ZEE जानकारी: अंखड कश्मीर के लक्ष्य को हासिल करना चाहता है भारत
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ZEE जानकारी: अंखड कश्मीर के लक्ष्य को हासिल करना चाहता है भारत

जनरल बिपिन रावत ने आज PoK यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का ज़िक्र करके बताया है कि भारत अब LoC से आगे की ज़मीन का हल निकालना चाहता है.

ZEE जानकारी: अंखड कश्मीर के लक्ष्य को हासिल करना चाहता है भारत

अकसर पूछा जाता है कि कश्मीर को लेकर भारत की रणनीति क्या है ? हमारी सरकार किन मुद्दों को लेकर कश्मीर का हल निकालना चाहती है ? ये सवाल देश में विपक्ष भी पूछता है...और अमेरिका जाकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान भी यही बात Donald Trump के सामने रखते हैं.

ऐसे सवाल पूछने वालों के लिए आज जवाब हाज़िर है...और ये जवाब सीधे सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने दिया है. आज लद्दाख़ के Drass सेक्टर में कारगिल विजय दिवस के मौक़े पर जनरल रावत ने क़रीब 30 मिनट तक पत्रकारों से बात की. इस दौरान उन्होंने कश्मीर को लेकर वो बात कही है...जिसे Decode करने के बाद पाकिस्तान की सेना के रावलपिंडी मुख्यालय में हलचल होने लगेगी.

जनरल बिपिन रावत ने आज PoK यानी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का ज़िक्र करके बताया है कि भारत अब LoC से आगे की ज़मीन का हल निकालना चाहता है. ये कश्मीर की वो ज़मीन है, जिसपर 1948 के बाद से पाकिस्तान का क़ब्ज़ा है. उन्होंने कहा कि PoK और चीन के क़ब्ज़े वाले Aksai Chin भारत का हिस्सा हैं...और इन दोनों को वापस लेने पर सरकार को फ़ैसला लेना है. वर्ष 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार ने कश्मीर को लेकर आक्रामक नीति अपनाई हुई है, और अब प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में ये आक्रामक नीति, एक नये पराक्रम की दिशा में बढ़ती हुई नज़र आ रही है.

दुनिया ने उरी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत की सर्जिकल स्ट्राइक देखी है और पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक भी देखी है. इसलिये अब भविष्य के लिये भारत की नज़रें नियंत्रण रेखा के पार देख रही हैं. आज आपको जनरल बिपिन रावत को बहुत ध्यान से सुनना चाहिये. आपकी सहूलियत के लिये हमने उनके शब्दों को Highlight भी कर दिया है.

जनरल बिपिन रावत ने आज जो शब्द इस्तेमाल किये हैं...

उनमें जो बातें ग़ौर करने लायक़ है...वो हैं - 
पूरे जम्मू-कश्मीर पर भारतवर्ष का हक़ है. ये बात जनरल रावत ने बहुत साफ़-साफ़ कही है.
उन्होंने कहा है कि अब हमें उसे अपने क़ब्ज़े में करना है.
और ये एक राजनीतिक फ़ैसला होगा.
जनरल रावत ने कहा है कि कूटनीतिक तरीक़े से विचार करना होगा.
उन्होंने आगे की कार्रवाई के लिये निर्देश की ज़रूरत की बात कही है. यानी भारतीय सेना पूरी तरह तैयार है.
अगर इन शब्दों को हम मिलायें...तो ये समझ में आएगा कि अब भारत PoK का हल करना चाहता है.

24 जुलाई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर मुद्दे पर इसी नीति का ज़िक्र किया था. उन्होंने लोकसभा में कहा था कि भारत अब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर बात करना चाहता है और इसके बिना, कश्मीर के मुद्दे पर किसी तरह की वार्ता या बैठक नहीं की जाएगी.

