आप पानी के बजाय 'जहर' तो नहीं पी रहे? ऑपरेशन 'गंदाजल' में सामने आई ये बड़ी सच्चाई
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आप पानी के बजाय 'जहर' तो नहीं पी रहे? ऑपरेशन 'गंदाजल' में सामने आई ये बड़ी सच्चाई

दिल्ली-एनसीआर में अब पीने (Water) लायक पानी नहीं बचा है. ज़ी न्यूज़ की पड़ताल में पता चला है कि करीब 80 प्रतिशत दिल्ली वासी दूषित पानी पी रहे हैं.  

आप पानी के बजाय 'जहर' तो नहीं पी रहे? ऑपरेशन 'गंदाजल' में सामने आई ये बड़ी सच्चाई

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए कि आप मेहमान बनके किसी के घर गए हैं और वो आपके लिए एक गिलास पानी (Water) लाता है. अक्सर ऐसा होता भी होगा और आप वो पानी पी लेते हैं. फिर आपको पता चलता है कि वो पानी इतना गंदा (Water Quality) था कि पीना तो दूर, उससे नहाने से भी आपको बीमारियां हो सकती है तो आप क्या करेंगे. 

  1. 28 हजार करोड़ रुपये का बोतल बंद पानी का बाजार
  2. सरकारें हर साल खर्च कर रही 4 लाख करोड़ रुपये 
  3. भारत में 500 तक का TDS मान्य

दिल्ली के 2 करोड़ लोगों के साथ ऐसा ही धोखा हुआ है. Zee News की टीम ने दिल्ली में 11 जगहों से पानी के सैंपल इकट्ठा किए और एक स्वतंत्र लैब में इनकी जांच कराई, जिसमें से 9 जगहों के सैंपल फेल हो गए. इसे आधार मान लिया जाए तो आप कह सकते हैं कि दिल्ली में लोगों के घरों में सप्लाई होने वाला 80 प्रतिशत पानी पीने के लायक नहीं है. अब आप सोचिए अगर देश की राजधानी का ये हाल है तो देश के बाकी इलाकों की स्थिति क्या होगी. 

28 हजार करोड़ रुपये का बोतल बंद पानी का बाजार

इनमें साउथ दिल्ली के वो इलाके भी शामिल हैं, जहां करोड़ों रुपये के मकान हैं लेकिन इन मकानों में भी पीने लायक पानी (Water) नहीं आता. इसमें North Avenue भी है, जो भारत की संसद से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है. 

जो पानी हमें प्रकृति की तरफ से मुफ्त में मिला हुआ है, जिस पानी ने पृथ्वी के 70 प्रतिशत हिस्से को घेर रखा है और जिसके लिए ग्लेशियर, नदियां, झरने और तालाब हम से एक रुपया भी नहीं वसूलते, वो अब हज़ारों करोड़ों रुपये का उद्योग बन गया है.

भारत में इस समय बोतल बंद पानी का बाज़ार करीब 28 हज़ार करोड़ रुपये का है, जो वर्ष 2023 तक बढ़कर 40 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का हो जाएगा. इसके अलावा भारत के लोग हर साल साढ़े 6 हज़ार करोड़ रुपये Water Purifiers पर भी खर्च करते हैं. भारत सरकार ने वर्ष 2019 में करीब 3 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये की एक योजना शुरू की थी, जिसका मकसद है देश के घर घर में नलों के जरिए पीने लायक साफ पानी पहुंचाना.

सरकारें हर साल खर्च कर रही 4 लाख करोड़ रुपये 

यानी साफ पानी (Water) की खोज में भारत के लोग और सरकारें हर साल 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर रही हैं, जो लगभग भारत के रक्षा बजट के बराबर है. फिर भी लोगों को साफ पानी नहीं मिल रहा. वहीं प्राइवेट कंपनियां आपको बोतल में बंद साफ पानी पिलाने के बदले आपसे हज़ारों करोड़ रुपये वसूल रही हैं.

