का सदुपयोग किया जाए तो देश में बहुत सारे सुधार किए जा सकते हैं.

अभी आपने हमारे समाज के भीतर मौजूद एक ऐसे व्यक्ति का चेहरा देखा, जो पहले बंदूक दिखाता है, फिर गालियां देता है और बाद में ये कहता है, कि मैंने तो कुछ किया ही नहीं. लेकिन अब आपको 'आपका' चेहरा दिखाते हैं. यहां पर 'आपके चेहरे' का मतलब है, 'समाज' का चेहरा. ये वही समाज है, जो Social Media पर Me Too, Campaign का समर्थन करता है. 'बलात्कारियों' को फांसी पर लटकाने की वकालत करता है. Candle Light मार्च निकालता है. लेकिन, इसी समाज में मौजूद कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो बलात्कार के एक आरोपी की चरण वंदना करते हैं. उसपर फूलों की वर्षा करते हैं. आज आपको समाज का ये चेहरा भी देखना चाहिए. 

जिस व्यक्ति पर फूलों की बरसात हो रही थी, वो केरल की एक नन के साथ यौन उत्पीड़न का आरोपी.. बिशप फ्रैंको मुलक्कल है. जो Kerala High Court से Conditional Bail मिलने के बाद जालंधर पहुंचा था. ये हमारे समाज का मानसिक दिवालियापन ही है, कि रेप के आरोपी के स्वागत सत्कार के लिए बड़े-बड़े अक्षरों में Hearty Welcome लिखा गया था और Hoardings लगाए गये थे.

. ऐसा लग रहा था, कि उनके समर्थक फूलों की बारिश करके, उनके सारे पाप धोने की कोशिश कर रहे हों. ये तो कुछ भी नहीं था, फूलों की बारिश के अलावा जालंधर में 'फ्रैंको मुलक्कल जिंदाबाद' के नारे भी लग रहे थे. हम दावे के साथ कह सकते हैं, कि आपने अपने जीवनकाल में बलात्कार के किसी आरोपी का ऐसा स्वागत आज से पहले कभी नहीं देखा होगा. जालंधर से दिल्ली की दूरी सिर्फ 370 किलोमीटर है. लेकिन, सोचने वाली बात ये है, कि कल ही जालंधर से 370 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद देश की राजधानी में एक केंद्रीय मंत्री को, सिर्फ यौन उत्पीड़न के आरोपों की वजह से अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन, दूसरी तरफ बलात्कार जैसे अपराध के आरोपी पर पुष्प वर्षा हो रही थी है. ये हमारे समाज का मानसिक पतन नहीं है तो और क्या है ?

यहां पर एक Extra विचार ये भी है, कि हमारे देश में MJ अकबर तो बहुत आसानी से Trend करने लगता है. लेकिन बलात्कार का आरोपी पादरी इस तरह ट्रेंड नहीं करता. आजकल लगभग हर रोज़ यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएं Me Too कैम्पेन चलाकर अपनी पीड़ा बता रही हैं. लेकिन, रेप के आरोपी पादरी पर फूलों की बरसात देखकर सब खामोश हैं. ना कोई Online Journalist आक्रोश दिखा रहा है, ना ही अंग्रेज़ी के पत्रकार कुछ बोल रहे हैं. बुद्धिजीवी भी शायद वैचारिक अवकाश पर चले गए हैं. और यही हमारे समाज की सबसे बड़ी विडंबना है. यहां पर विरोध प्रदर्शन भी अपने हितों के मुताबिक ही किए जाते हैं. 

जब कठुआ में एक बच्ची का गैंग रेप हुआ था. तब Social Media में बुद्धिजीवियों ने मिलकर ये Propaganda चलाया था कि उन्हें हिंदू होने पर शर्म आती है . उस वक्त हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए बड़ा अभियान चलाया गया था . लेकिन अब पादरी पर लगे रेप के आरोपो के बाद ये सभी लोग Social Media से गायब हैं . इससे भी ये साबित होता है कि बुद्धिजीवी रेप के आरोपी का धर्म देखने के बाद अपना Agenda तय करते हैं . ये दोहरे मापदंड देश के लिए और समाज के लिए बहुत खतरनाक है .

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