आज भारत की इस कश्मीर नीति का ज़िक्र इसलिये ज़रूरी है क्योंकि ये बातें अमेरिका के राष्ट्रपति Donald Trump का भी ज्ञानवर्धन करेंगी. 22 जुलाई को Trump ने इमरान ख़ान के साथ मुलाक़ात के दौरान कश्मीर में मध्यस्थता वाला झूठ बोला था. इसलिये PoK पर भारत का नया रुख़ आज इस्लामाबाद के साथ White House तक पहुंचना बहुत ज़रूरी है.

संदेश साफ़ है कि PoK कश्मीर का हिस्सा है और कश्मीर हमारा है इसलिए भारत को अब संपूर्ण कश्मीर की बात करनी होगी, सिर्फ अपने हिस्से के कश्मीर की नहीं . एक मज़बूत सरकार के साथ शक्तिशाली और बुलंद हौसलों वाली सेना किसी भी देश की सबसे बड़ी ताक़त होती हैं. इसलिये भारत में अब कश्मीर को लेकर नई राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई दे रही है.

जनरल बिपिन रावत ने कल कारगिल युद्ध को लेकर द्रास में ही एक और बात कही थी. उन्होंने इशारों-इशारों में बताया था कि 20 वर्षों बाद कारगिल में भारत इस स्थिति में है कि अब ख़तरा हमारी पोस्ट पर नहीं...बल्कि पाकिस्तान की पोस्ट पर मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि भारत भी ऐसी कार्रवाई कर सकता है. उन्होंने तीन शब्द इस्तेमाल किये. Mission, Success और Risk....ये तीनों शब्द सैन्य शब्दावली का हिस्सा हैं और इन तीनों शब्दों का इस्तेमाल दुश्मन के ख़िलाफ़ अभियान में किया जाता है. ये शब्द आज पाकिस्तान की सेना की बेचैनी बढ़ा देंगे.

पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर और Aksai Chin को लेकर सेना प्रमुख बिपिन रावत की सोच ये दर्शाती है. कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमें संपूर्ण कश्मीर चाहिए. क्योंकि, पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर भी भारत का अभिन्न हिस्सा है. आज आपको इतिहास के नज़रिए से भी इस बात को समझने की ज़रुरत है. और इसके लिए हम एक Map की मदद लेंगे. और आपको ये बताएंगे, कि कैसे United Nations Security Council की सभी शर्तों का उल्लंघन करते हुए, पाकिस्तान ने 1947 के बाद से जम्मू-कश्मीर के नक्शे को लगातार बदलने की नापाक कोशिश की है. और इसमें उसे चीन का भी भरपूर साथ मिला है.

जम्मू-कश्मीर 2 लाख 22 हज़ार 236 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इसमें से आधा यानी करीब 1 लाख 20 हज़ार वर्ग किलोमीटर का इलाका पाकिस्तान और चीन के कब्ज़े में है. जबकि बाकी का हिस्सा भारत के नियंत्रण में है.

कश्मीर से जुड़ी समस्या की जड़ सन 1947 में है. 1947 में ब्रिटेन ने भारत से आपना शासन हटाने और भारत के 30 करोड़ लोगों को आज़ादी देने का फैसला किया था.

उस समय मध्य और दक्षिण भारत में हिंदुओं की आबादी बहुसंख्यक थी. जबकि पूर्व और उत्तर पश्चिम भारत में मुस्लिम जनसंख्या ज्यादा थी.

ब्रिटेन ने धार्मिक आधार पर अखंड भारत को मुस्लिम जनसंख्या वाले, पाकिस्तान और हिंदू जनसंख्या वाले भारत में बांटने का फैसला किया.

भारत की रियासतों में से सिर्फ जम्मू कश्मीर ही एक ऐसी रियासत थी. जिसकी बहुसंख्यक मुस्लिम जनसंख्या पर हिंदू शासक महाराजा हरि सिंह का नियंत्रण था. और यही बात पाकिस्तान के गले नहीं उतर रही थी. जबकि जम्मू कश्मीर का भारत में बने रहना भारत की सर्वधर्म समाज वाली छवि से मेल खाता था.

