नेहरू पाकिस्तान से क्यों बांटना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस का 'खजाना'? जानिए 1953 के भारत की पूरी कहानी
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नेहरू पाकिस्तान से क्यों बांटना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस का 'खजाना'? जानिए 1953 के भारत की पूरी कहानी

Time Machine on Zee News: भारत 1953 में स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज (INA) और इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का खजाना पाकिस्तान से साझा करने के लिए राजी हो गया था.

नेहरू पाकिस्तान से क्यों बांटना चाहते थे सुभाष चंद्र बोस का 'खजाना'? जानिए 1953 के भारत की पूरी कहानी

ZEE News Time Machine: ज़ी न्यूज की स्पेशल टाइम मशीन में आज हम आपको ले चल रहे हैं साल 1953 में. 1953, यानि वो साल जब दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराया गया. वो साल जब भारत के दखल से दुनिया के एक कोने में चल रही भयानक जंग पर विराम लगा. जब भारत की अपनी सरकारी एयलाइन ने आजाद हवा में उड़ान भरी. ये वही साल है जब जनसंघ से जुड़े एक बड़े नेता की रहस्यमय मौत हुई, ये वही साल है जब जवाहरलाल नेहरू की बहन को पूरी दुनिया ने सलाम किया. 1953 कई मायनों में ऐसा साल है जहां आज का हर नौजवान जरूर टाइम मशीन से जाना चाहेगा, क्योंकि इसी साल देश में पत्थरों से एक नया शहर बसा दिया गया और सड़कों पर रेड लाइट ने उतर कर ट्रैफिक भी रोक दिया. आइये आपको बताते हैं साल 1953 की 10 अनसुनी अनकही कहानियों के बारे में.

जब माउंट एवरेस्ट पर तेनजिंग नोर्गे ने फहराया तिरंगा!

ये वो दिन, वो तारीख और वो समय है.. जब पहली बार भारत का सीना एक और बार गर्व से चौड़ा हुआ. कहने को तो तेनजिंग नोर्गे नेपाल के थे. लेकिन उनके पास भारतीय नागरिकता भी थी. तेनजिंग नॉर्गे हमेशा से ही चाहते थे कि वो दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट ऐवरेस्ट पर जाएं. उनका ये सपना 1953 में पूरा हुआ. 29 मई 1953 में पहली बार तेनजिंग नोर्गे ने 29 हजार 32 फीट ऊंचे एवरेस्ट के शिखर पर पहला कदम रखा और वहां पहुंचकर तिरंगा फहराया. बौद्ध परम्परा के अनुसार तेनजिंग ने पर्वत के शिखर पर पहुंचकर मिठाईयां और बिस्किट का प्रसाद चढ़ाया. तेनजिंग के साथ न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी थे. उन्होंने भी माउंट ऐवरेस्ट को साथ में ही फतेह किया था.

कोरिया पर भारत का 'वो' एहसान!

भारत आमतौर पर दूसरे देशों के विवाद में सीधे दखल नहीं देता है. लेकिन 1950 के दशक में हुए कोरिया युद्ध में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी. कोरिया पर भारत ने बहुत बड़ा एहसान किया था. ये कोरियाई जंग थी, जो डेमोक्रेटिक पीपल्स रिपब्लिकन ऑफ कोरिया यानी नॉर्थ कोरिया और रिपब्लिक ऑफ कोरिया यानी साउथ कोरिया के बीच लड़ी गई. जंग की शुरुआत 25 जून 1950 को हुई, जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया. इस जंग में करीब 25 लाख लोग मारे गए. इस समय भारत इकलौता ऐसा बड़ा देश था, जिसका किसी की ओर झुकाव नहीं था. इसके बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी केपीएस मेनन की अध्यक्षता में एक आयोग के गठन को सहमति दी थी और एक टीम बनाई. इसमें पांच और देश भी शामिल थे. भारत को पांच देशों के NNRC का अध्यक्ष बनाया गया. युद्ध के दोनों पक्षों ने भारत द्वारा प्रायोजित एक संकल्प को स्वीकार कर लिया और दोनों देशों ने के पीएस मेनन की टीम पर भरोसा जताते हुए 27 जुलाई 1953 को युद्ध विराम की घोषणा की.

पाकिस्तान से खजाना साझा करने वाले थे नेहरू!