इसलिए जो पानी देखने में आपको मुफ्त की चीज लगता है, वो असल में मुफ्त नहीं है. जब आपके घर में कोई मेहमान आता है तो आप उसे पानी पिलाने के बदले में उससे कोई पैसा नहीं लेते, और बचे हुए पानी को फेंक भी देते हैं. लेकिन अगर आप बाज़ार में जाएंगे तो आपको इसी पानी की कीमत चुकानी होगी. अगर आप दिल्ली जैसे शहर में घर के नल में आने वाला पानी पिएंगे तो आपको बीमारियों के रूप में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.

हमारी टीम ने जब दिल्ली के अलग अलग 11 इलाकों से लिए गए पानी के सैंपल्स की जांच एक Private Lab में कराई तो पता चला कि इनमें से 9 जगहों के सैंपल्स मानकों पर खरे नहीं उतरे. Bureau of Indian Standards यानी BIS के मुताबिक एक लीटर पानी में TDS यानी  Total dissolved solids की मात्रा अधिकतम 500 होनी चाहिए . TDS का अर्थ है वो खनिज और पदार्थ हैं, जो पानी में घुल जाते हैं. 

भारत में 500 तक का TDS मान्य

कम मात्रा में ये TDS आपके शरीर के लिए लाभदायक होता है क्योंकि इसमें खनिज छिपे होते हैं. World Health Organization के मुताबिक अगर एक लीटर पानी (Water) में TDS 300 से ज्यादा हो तो वो स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, जबकि भारत में 500 तक का TDS मान्य है. लेकिन दिल्ली में 11 में से जिन 9 इलाकों के पानी के सैंपल्स फेल हुए, उनमें TDS की मात्रा 500 से ज्यादा थी. इनमें से 4 जगहों का पानी तो दिल्ली की यमुना नदी से भी ज्यादा गंदा और जहरीला था. सिर्फ मोरी गेट और मौजपुर ही दो ऐसे इलाके थे.जहां पानी सुरक्षित मानकों पर खरा उतरा.

डॉक्टरों के मुताबिक अगर TDS की मात्रा 500 से ज्यादा हो तो वो पानी पीने लायक तो छोड़िए, नहाने लायक भी नहीं होता. ज्यादा TDS वाले पानी से आपको डायरिया, किडनी इनफेक्शन, पेट का इनफेक्शन, बुखार और उल्टी की शिकायत हो सकती है. इससे आपको त्वचा का भी इनफेक्शन हो सकता है. लंबे समय तक ऐसा पानी पीने से कैंसर जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

भारत में एक व्यक्ति दिन में औसतन 2 लीटर पानी पीता है. भारत की आबादी 135 करोड़ है और इस हिसाब से भारत के लोग दिन में 270 करोड़ लीटर पानी पी जाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि इसमें से आधे लोग हर रोज़ ऐसा ही गंदा और जहरीला पानी पीने पर मजबूर है. इस वजह से भारत में हर साल 2 लाख लोगों की असमय मौत हो जाती है.

भारत में इस समय सिर्फ ओडिशा का पुरी एक ऐसा शहर है, जहां आप किसी भी नल से पानी (Water) पी सकते हैं. यानी इस शहर में जितने भी नल है, उनमें हमेशा पीने लायक पानी आता है.

इन देशों में मिलता है सबसे साफ पानी

दुनिया में अमेरिका, Canada, जापान, ब्रिटेन और सऊदी अरब जैसे देश भी हैं, जहां नलों में हर समय पीने लायक पानी उपलब्ध होता है. अमेरिका जैसे देशों में तो लोग RO भी नहीं लगवाते क्योंकि वहां आप किसी भी नल से आ रहा पानी पी सकते हैं. इसके अलावा फिनलैंड, पोलेंड, स्पेन, क्रोएशिया, बेल्जियम, जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में भी ये सुविधा लगभग हर जगह उपलब्ध है. 

भारत के लोगों की किस्मत अच्छी नहीं है, हमारे देश में आज भी लोगों को पानी (Water) के मामले में 999 का TDS और हवा के मामले में 999 का AQI हासिल होता है. इसलिए भारत में हवा और पानी भी बिज़नेस मॉडल बन गए हैं. ये एक ऐसा बिज़नेस मॉडल है, जिसके तहत पहले किसी चीज़ की किल्लत पैदा की जाती है और जब उस चीज़ की कमी हो जाती है तो उसे मनचाहे दामों पर बेचा जाता है.

