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नई दिल्लीः हम आपको भारत और पाकिस्तान की दो छात्राओं के बारे में बताने जा रहे हैं. ये दोनों ही यूक्रेन में पढ़ती थीं और इन दोनों को ही भारत सरकार ने यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीच रेस्क्यू किया है. लेकिन जब आप इनकी जुबान सुनेंगे तो आपको ऐसा लगेगा कि भारत की छात्रा शायद पाकिस्तान की है. और पाकिस्तान की छात्रा शायद भारत की है.
पाकिस्तान की इस छात्रा को इस बात की खुशी है कि वो किसी तरह यूक्रेन के युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकल आई. और उसकी जान बच गई. सोचिए जान बचने से बड़ा क्या हो सकता है. पाकिस्तान की सरकार सुमी में फंसे अपने छात्रों को निकाल नहीं पा रही थी. लेकिन भारत सरकार ने मानवीय आधार पर ना सिर्फ अपने छात्रों को Evacuate किया, बल्कि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे 17 और देशों के नागरिकों को सुमी से निकाला. इन सभी नागरिकों में आज इस बात की खुशी है कि वो सही सलामत यूक्रेन से लौट आए. लेकिन भारत के बहुत से छात्र इसकी तो बात तक नहीं कर रहे. बल्कि उनका मन शिकायतों से भरा हुआ है.
हमने मंगलवार को आपको बताया था कि कैसे यूक्रने से भारत आए बहुत सारे छात्रों के दिल से अपनी सरकार के लिए धन्यवाद तक नहीं निकल रहा है. वो इस बात के लिए शुक्रगुजार नही हैं कि उनकी जान बच गई और उनके देश की सरकार ने उन्हें सकुशल उनके घर तक पहुंचाया. ये सभी लोग अपने निजी खर्चे पर, अपनी निजी पढ़ाई और निजी काम करने के लिए यूक्रेन गए थे. लेकिन ये लोग.. उम्मीद ये करते हैं कि इनके साथ किसी बहादुर सैनिक जैसा व्यवहार किया जाए. जबकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने वहां के 9 छात्रों को यूक्रेन के सुमी शहर से निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का धन्यवाद दिया है. और पाकिस्तान के छात्रों ने भी दिल खोल कर भारत सरकार और प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा की है. तो फिर वो कौन सी बात है, जो हमारे देश के बहुत से छात्रों को दिल से शुक्रिया कहने से रोक रही है?.. आज आपको इसके बारे में जरूर सोचना चाहिए.
सुमी से जिन 600 भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकाला गया था, वो पश्चिमी यूक्रेन के Lviv (लिविव) शहर पहुंच चुके हैं. और यहां से इन छात्रों को अब पोलैंड यूक्रेन सीमा पर ले जाया जा रहा है, जो लिविव से 70 किलोमीटर दूर है. इसके बाद इन छात्रों को भारत लाया जाएगा और इसी के साथ भारत अपने सभी 18 हजार छात्रों को यूक्रेन से निकालने वाला दुनिया का पहला देश बन जाएगा. यूक्रेन में दूसरे देशों के 75 हजार छात्र फंसे हुए थे, जिनमें से लगभग 25 प्रतिशत छात्र अकेले भारत से थे.
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