आदिवासी समुदायों के सहयोग से बढ़ सकता है वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम: विशेषज्ञ
Advertisement
trendingNow1541234

आदिवासी समुदायों के सहयोग से बढ़ सकता है वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रम: विशेषज्ञ

 भारतीय वन्यजीव संरक्षण पहल में शहरी निवासियों के बजाय स्थानीय जनजातीय समुदायों को शामिल किए जाने की जरूरत है, ताकि मनुष्यों और पशुओं के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सके.

आईआईटी, गांधीनगर में पदस्थापित प्रोफेसर ने ये बात कही. (प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली: भारतीय वन्यजीव संरक्षण पहल में शहरी निवासियों के बजाय स्थानीय जनजातीय समुदायों को शामिल किए जाने की जरूरत है, ताकि मनुष्यों और पशुओं के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित किया जा सके.

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गांधीनगर में सामाजिक विज्ञान की सहायक प्रोफेसर अंबिका अय्यादुरई ने कहा कि वन्यजीव संरक्षण का पुनर्मूल्यांकन करने का समय आ गया है.

वन्यजीव संरक्षण के स्थानीय आबादी पर पड़ रहे प्रभावों का बारीकी से अध्ययन कर रही अय्यादुरई ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ हमने राष्ट्रीय उद्यान का विचार कहीं और से लिया, हमें लगा कि यह वन्य जीवन की रक्षा करेगा.’’ 

अय्यादुरई के अनुसार भारत में वन क्षेत्रों में हमेशा स्थानीय जनजातियों का अस्तित्व रहा है. वन्यजीव और मानव आबादी शांतिपूर्ण और निरंतर रूप से सह-अस्तित्व में रहे. संरक्षण की नई अवधारणा स्थानीय लोगों को वहां से हटाने और वन के चारों और बाड़ लगाने का है. वहीं साथ ही पर्यटकों को वहां जाने या खनन की अनुमति दी जा रही.

अय्यादुरई ने कहा, ‘‘ ऐसे कई अध्ययन हैं जिनमें मध्यम वर्ग और पर्यावरण चेतना के बीच संबंध पाया गया है, आर्थिक रूप से हम जितने समृद्ध होते हैं, हम प्रकृति की उतनी अधिक सराहना करने लगते हैं.’’ 

उन्होंने कहा, ‘‘ वहीं दूसरी ओर, बाघों के आवास या रिजर्व के नजदीक रहने वाले लोगों पर आप गौर करेंगे, तो वे इस बात की चिंता करते हैं कि खेतों की देखरेख कैसे की जाए और कैसे मवेशियों की रक्षा की जाए.’’ मध्य प्रदेश में ‘स्लॉथ बियर’ संरक्षण पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया था कि वहां कई महिलाएं सुबह शौच जाते समय ‘स्लॉथ बियर’ के हमलों का शिकार बनीं.

अय्यादुरई ने कहा, ‘‘ इसलिए प्रकृति के नजदीक रहने वाले लोगों का पर्यावरण के साथ रिश्ता मुश्किल है...’’ शहरों में रहने वाले लोग जमीनी हकीकत से वाकिफ हुए बगैर संरक्षण अभियानों में हिस्सा लेते हैं. उनके समक्ष प्रकृति की एक बहुत अच्छी तस्वीर पेश की जाती है.

उन्होंने कहा, ‘‘ अगर आप गांव में रहते हैं तो आपको ‘ ईंधन की लकड़ी’ के लिए वन में जाना होगा. लेकिन राष्ट्रीय उद्यानों में ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करना अवैध है. वन कानूनों के मुताबिक वन के आसपास रहने वाले लोग अपराधी हैं जो ऐसा अपराध प्रतिदिन करते हैं.’’ 

अय्यादुरई का कहना है कि इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए लोगों को ऐसी चीजों की ओर आकर्षित करना चाहिए कि उनके सांस्कृतिक मूल्यों को वैज्ञानिक प्रबंधन से प्रभावित किया जा सके.

Trending news