यूक्रेन में एक भारतीय छात्र की मौत के क्या हैं मायने? War Zone में गलती पड़ती है भारी
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यूक्रेन में एक भारतीय छात्र की मौत के क्या हैं मायने? War Zone में गलती पड़ती है भारी

War Zone में सबसे पहले सरकारी इमारतों और सैन्य अड्डों को निशाना बनाया जाता है. इसलिए इन जगहों से दूर रहने की सलाह दी जाती है. बमबारी और Shelling से बचने के लिए लोगों को Bomb Shelters और Basement एरिया में शरण के लिए कहा जाता है.

यूक्रेन में एक भारतीय छात्र की मौत के क्या हैं मायने? War Zone में गलती पड़ती है भारी

नई दिल्लीः एक पत्रकार होने के नाते हमारी कोशिश होती है कि हम सारी बड़ी ख़बरों को आप तक पहुंचाए, लेकिन कुछ खबरें ऐसी होती हैं, जिन्हें बताते समय दिल कहता है कि काश ये खबर हमारे हिस्से में ना आए. लेकिन एक ऐसी ही हृदय-विदारक ख़बर मैं आपको बताने वाला हूं. यूक्रेन में फंसे 21 साल के एक भारतीय छात्र की हवाई हमले के दौरान मृत्यु हो गई. विदेश मंत्रालय ने इस छात्र की मौत की पुष्टि की है और बताया है कि ये घटना यूक्रेन के खारकीव में आज सुबह हुई, जब वहां रशिया की सेना द्वारा रॉकेट हमले किए जा रहे थे. नवीन नाम के इस छात्र की उम्र 21 साल थी और वो कर्नाटक के हावेरी ज़िले का रहना वाला था. और पिछले साल चार साल से वो खारकीव की National Medical University में Medicine की पढ़ाई कर रहा था. इस छात्र ने खारकीव के एक Bomb Shelter में अपने दो दोस्तों के साथ शरण ली हुई थी. और जब उसकी मृत्यु हुई, तब वो खाने-पीने का सामान खरीदने के लिए अपने Bomb Shelter से सिर्फ़ 500 मीटर की दूरी पर मौजूद एक Super-market गया हुआ था.

  1. यूक्रेन में भारतीय छात्र की मौत
  2. पीएम मोदी ने पीड़ित परिवार से की बात
  3. युद्ध क्षेत्र में बरतनी होती है सावधानी

चेतावनी के बाद भी Bomb Shelter से बाहर गया

लेकिन इसी दौरान वहां रॉकेट हमला हुआ और इस Supermarket के आसपास मौजूद सभी लोगों की इसमें मौत हो गई. और इन लोगों में ये छात्र भी था. बेलारूस की सीमा से लगभग 40 किलोमीटर दूर बसे खारकीव शहर में इस समय हालात काफ़ी ख़राब हैं और यहां मंगलवार की दोपहर तीन बजे से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया है. और ये छात्र मंगलवार की सुबह कर्फ्यू हटने के बाद ही Super-market गया था. हालांकि ऐसा कहा जा रहा है कि Bomb Shelter में मौजूद कुछ लोगों ने उसे बाहर नहीं जाने की चेतावनी दी थी. लेकिन उसने इसे गम्भीरता से नहीं लिया. ये घटना ऐसे समय में हुई है, जब कुछ ही घंटे पहले भारत ने अपने नागरिकों को तत्काल यूक्रेन की राजधानी कीव से निकल जाने को कहा था. और यूक्रेन में स्थित भारतीय दूतावास ने भी ट्वीट करके इसकी जानकारी दी थी. इस ट्वीट में कहा गया था कि सभी भारतीय छात्रों को ये सलाह दी जाती है कि वो आज तुरंत कीव छोड़ दें. अगर ट्रेन उपलब्ध हों तो ट्रेन से या किसी भी अन्य माध्यम से कीव से बाहर निकलने की कोशिश करें

