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नई दिल्ली: दिल टूटने पर, ब्रेकअप होने पर, कोई बुरी खबर सुनने पर या अचानक किसी तरह का सदमा लगने पर लोग सीने पर हाथ क्यों रख लेते हैं? इसके पीछे का विज्ञान अब सामने आया है. एक रिसर्च के मुताबिक, अचानक कोई बुरी खबर या ऐसा हादसा हो जाए जिसके लिए इंसान पहले से तैयार न हो तो वो ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम (Broken Heart Syndrome) का शिकार हो सकता है. ऐसा क्यों और कैसे होता है, वैज्ञानिकों ने इसका भी पता लगा लिया है. अचानक सदमा लगने पर सीने में होने वाला तेज दर्द हार्ट अटैक (Heart Attack) जैसा ही लगता है, और दिल को नुकसान भी पहुंचाता है.
आमतौर पर हार्ट अटैक होता तो उसकी वजह ये होती है कि दिल को खून पंप करने वाली नसें ब्लॉक हो जाती हैं. उनमें कैल्शियम या फैटजम जाता है और खून की सप्लाई दिल तक नहीं पहुंच पाती. लेकिन ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम में ऐसा होना जरूरी नहीं है. किसी सदमे या तेज एक्सीडेंट या डर की स्थिति में दिल की नसों पर अचानक जोर पड़ता है, जिससे वो बहुत कमजोर हो जाती हैं. ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम को ताकोत्सुबो सिंड्रोम (Takotsubo Syndrome) भी कहा जाता है. ये बीमारी 1990 के दशक में जापान में पहचान में आई थी. जापान में इसे ताकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी (Takotsubo Cardiomyopathy) का नाम दिया गया था. वहां ऑक्टोपस को पकड़ने वाले ट्रैप को Takotsubo कहा जाता है. अचानक एक्सीडेंट होने यानी कोई शारीरिक नुकसान पहुंचने पर या मानसिक तनाव (Emotional Stress) होने पर भी ऐसा हो सकता है.
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रिसर्च के मुताबिक, ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम के ज्यादातर मामले महिलाओं में देखने को मिलते हैं. क्या महिलाओं का दिल ज्यादा कमजोर है? असल में ऐसा नहीं है. हालांकि रिसर्च के मुताबिक, 80 से 90 प्रतिशत मामलों में 50 वर्ष से 70 वर्ष के बीच की महिलाएं इसकी शिकार होती हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक, इसकी वजह ये है कि मीनोपॉज के दौरान महिलाओं में इस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी हो जाती है. ये कमी महिलाओं के लिए इस बीमारी का खतरा बढ़ा देती है. फोर्टिस अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. मनु तिवारी के मुताबिक इस मामले में और रिसर्च की जरूरत है, क्योंकि एक साइंस तथ्य ये भी है कि तनाव और मुश्किलें झेलने के मामले में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मजबूत होती हैं और वो दुखों से जल्दी उबरती हैं.
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इस स्टडी को अमेरिका हार्ट एसोसिएशन के जर्नल (Journal of the American Heart Association) में प्रकाशित किया गया है. इस स्टडी पर फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के कार्डियक साइंस के चेयरमैन डॉ. अजय कौल का कहना है कि 'ऐसे मरीज रिकवर हो सकते हैं. कुछ वक्त के लिए हम उन्हें दिल का मरीज ही मानते हैं. लेकिन उनका दिल फिर से मजबूत हो सकता है. ऐसे मामलों में परिवार वालों का और दोस्तों का साथ बहुत काम आता है.' वहीं साइकोलॉजिस्ट डॉ. मनु तिवारी के मुताबिक, परिवार के लोग और दोस्त ऐसे मरीजों को जज न करें, उन्हें कोई सलाह न दें. बस कुछ दिनों तक उनका साथ दें, उनकी बातें सुने तो मरीज जल्दी ठीक हो सकता है.
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