उदाहरण के लिए दुनिया भर की एयरलाइंस शुरुआत के दो तीन साल सस्ती टिकट बेचती है. फिर जब लोगों को हवाई सफर की आदत हो जाती है तो हवाई जहाज़ की सीटें छोटी होती चली जाती हैं. इसके बाद आपको एक इंच बड़ी सीट देने के लिए भी Extra Charge देने के लिए मजबूर किया जाता है. ग्राहकों को इतना तंग किया जाता है कि वो छोटी छोटी सुविधाओं के लिए भी पैसा देने पर मजबूर हो जाएं. हवाई जहाज़ में एक्स्ट्रा सामान ले जाने के लिए भी पैसा देना पड़ता है. 

चीजों की लत लगवाती हैं कंपनियां

कुछ दिनों में ये भी हो सकता कि हवाई जहाज़ों में Air conditioner के भी पैसे मांगे जाने लगें. ये उदाहरण हमने आपको इसलिए दिया ताकि आप समझ जाएं कि कैसे उपभोक्ताओं को पहले किसी चीज़ की लत लगवाई जाती है और फिर उनसे हर बात पर पैसे वसूले जाते हैं.

हवाई जहाज़ों में तो आज भी भारत के बहुत कम लोग सफर करते हैं लेकिन सांस सब लेते हैं और पानी भी सब पीते हैं. इसलिए अब ये दोनों चीजें नए उद्योग में बदल रही है. Water Purifier बेचने वाली कंपनियां आपको साफ पानी का वादा करती हैं तो Air Purifier बनाने वाली कंपनियां आपको शुद्ध हवा बेचती हैं.

प्रदूषण रोकने के लिए लग रहे स्मॉग टावर्स

अब तो सरकारें भी इस बिज़नेस मॉडल को समझने लगी हैं. शहरों में हवा साफ करने वाले Smog Towers लगाए जा रहे हैं, जिनकी कीमत करोड़ों में होती है. कुछ दिनों बाद यही Smog Towers पैसा कमाने का ज़रिया बन जाएंगे क्योंकि पहले ऐसे घरों की कीमत ज्यादा होती थी, जो Park Facing होते थे या जहां से सूर्य की रोशनी अच्छी आती थी यानी जो East Facing होते थे वो घर महंगे बिकते थे. या फिर जो किसी Metro Station, बाज़ार या बस अड्डे के पास होते थे. थोड़े दिनों के बाद Builders कहेंगे कि उनके मकान महंगे इसलिए है क्योंकि वो Smog Tower Facing हैं और लोग खुशी खुशी इसके लिए ज्यादा पैसे देने के लिए तैयार हो जाएंगे.

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कुल मिलाकर उद्योगपति Smog Towers को नए ज़माने के पेड़ बताने लगेंगे और बोतल बंद पानी (Water) को गंगा जल बताकर बेचने लगेंगे और लोग खुशी खुशी इसके लिए पैसे चुकाएंगे क्योंकि 75 वर्षों में सरकारें लोगों को साफ पानी और हवा भी उपलब्ध नहीं करा पाई है. हालांकि सभी सरकारों ने इसके लिए वादे जरूर किए हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी अब ऐसा ही एक नया वादा किया है. 

उन्होंने कहा है कि वे वर्ष 2025 तक यमुना को पूरी तरह साफ कर देंगे और खुद उसमें डुबकी लगाएंगे. अरविंद केजरीवाल यमुना को साफ करने की बात कर रहे हैं. लेकिन दिल्ली के घरों में पीने लायक साफ पानी कब आएगा, ये भी सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए. यमुना साफ होगी या नहीं ये तो हम नहीं कह सकते लेकिन हम इतना ज़रूर कह सकते हैं कि दिल्ली ही क्या देश के किसी भी हिस्से के नागरिक 999 का AQI और 1000 का TDS..Deserve नहीं करते और सरकारों को इस बारे में सोचना चाहिए.

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