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वॉशिंगटन: तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान (Afghansitan) पर कब्जा जमा लिया है. इसके साथ ही दुनिया के देश 2 गुटों में बंटते नजर आ रहे हैं. एक वो गुट है जो तालिबान के खिलाफ है और दूसरा उसके पक्ष में. तालिबान को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन देने वाले देशों की बात करें तो इसमें पाकिस्तान और चीन (Pakistan-China) के नाम अनायास ही सामने आ जाते हैं. ऐसे में इन दोनों देशों के प्रोजेक्ट और उनके रवैये की पड़ताल करना जरूरी हो जाता है.
चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (Belt and Road Initiative) की बात करें तो इसे लाने के पीछे 2 योजनाएं हैं. पहला काबुल (Kabul) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच यात्रा को सुविधाजनक बनाना, जो कि व्यापक परिवहन का हिस्सा होगा और दूसरा, अफगानिस्तान की खनिज समृद्धता का फायदा उठाना.
चीन धीरे-धीरे अपना प्रभाव वैसे ही बढ़ाने की कोशिश कर रहा है जैसा उसने लैटिन अमेरिका में किया था. वहां उसने अपना जमकर कारोबार फैलाया है. अब वह अफगानिस्तान में इस चरमपंथी विचारधारा वाले और पाकिस्तान द्वारा समर्थित इस छोटे समूह तालिबान का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है, ताकि वह अपने मंसूबों को आसानी से अंजाम दे सके.
रेड लैंटर्न एनालिटिका के साथ एक साक्षात्कार में यूएस टी पार्टी आंदोलन के सह-संस्थापक माइकल जॉन्स ने कहा है कि इस क्षेत्र में भारत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. चीन की सत्तारूढ़ पार्टी चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की बढ़ती आक्रामकता के बीच भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंध वाकई में बहुत महत्वपूर्ण हैं.
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अमेरिकी विदेश नीति के प्रमुख विशेषज्ञ माइकल जॉन्स कहते हैं, 'सीसीपी और तालिबान के बीच का संबंध गहरा है लेकिन वर्तमान में उसकी गहराई को कम आंका जा रहा है. तालिबान के मामले में चीन की भूमिका इतनी गहरी है कि उसकी जांच की जा सकती है और यह जांच होनी चाहिए.वरना सीसीपी और तालिबान के बीच का यह संबंध अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर सकता है. तालिबानी कभी नहीं बदल सकते. वैश्विक स्तर पर जेहाद फैलाने का उनका इरादा और उसे पूरा करने के लिए उनकी क्रूरता अभी भी वही रहेगी.'
जॉन्स आगे कहते हैं, 'बल्कि ग्लोबल जेहाद की इस मुहिम में पाकिस्तान के आईएसआई से उन्हें अच्छा मार्गदर्शन दिए जाने की पेशकश भी की जा रही है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उन्हें संरक्षण दे रही है. यह सच है कि 9/11 की साजिश ओसामा बिन लादेन ने रची थी, लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि उस समय तालिबान शासन ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसे बहुत बढ़ावा दिया था. उन्होंने उसे सुरक्षित पनाहगाह दी थी. दरअसल, तालिबान का उदय वास्तव में पाकिस्तान की मदद से हुआ है जो काबुल में ऐसी सरकार देखना चाहता था जिसकी दुनिया की प्रमुख ताकतों में कुछ खास दिलचस्पी ना हो. इसी कारण सीसीपी को छोड़कर कोई भी सरकार तालिबान को मान्यता नहीं दे रही है.'
अमेरिका, ब्रिटेन का करीबी सहयोगी है और ब्रिटिश राष्ट्रपति बोरिस जॉनसन ने कहा है कि उन्हें तालिबान से बात करने की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में अमेरिका का रुख क्या होगा, इस पर माइकल ने कहा कि 'इस समूह को कभी भी मान्यता नहीं दी जानी चाहिए. साथ ही कहा कि उनकी राजनयिक मान्यता अब तक नहीं बढ़ाई गई है. वहीं चीन के दीर्घकालिक लक्ष्यों को लेकर जॉन ने कहा कि चीन की संयुक्त राज्य को पार करने और विभिन्न क्षेत्रों में अपना एकाधिकार जमाने की आक्रामक योजना थी. वहीं चीन की शी-जिनपिंग सरकार हमेशा से मध्य एशिया पर अपना नियंत्रण रखना चाहती है.'