26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत का भारत में विलय करने के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे. यानी कश्मीर का भारत में विलय उसी तरह हुआ जैसे बाकी रियासतों का हुआ था. जो कि पूरी तरह से कानूनी और मान्यता प्राप्त था. 
<<Kashmir 1947 Shots In>>
हालांकि, इसके लिए कुछ शर्तें भी थीं. जम्मू कश्मीर सिर्फ रक्षा, विदेशी मामले और दूरसंचार के मामलों में ही भारत सरकार के हस्तक्षेप के लिए राज़ी हुआ. 
<<Pcr Map Gfx 2 In>>
इससे पहले 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान के कबाइली हमलावरों ने पाकिस्तानी सरकार की मदद से कश्मीर पर हमला कर दिया. इनके साथ पाकिस्तान की सेना भी थी. 

और पाकिस्तान समर्थित हमलावरों से मुकाबले के लिए भारतीय सेना कश्मीर भेजी गई. 

इसके बाद 1 जनवरी 1948 को भारत, कश्मीर विवाद का हल ढूंढने के लिए सुरक्षा परिषद में चला गया.

1 जनवरी 1949 को दोनों देशों के बीच सीज़फायर लाइन अस्तित्व में आई. यानी इस दौरान 16 महीनों तक दोनों देशों के बीच युद्ध चलता रहा.

लेकिन तब तक पाकिस्तान कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर चुका था. जिसे आज Pak Occupied कश्मीर यानी PoK के नाम से जाना जाता है.

वर्षों पहले जब भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को अपनी सीमा से खदेड़ दिया था. उस वक्त उनके पास मौका था, कि वो पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में घुसकर आखिरी प्रहार कर सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. पाकिस्तानी घुसपैठिए
जम्मू-कश्मीर के लेह, श्रीनगर और बड़गाम तक आ गए थे. लेकिन भारतीय सेना ने 16 महीनों के युद्ध के बाद उन्हें पीछे धकेल दिया. और जिस इलाके तक भारतीय सेना जा पहुंची थी, वही इलाका आज भारत और पाकिस्तान के बीच Line Of Control है. 

ठीक इसी तरह 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान चीन के पास लद्दाख एक बड़ा हिस्सा था. जिसे Aksai Chin कहा जाता है. Aksai Chin पर आज भी चीन का कब्ज़ा है.

इसके बाद 1963 में चीन और पाकिस्तान के बीच हुए एक समझौते के दौरान पाकिस्तान ने PoK का 5180 वर्ग किलोमीटर का इलाका गैरकानूनी ढंग से चीन को सौंप दिया .

1970 में पाकिस्तान में गिलगित Agency और बाल्टिस्तान District को मिलाकर Northern Area बना दिया. जिसका एक बड़ा हिस्सा 1963 से ही चीन के कब्ज़े में है. य़ानी चीन और पाकिस्तान ने मिल-जुलकर कश्मीर की समस्या रची है.

आज आपके मन में भी ये सवाल ज़रूर होगा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा आज भारत के पास क्यों नहीं है ?
वर्ष 1947 से शुरू हुई जंग में जब भारत की सेना लगातार आगे बढ़ रही थी, तो आखिर क्यों भारत की सेना को अपने कदम रोकने पड़े. इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमने कई किताबों और कुछ दस्तावेजों का अध्ययन किया है . हमें इन किताबों में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य मिले हैं जिन्हें आज हम पूरे देश के सामने रखना चाहते हैं . पहले हम आपको ये बताएंगे कि हमने इन किताबों में क्या पढ़ा ? इसके बाद आपको ये बताएंगे कि इसका निष्कर्ष क्या है ? 

भारत के पूर्व राजदूत चंद्रशेखर दासगुप्ता ने कश्मीर के युद्ध के संबंध में एक किताब लिखी है जिसका नाम है... War And Diplomacy In Kashmir. 

