रातों-रात नहीं लिया गया Twin Towers को गिराने का फैसला, सालों लंबी कानूनी जंग से हुआ यह निर्णय; यहां समझें पूरी इनसाइड स्टोरी
Advertisement
trendingNow11319497

रातों-रात नहीं लिया गया Twin Towers को गिराने का फैसला, सालों लंबी कानूनी जंग से हुआ यह निर्णय; यहां समझें पूरी इनसाइड स्टोरी

Twin Towers गिराने के लिए हाई क्लास टेक्नोलोजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस बहुमंजिला इमारत को गिराया क्यों जा रहा है? आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई जो इसे गिराना पड़े?

रातों-रात नहीं लिया गया Twin Towers को गिराने का फैसला, सालों लंबी कानूनी जंग से हुआ यह निर्णय; यहां समझें पूरी इनसाइड स्टोरी

Twin Tower Complete Story: नोएडा के सेक्टर-93 स्थित सुपरटेक के ट्विन टावरों (Supertech Twin Towers) को 28 अगस्त को गिराया जाएगा. यह जितना आसान सुनने में लग रहा है हकीकत में उतना है नहीं और ना ही यह फैसला रातों रात लिया गया. दरअसल इसे गिराने का फैसला लिया जाना भी एक लंबी कानूनी जंग के बाद आया है. इसे गिराने के लिए हाई क्लास टेक्नोलोजी का इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस बहुमंजिला इमारत को गिराया क्यों जा रहा है? आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई जो इसे गिराना पड़ा. आइए आपको इसी बारे में विस्तार से बताते हैं.

आखिर ट्विन टावरों को गिराया क्यों जा रहा है?

बता दें कि इस ट्विन टावर का निर्माण साल 2009 में शुरू हुआ था. इन दोनों टावर में कुल 950 से ज्यादा फ्लैट्स बनाए जाने थे. बीच में कई खरीददारों ने यह आरोप लगाया कि बिल्डिंग के प्लान में बदलाव किया गया है और साल 2012 में कुछ खरीददार इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. एक आंकड़ा तो यह तक कहता है कि इसमें 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे. इनमें 248 लोगों ने रिफंड ले लिया और करीबन 133 खरीददारों को दूसरे प्रोजेक्ट में मकान दिए गए. लेकिन तमाम खरीददारों में 252 ऐसे लोग हैं जिन्होंने न तो रिफंड लिया है और न ही उन्हें किसी दूसरे प्रोजेक्ट में शिफ्ट किया गया, मतलब उनका निवेश इस प्रोजेक्ट में बना रहा.   

साल 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्विन टावर को अवैध घोषित करते हुए उन्हें गिराने का आदेश दे दिया था. उन्होंने नोएडा प्राधिकरण को भी जोरदार फटकार लगाई था. मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया. पहले तो सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे गिराने का आदेश दिया.

आखिर इनमें गलती कहां थी?

इस प्रोजेक्ट की शुरुआत होती है 23 नवंबर 2004 से, जब नोएडा विकास प्राधिकरण ने सुपरटेक को नोएडा के सेक्टर-93ए में एक हाउसिंग सोसाइटी के निर्माण के लिए जमीन आवंटित की. साल 2005 में सुपरटेक को कुल 14 टावरों और एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के निर्माण की इजाजत मिली. नक्शे के मुताबिक, सभी टावर ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिल तक पास किए गए. फिर नवंबर 2005 में सुपरटेक लिमिटेड ने एमराल्ड कोर्ट (Emerald Court) नाम से एक ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण शुरू किया. इसके बाद जून 2006 में सुपरटेक को नोएडा प्राधिकरण की तरफ से फिर अतिरिक्त जमीन आवंटित की गई. सुपरटेक ने दिसंबर 2006 में 11 फ्लोर के 15 टावरों में कुल 689 फ्लैट्स के निर्माण के लिए प्लान में बदलाव किया. इसके बाद साल 2009 में सुपरटेक और नोएडा प्राधिकरण की मिलीभगत से ट्विन टावर का निर्माण शुरू कर दिया. ये T-16 और T-17 (Apex और Ceyane) टावर थे.