भारतीय छात्रों को दी गई थी ये सलाह

जबकि खारकीव और दूसरे क्षेत्रों में फंसे भारतीय छात्रों को ये सलाह दी गई थी कि अगर वो ऐसी जगहों पर मौजूद हैं, जहां कर्फ्यू लगा हुआ है तो उन्हें किसी भी सूरत में बाहर नहीं आना चाहिए. लेकिन इस मामले में ऐसा लगता है कि इस छात्र ने इस सलाह का पालन नहीं किया. हमें ये भी पता चला है कि नवीन और उसके दो दोस्त 2 मार्च को खारकीव शहर से बाहर निकलने की योजना बना रहे थे. और इसकी जानकारी नवीन ने खुद अपने पिता को दी थी. उसने अपने पिता को अपने आख़िरी वीडियो कॉल में बताया था कि वो खारकीव से सुरक्षित बाहर निकलने की कोशिश करेगा. इसके अलावा इस वीडियो में एक जगह उसके दादा भी उसे ये सलाह देते दिख रहे हैं कि नवीन को हालात ठीक होने तक अपने Bomb Shelter से बाहर नहीं निकलना चाहिए.

पीएम मोदी ने की नवीन के परिवार से बात

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी नवीन के परिवार से बात की और उन्हें भरोसा दिया कि भारत सरकार नवीन के शव को देश लाने का पूरा प्रयास करेगी. जब किसी देश में युद्ध होता है तो वहां फंसे दूसरे देशों के नागरिकों के लिए कई तरह के Dos & Donts होते हैं. लेकिन यूक्रेन में फंसे कई भारतीय छात्र अभी इनका पालन नहीं कर रहे हैं. इसलिए हम इन छात्रों की मदद करना चाहते हैं. और उन्हें बताना चाहते हैं कि युद्ध के दौरान उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए.

War Zone में इन बातों का ख्याल रखना जरूरी

जैसे, War Zone में सबसे पहले सरकारी इमारतों और सैन्य अड्डों को निशाना बनाया जाता है. इसलिए इन जगहों से दूर रहने की सलाह दी जाती है. बमबारी और Shelling से बचने के लिए लोगों को Bomb Shelters और Basement एरिया में शरण के लिए कहा जाता है. अगर कोई नागिरक ऐसे इलाक़े में फंस गया है, जहां कर्फ्यू लगाया गया है तो वहां मदद पहुंचने की उम्मीद कम होती है. इसलिए ऐसे इलाक़ों में लोगों को बाहर निकलने की चेतावनी दी जाती है. इसके अलावा युद्ध में ज़रूरी जानकारी और Updates के लिए रेडियो और टीवी चैनलों पर ज्यादा निर्भर रहना चाहिए. ना कि बाहर निकल कर और अपनी जान खतरे में डाल कर जानकारी इकट्ठा करनी चाहिए. और अगर कोई वाहन मिल जाए तो सबसे पहले ऐसी जगह जाने की कोशिश करनी चाहिए, जहां से मदद मिल सकती है. जैसे अभी यूक्रेन के पड़ोसी देश पोलैंड और रोमिनिया की सीमा से भारत सरकार अपने छात्रों को Evacuate कर रही है.

भारत जैसा कोई नहीं

जिस तरह भारत सरकार यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को सुरक्षित देश लाने के प्रयास कर रही है, उस तरह की कोशिशें अब तक किसी देश ने नहीं की है. इसलिए आज हम आपको ये भी बताना चाहते हैं कि भारत, दूसरे देशों से कैसे अलग और अभूतपूर्व कोशिशें कर रहा है. चीन खुद को दुनिया की एक बड़ी महाशक्ति मानता है. लेकिन इस समय उसके 6 हज़ार नागरिक यूक्रेन में काफ़ी बुरे हालात में फंसे हुए हैं. और चीन ने अपने नागरिकों को साफ़-साफ़ कह दिया है कि अभी वो इन लोगों को यूक्रेन से बाहर नहीं निकाल सकता. यानी एक तरफ़ चीन है, जिसने Evacuation की प्रक्रिया को ही कुछ दिनों के लिए टाल दिया है.