इस किताब में लिखा है कि युद्ध के दौरान बर्फ पड़ने की वजह से युद्ध रोक दिया गया था . लेकिन मई में जब बर्फ पिघल गई तो फिर से लड़ाई शुरू हो गई . उरी से उत्तर और पश्चिम की दिशा में एक इंफेंट्री ब्रिगेड आगे की ओर बढ़ी . हर घड़ी बदल रही नियंत्रण रेखा के उस पार पाकिस्तान ने अपने कब्जे में आए कश्मीर में एक आज़ाद कश्मीर सरकार की स्थापना कर दी . उन्होंने एक आज़ाद कश्मीर सेना का भी गठन किया. जिसमें उस पार के कश्मीर के लोग शामिल थे. इस सेना को पाकिस्तानी सेना निर्देशित कर रही थी. ये सेना उस इलाके के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थी. 

भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट General रहे L.P. Sen ने भी इस युद्ध के संबंध में एक किताब लिखी है जिसका नाम है... Slender Was The Thread: Kashmir Confrontration

इस किताब में लिखा है... वर्ष 1948 के आखिरी महीनों तक दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई होती रही . नवंबर में द्रास और कारगिल पर फिर से भारत की सेना ने कब्जा कर लिया, जिससे लेह और लद्दाख को फौरी तौर पर राहत मिल गई . उसी महीने पुंछ के चारों तरफ की पहाड़ियों को भी हमलावरों से खाली करवा लिया गया. लेकिन कश्मीर का उत्तरी और पश्चिमी भाग अभी भी पाकिस्तान  के कब्जे में था . 

कुछ भारतीय कमांडर चाहते थे कि आगे बढ़ा जाए और मैदानी इलाके से तीन ब्रिगेड सेना लाकर लड़ाई लड़ी जाए. उनकी मांग को नहीं माना गया . इसकी एक वजह तो ये थी कि सर्दी आनेवाली थी. और दूसरी वजह ये थी कि लड़ाई को आगे बढ़ाने का मतलब सिर्फ फौज का ज्यादा जमावड़ा करना ही नहीं बल्कि उसे भारी हवाई सुरक्षा मुहैया कराना भी था. . 

18 अक्टूबर 1948 को Penderel Moon ने Major 
Billy Short को एक चिट्ठी लिखी थी . इन दोनों ही लोगों ने 1948 के भारत पाकिस्तान युद्ध को बहुत नजदीक से देखा था . 
Penderel Moon ने अपनी चिट्ठी में लिखा... 

भारतीय सेना ने अपने आगे बढ़ने का अभियान रोकना पड़ा क्योंकि कश्मीर मामले पर नजदीकी से निगाह रखनेवाले एक जानकार ने उस वक्त कहा कि ‘या तो कश्मीर का समाधान इसके बंटवारे से हो सकता है या नहीं तो फिर भारत को पश्चिमी पंजाब यानी पाकिस्तान में घुसना पड़ेगा . कश्मीर समस्या का एक सैनिक समाधान कभी मुमकिन नहीं है .’ 

इन सभी किताबों और दस्तावेजों के अध्ययन से ये निष्कर्ष निकलता है कि

बर्फ पड़ने की वजह से युद्ध कुछ समय के लिए रुक गया . जिसकी वजह से पाकिस्तान को ये मौका मिल गया कि वो बचे हुए कश्मीर में लोगों को भारत के खिलाफ भड़का सके . 

इस समय का इस्तेमाल करके पाकिस्तान ने POK में एक लोकप्रिय सरकार भी बनवा दी . 

इसके अलावा POK में रहने वाले लोगों की एक सेना बनाई गई . ये एक गुरिल्ला आर्मी थी . जो कि बर्फीली पहाड़ियों में युद्ध लड़ने में सक्षम थी . 

सर्दियां आने वाली थीं... बर्फ पड़ने वाली थी . ऐसी स्थिति में अगर आगे बढ़ने की कोशिश होती तो सैनिकों को संसाधनों की कमी से जूझना पड़ता . 

युद्ध की स्थिति में बर्फीले इलाकों में रसद को Supply करना आसान काम नहीं होता है . 

ऐसी स्थिति में भारत की सेना को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के पीछे मौजूद मैदानी इलाकों से हमला करना होता . लेकिन इसके लिए भारत की सेना को पश्चिमी पंजाब में घुसना पड़ता . लेकिन इस तरह का कोई फैसला नहीं हुआ . 

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