ग्रीन बेल्ट की जगह पर बना दिए टावर!

इन दोनों टावरों को लेकर लोगों में काफी नाराजगी थी. फ्लैट खरीददारों का कहना था कि जिस इलाके को ग्रीन बेल्ट घोषित किया गया था वहां बिल्डर और ऑथोरिटी की मिलीभगत की वजह से विशालकाय टावर खड़े होने वाले हैं. जांच में यह भी कहा गया कि सुपरटेक ने ग्रीन बेल्ट वाले इलाके में दो बड़े टावर खड़े कर दिए. सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि यह दरअसल ग्राहकों के साथ ठगी है जो ग्रीन बेल्ट देखकर फ्लैट खरीदने का मन बनाया था.

फिर जब इसकी जांच हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी जांच में पाया कि इन ट्विन टावरों के निर्माण के दौरान अग्नि सुरक्षा मानदंडों (Fire Safety Standard) और खुले स्थान (Open Space) के मानदंडों का भी उल्लंघन किया गया था. साथ ही कोर्ट ने यह भी पाया कि दो टावर के बीच की निर्धारित दूरी भी इन टावरों के बीच में नहीं है. यानी यह टावर खतरे की घंटी हैं. बिल्डिंग निर्माण को लेकर नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC), 2005 का प्रावधान है जिसके तहत ऊंची इमारतों के आसपास खुली जगह होनी चाहिए. जांच में पाया गया कि टावर T-17 से सटे इलाके में 9 मीटर से भी कम का स्पेस गैप पाया गया जबकि नियम के मुताबिक यह जगह लगभग 20 मीटर होनी चाहिए थी.

फिर यह भी बात सामने आई कि सुपरटेक ट्विन टावर्स (T-16 और T-17) का निर्माण यूपी अपार्टमेंट्स एक्ट को नजरअंदाज कर के किया गया था. बिल्डरों ने मूल योजना में बदलाव तो कर दिया लेकिन बिल्डरों ने मूल योजना के खरीदारों की सहमति नहीं ली थी. 

कानूनी लड़ाई में बिल्डर को झटका

पूरे विवाद की सुनवाई के बाद 11 अप्रैल 2014 में हाईकोर्ट ने विवादित टावर गिराने का आदेश दे दिया, उस आदेश में कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी के आरोपी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई का आदेश दिया था. मामला यहीं तक नहीं रुका. लिहाजा बिल्डर ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट में भी यह केस 7 साल तक चला. 31 अगस्त 2021 को सप्रीम कोर्ट ने रेजिडेंट्स के पक्ष में फैसला सुनाया और सुपरटेक को जबरदस्त झटका दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि तीन महीने के अंदर दोनों टावर को गिराया जाए. लेकिन यह हो न सका. इसके बाद इसकी तारीख बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दी गई, लेकिन तब भी तैयारियां पूरी नहीं हो पाईं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में टावर गिराने वाली कंपनी को 3 महीने का समय और दिया. इस समय फ्रेम के  मुताबिक उन टावरों को 21 अगस्त 2022 को गिराया जाना था लेकिन तब टावर गिराने वाली कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को एनओसी नहीं मिली थी. इसलिए एक हफ्ते और बढ़ा दिया गया और 28 अगस्त को टावर गिराया जाएगा.

खरीददारों का क्या हुआ?

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी खरीददारों को न्याय दिया. कोर्ट ने बिल्डर को आदेश दिया कि कि वो दो महीने के भीतर फ्लैट खरीददारों को 12 फीसदी सालाना ब्याज के साथ सभी राशि वापस करे. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को कहा कि वो रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को 2 करोड़ का भुगतान करे. 

ये स्टोरी आपने पढ़ी देश की सर्वश्रेष्ठ हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर

 

Trending news