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नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के मौके पर सोमवार (8 मार्च) को संसद में एक बार फिर महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग उठी. संसद के बजट सत्र (Parliament Budget Session) के दूसरे चरण की शुरुआत में महिला सांसदों ने महिलाओं के हक में आवाज उठाई और महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग की.
सदन की कार्यवाही शुरू होने के बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के मौके पर सबसे पहले महिलाओं को बोलने का मौका दिया गया. इस दौरान बीजेपी सांसद सरोज पांडे ने कहा कि मोदी राज में महिलाएं सशक्त हुई हैं. वहीं भाजपा सांसद सोनल मानसिंह ने अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस भी मनाने की मांग की. इसके अलावा एनसीपी की सांसद फौजिया खान ने संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की मांग की तो शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि 24 साल पहले 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव रखा गया था, अब इसे 50 प्रतिशत किया जाना चाहिए.
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एनसीपी की राज्य सभा सांसद फौजिया खान ने कहा, 'कई ऑडिट से पता चला है कि 6 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं को नेतृत्व की भूमिका नहीं मिली है. हमें इसके बारे में सोचना चाहिए. हम लोक सभा और राज्य सभा में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण पर कानून लाकर एक शुरुआत कर सकते हैं.'
Many audits have shown that not more than 6% of women have got leadership roles. We must think about it. We can make a beginning by bringing the legislation on 33% reservation of women in Lok Sabha and Rajya Sabha: NCP MP Dr Fauzia Khan in Rajya Sabha pic.twitter.com/IzxgukXWoE
— ANI (@ANI) March 8, 2021
इसके बाद शिवसेना की राज्य सभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी (Priyanka Chaturvedi) ने कहा, '24 साल पहले हमने संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव रखा था. आज, 24 साल बाद हमें इसे संसद और विधान सभा में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण देना चाहिए.'
24 years ago, we proposed a 33% reservation for women in Parliament. Today, 24 years later, we should raise this to 50% reservation for women in Parliament and assembly: Shiv Sena MP Priyanka Chaturvedi, in Rajya Sabha#InternationalWomensDay pic.twitter.com/IpLkTZTdU6
— ANI (@ANI) March 8, 2021
भाजपा सांसद सरोज पांडे ने कहा कि सरकार महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को रोकने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि तात्कालिक ट्रिपल तालाक को समाप्त करने और `बेटी पढाओ, बेटी बचाओ` के प्रयासों को इस दिशा में किया जा रहा है. इसके बाद कांग्रेस सांसद छाया वर्मा ने कहा, 'समय आ गया है कि महिलाओं को विधान सभाओं और संसद में आरक्षण मिले. सरकार 'बेटी पढ़ाओ' की बात कर रही है, लेकिन बेटियों की स्थिति अच्छी नहीं है.'
साल 1974 में गठित समिति की रिपोर्ट में राजनीतिक संस्थाओं में महिलाओं की कम संख्या का जिक्र किया गया था और पंचायतों के अलावा स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का सुझाव दिया गया था. इसके बाद साल 1993 में संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं. महिला आरक्षण विधेयक को साल 1996 में पहली बार एचडी देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया. लेकिन उनकी सरकार गिर गई. इसके बाद 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में फिर से विधेयक पेश किया, लेकिन भारी विरोध के बीच यह पास नहीं हो पाया. 1999, 2002 और 2003 में इसे इसे सदन में लाया गया, लेकिन यह पास नहीं हो सका. 2008 में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहने के दौरान लोक सभा और विधान सभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण को लेकर 108वां संविधान संशोधन विधेयक राज्य सभा में पेश किया. इसके दो साल बाद राजनीतिक अवरोधों के बीच यह बिल राज्य सभा में पारित हो गया, लेकिन राज्य सभा में यह अटका हुआ है.