यूक्रेन से 7 हजार लोग भारत लौट चुके हैं

जबकि दूसरी तरफ़ भारत है, जो ऑपरेशन गंगा नाम से अब भी अभियान चला रहा है. और मंगलवार को ही तीन फ्लाइट्स यूक्रेन के पड़ोसी देशों से भारत आई हैं, जिनमें 616 नागरिकों को सुरक्षित भारत लाया गया है. और अब तक ऑपरेशन गंगा के तहत 9 Flights में 2,012 लोगों को सुरक्षित भारत लाया जा चुका है. जबकि इससे पहले 7 हज़ार और लोग भारत आ चुके हैं. अमेरिका खुद को दुनिया की सबसे बड़ी Superpower बताता है. और Hollywood फिल्मों में अमेरिका की छवि इस तरह से दिखाई जाती है कि दुनिया में संकट कहीं भी हो, मदद के लिए अमेरिकी सेना कहीं भी पहुंच सकती है. लेकिन असल में सच Hollywood फिल्मों के जैसा नहीं है. यूक्रेन में अमेरिका के 900 कर्मचारी फंसे हुए हैं, जिन्हें अमेरिका चाहता तो एक दिन में भी Evacuate कर सकता था. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.

अमेरिका जता चुका है असमर्थता

अमेरिका की तरफ़ से कहा गया है कि वो युद्ध की वजह से यूक्रेन में फंसे अमेरिकी नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकलने में असमर्थ है. इसके अलावा अमेरिका के जो नागरिक, जोखिम उठा कर किसी तरह पोलैंड और रोमानिया की सीमा पर पहुंच रहे हैं, उन्हें भी अमेरिका की तरफ़ से कोई मदद नहीं दी गई है. बल्कि अमेरिका ने अपने नागरिकों से ये कहा है कि अगर वो पड़ोसी देशों की सीमाओं तक पहुंचते हैं तो इस दौरान उन्हें अपने साथ दो दिन का खाना और दूसरी ज़रूरी चीज़ें साथ रखनी होंगी. क्योंकि अमेरिका उनके लिए खाने की व्यवस्था भी नहीं कर सकता. अमेरिका की तरह ब्रिटेन ने भी अपने नागरिकों से कहा है कि वो युद्ध की इन परिस्थितियों में ज़्यादा मदद की उम्मीद ना रखें. ब्रिटेन ने कीव से अपना दूतावास, पश्चिमी यूक्रेन के Lviv (लवीव) शहर में शिफ्ट कर लिया है, जो पोलैंड की सीमा से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. ब्रिटेन अपने नागरिकों को यूक्रेन से बाहर निकालने के लिए कोई खास अभियान नहीं चला रहा, बल्कि उसने अपने नागरिकों से कहा है कि वो ब्रिटेन से ज्यादा यूक्रेन की Authorities के सम्पर्क में रहें और उनसे मदद लेने की कोशिश करें.

भारत सरकार के चार कैबिने मंत्री भी मौजूद

जबकि भारत सरकार ने अपने चार कैबिनेट मंत्रियों को यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भेजा है, ताकि ये मंत्री भारतीय दूतावास और छात्रों के बीच सम्पर्क को स्थापित कर सकें और सभी लोगों को सुरक्षित भारत लाया जा सके. इनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया इस समय रोमानिया में हैं. किरेन रिजिजू Slovakia में हैं. वी.के. सिंह Poland में हैं और हरदीप सिंह पुरी Hungary में हैं. बाकी देशों की तरह जर्मनी ने भी कीव में अपना दूतावास फिलहाल बंद कर दिया है और अपने नागरिकों को कहा है कि उसका दूतावास उन्हें अभी यूक्रेन से बाहर निकलने में मदद नहीं कर सकता. जर्मनी ने अपने नागरिकों को Bomb Shelters में शरण लेने की सलाह दी है और कहा है कि जब भी स्थिति बेहतर होगी, वो अपने लोगों की मदद की कोशिश करेगा. यानी ये सारे बड़े-बड़े देश, यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को साफ कह चुके हैं कि वो उनकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे. जबकि भारत इकलौता ऐसा देश है, जो ना सिर्फ़ छात्रों की मदद कर रहा है. बल्कि उसके दूतावास छात्रों से लगातार सम्पर्क कर रहे हैं और उसकी तरफ़ से एक हेल्पलाइन नम्बर भी जारी किया गया है.

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