भारत 1953 में स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज (INA) और इंडियन इंडिपेंडेंस लीग का खजाना पाकिस्तान से साझा करने के लिए राजी हो गया था. साल 2016 में केंद्र सरकार की ओर से नेताजी के बारे में गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने के दौरान यह जानकारी सामने आई थी. ये खुलासा उस नोट से हुआ जो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की ओर से पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी रॉय को 18 अक्टूबर 1953 को लिखे गए एक पत्र के साथ जुड़ा था. नेहरू ने पश्चिम बंगाल विधानमंडल की ओर से पारित उस प्रस्ताव पर जवाब दिया था, जिसमें केंद्र सरकार से नेताजी और उनकी आजाद हिंद फौज की ओर से छोड़े गए खजाने की जांच के लिए कदम उठाने का अनुरोध किया गया था. नोट में कहा गया, अंतिम युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद सोने, गहने और कुछ अन्य कीमती सामान INA और IIL के अधिकारियों और अन्य से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में जब्त किए गए थे और इन संपत्तियों को 'कस्टोडियन ऑफ प्रॉपर्टी की ओर से सिंगापुर में रखा गया था.

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मौत?

23 जून 1953, भारत के इतिहास की ये एक ऐसी तारीख और ऐसा दिन है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. इसी दिन भारतीय जनसंघ के संस्थापक और अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हुआ और उनके निधन को लगभग 7 दशक बीत चुके हैं और इतने सालों बाद भी उनकी मौत पहेली बनी हुई है. दरअसल श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने के खिलाफ थे, जिसकी वजह से उन्होंने वर्ष 1953 में कश्मीर का दौरा किया था. उनकी 'एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं' का नारा लगाते हुए गिरफ्तारी हुई. उनका कहना था कि, एक राष्ट्र में दो संविधान, दो प्रधानमंत्री और दो झंडे नहीं हो सकते. इसीलिए उन्हें जम्मू कश्मीर के दौरे के वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. श्रीनगर जेल भेज दिया गया. 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.

विजयलक्ष्मी पंडित का विश्व में परचम

पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे कि वो इकलौती देश की ही नहीं बल्कि विश्व की ऐसी पहली महिला थीं जो संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनीं. विजया लक्ष्मी पंडित, राज्यपाल और राजदूत जैसे कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहीं. उन्होंने इन्दिरा गांधी द्वारा लागू आपतकाल का भी विरोध किया था और जनता दल में शामिल हो गईं थी.1962 से 1964 तक उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल का पद भी संभाला.

देश में कब आई ट्रैफिक सिग्नल लाइट!

शहरों के चौराहों या सड़कों पर ट्रैफिक लाइट को देखकर आप फर्राटे से जा रही अपनी गाड़ी का झट से ब्रेक दबा देते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस ट्रैफिक सिग्नल की लाइट पर आप रुकते हैं...आखिर वो ट्रैफिक लाइट देश में कब आई थी. वो साल था 1953, जब आजाद भारत के बढ़ते कदम आविष्कार के नए नए आयामों को छू रहे थे. इसी बीच देश में आई पहली ट्रैफिक लाइट. इस ट्रैफिक लाइट को साउथ इंडिया में लॉन्च किया गया. मतलब ये कि देश की पहली ट्रैफिक लाइट का इस्तेमाल 1953 में मद्रास के एग्मोर जंक्शन में किया गया. इसके ठीक 10 साल बाद यानी साल 1963 में बैंगलोर के कॉर्पोरेशन सर्कल में पहला ट्रैफिक सिग्नल लगाया गया.

'महाराजा' की उड़ान! 

अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के बाद भारत भी विकास के विजयपथ की ओर चल पड़ा. हवाई उड़ान को लेकर 1953 में विकास की पक्की नींव रखी गई. मार्च 1953 में भारतीय संसद ने एयर निगम अधिनियम पारित कर दिया और वायु परिवहन का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. इसके अलावा सभी विमान कपनियों को दो नव-निर्मित निगमों में शामिल कर दिया गया. एक निगम का नाम इंडियन एयरलाइंस रखा गया, जिसकी सुविधा देश में हवाई उड़ान के लिए रही. तो वहीं दूसरे निगम का नाम एयर इण्डिया इन्टरनेशनल रखा गया, जिसे लंबी दूरी और इंटरनेशनल उड़ानों की जिम्मेदारी मिली.

नेहरू ने बसाया 'पत्थरों का शहर'

चंडीगढ़ देश का एकमात्र ऐसा शहर है जिसका कवर ग्रीन एरिया बढ़ रहा है. हरियाली के कारण ही इसे सिटी ब्यूटीफुल कहा जाता है लेकिन क्या आप जानते है कि इस शहर को बसाने का सपना पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देखा था. भारत की आजादी और पंजाब के विभाजन के बाद नेहरू ने पूर्वी पंजाब की राजधानी, लाहौर की जगह चंडीगढ़ को बनाया था. जिसके लिए जमीन के बड़े टुकड़ों पर सब कुछ नये तरीके से बनाया गया. इसलिए शुरूआती दौर में चंडीगढ़ को पत्थरों का शहर भी कहा जाता है. जिसका मास्टर प्लान फ्रांस के आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए ने तैयार किया था. जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि पंजाब की राजधानी आधुनिक और अलग हो. जब साल 1952 में जवाहरलाल नेहरू चंडीगढ़ आए तो उन्होंने कहा- ये एक नया शहर होना चाहिए जो भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक हो, बीते युग की परंपराओं से मुक्त हो और भविष्य के बारे में राष्ट्र की आस्था को दर्शाता हो. पंजाब की राजधानी ऐसे आधुनिक शहर की तर्ज पर बने जो देश में शहरी विकास का मॉडल बन सके. पंडित नेहरू के इसी विजन को ध्यान में रखते हुए चंड़ीगढ़ 1953 में अस्तित्व में आया और आगे चलकर एक नवंबर 1966 को चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा भी दे दिया गया.

मलेरिया की चपेट में आधी आबादी!

जिस वक्त आजादी मिली, भारत चेचक, पोलिया, मलेरिया जैसी बिमारियो से जूझ रहा था. देश की करीब आधी आबादी ऐसे इलाकों में रहती थी जहां मलेरिया का खतरा बहुत ज्यादा था. कहा जाता है कि 1947 में आजादी के बाद देश की 33 क रोड़ जनसंख्या में से 7.5 करोड़ लोग मलेरिया के शिकार थे. हर साल 8 लाख लोगों की जान इसी बीमारी के कारण जा रही है. 1935 में हुए एक सर्वे के अनुसार भारत को मलेरिया के कारण 100 करोड़ का नुकसान हर साल हो रहा था. इस बीमारी से बचने और उसको पूरी तरह ख़त्म करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण योजना की शुरुआत की जिसमें, मलेरिया के मच्छरों को मारने के लिए बड़े स्तर पर काम किया गया. आधुनिक कीटनाशक डीडीटी का छिड़काव हर घर में करवाया गया. लोगों को मलेरिया के प्रति जागरूक किया गया. आस-पास साफ सफाई रखने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया. पांच सालों में ही पीएम नेहरू की इस योजना की वजह से मलेरिया की बीमारी में आश्चर्यजनक कमी देखने में आई.

'कप' से निकला कानून!

पानी के बाद चाय ही ऐसी ड्रिंक है जो दुनिया में सबसे ज्यादा पी जाती है. सुबह आंख खुलते ही एक चीज जो हमारे दिमाग में सबसे पहले आती है वो है चाय पीने की तलब. अगर सुबह चाय ना मिले तो ऐसा लगता है दिन अधूरा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपकी प्याली में जो चाय आती है उसके लिए भी एक्ट बना हुआ है. जी हां TEA ACT 1953. वैसे तो भारत में चाय लाने का क्रेडिट अंग्रेजों को जाता है. 1903 में भारतीय चाय उपकर विधेयक पारित किया गया और तभी चाय बोर्ड की स्थापना हुई. उसके बाद आजाद भारत की सरकार ने चाय की गुणवत्ता और उसके उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए चाय एक्ट 1953 बनाया. हालांकि वर्तमान सरकार इस चाय एक्ट अधिनियम को खत्म करके इसकी गुणवत्ता में सुधार, चाय के प्रसार और चाय उत्पादकों के कौशल विकास से जुड़े अधिनियम लाने पर विचार कर रही है.

TEA ACT 1953 की विशेषताएं

- एक्ट की धारा 14 के अनुसार चाय उगाने की अनुमति प्रदान करना
- धारा 40 में बिना अनुमति के लगाई गई चाय को हटाए जाना
- देश के अंदर और बाहर चाय का प्रचार और निर्यात करना
- चाय की उत्पादन गुणवत्ता में वृद्धि और सुधार
-बागान श्रमिकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना

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