ये नागरिक अपनी बात मनवाने के लिए सत्याग्रह करेंगे या हिंसा के रास्ते पर चलेंगे ? ये सारी बातें छात्र जीवन में ही तय हो जाती हैं.
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कोई भी देश, कैसा नागरिक तैयार कर रहा है, ये. इस बात पर निर्भर करता है कि वो कैसे छात्रों का निर्माण कर रहा है. हमारे स्कूल और कॉलेज उन कारखानों की तरह हैं, जहां देश के नागरिक गढ़े जाते हैं. ये नागरिक अनुशासित होंगे, या तोड़-फोड़ में यकीन रखेंगे ? ये नागरिक अपनी बात मनवाने के लिए सत्याग्रह करेंगे या हिंसा के रास्ते पर चलेंगे ? ये सारी बातें छात्र जीवन में ही तय हो जाती हैं.
निदा फ़ाज़ली की एक मशहूर कविता है-
''हुआ सवेरा ज़मीन पर... फिर अदब से ...आकाश अपने सर को झुका रहा है... कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
घनेरा पीपल...गली के कोने से... हाथ अपने हिला रहा है...कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं ''
कहने का मतलब ये है कि बच्चों का स्कूल जाना हमारी सामाजिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है. लेकिन, जब बच्चों को स्कूल एक उबाऊ जगह लगने लगे, तो शिक्षा व्यवस्था हमारे समाज के लिए एक चुनौती बन जाती है . ऐसे में हम सबको अपने आप से ये पूछना चाहिए कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाना चाहते ?
ये सारी बातें हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पिछले दिनों नोएडा के दो बच्चों ने अपने स्कूल में छुट्टी कराने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी नोटिस वायरल करा दिया .पहले देखिए कि इन बच्चों ने क्या किया . अपने टीवी स्क्रीन पर, आप गौतम बुद्ध नगर के जिला मैजिस्ट्रेट के दफ्तर का आदेश देख सकते हैं. इसमें लिखा है कि ठंड की वजह से 23 दिसंबर और 24 दिसंबर को 12वीं तक के सारे स्कूल बंद रहेंगे. आपको यहां 23 और 24 दिसंबर पर ध्यान देना है . आरोप है कि नोटिस के इसी हिस्से में फर्जीवाड़ा किया गया है.
इसके पहले 19 और 20 दिसंबर को स्कूलों को बंद करने का नोटिस जारी हुआ था. इन बच्चों ने तारीख में हेर-फेर करके. यानी 19 और 20 दिसंबर की जगह 23 और 24 दिसंबर लिखकर, फर्जी नोटिस बना लिया और वायरल कर दिया . इसके बाद गौतम बुद्ध नगर के DM बृजेश नारायण सिंह को Tweet करके ये कहना पड़ा कि...स्कूलों की छुट्टी का फर्जी नोटिस Circulate हो रहा है. उनके दफ्तर से ऐसा कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है.
यहां जिन दो बच्चों की बात हो रही है वो नोएडा के राजकीय इंटर कॉलेज में 12 वीं के छात्र हैं. जब ये दोनों बच्चे पकड़े गए तो इन्होंने पुलिस को बताया कि वो रोज़-रोज़ की क्लास से ऊब गए थे, और पिकनिक पर जाना चाहते थे, इसलिए उन्होने ऐसा किया . इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है कि. स्कूल में आने वाले दिनों में कोई परीक्षा थी या नहीं . लेकिन, ये सच है कि 23 और 24 दिसंबर को छुट्टी हो जाती तो इन बच्चों को एक लंबी छुट्टी मिल सकती थी . क्योंकि 19 दिसंबर से 22 दिसंबर तक स्कूल पहले ही बंद था .
इन दोनों बच्चों के खिलाफ FIR दर्ज करके, इन्हें बाल सुधार गृह में भेजा गया. और बाद में इन्हें ज़मानत भी दे दी गई. लेकिन आज हम नोएडा के प्रशासन और इस देश की सरकारों से कहना चाहते हैं कि बच्चों को सुधारने के साथ-साथ शिक्षा की व्यवस्था को सुधारने की भी जरूरत है. छुट्टी के लिए बच्चों ने जो तरीका अपनाया, वो गलत है...लेकिन उनके खिलाफ FIR इस मामले का स्थायी समाधान नहीं है.
सबसे पहले आप ये देखिए कि नोएडा में क्या हुआ और उसके बाद हम इस सवाल का जवाब ढूंढेंगे कि...क्या स्कूल, बच्चों के लिए मजबूरी का नाम बन गए हैं ? ऊबाउ शिक्षा व्यवस्था के भरोसे जो बच्चे स्कूल और कॉलेजों से निकलते हैं...वो आसानी से सफलता भी अर्जित नहीं कर पाते..और आंकड़े इसका प्रमाण हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सिर्फ 3.84 प्रतिशत इंजीनियर ऐसे हैं, जिनमें नौकरी लायक technical skills या हुनर हैं.
इसी तरह सिर्फ 3 प्रतिशत इंजीनियर ऐसे हैं, जिनमें new-age technological skill यानी artificial intelligence जैसी skills हैं. और, कुल मिलाकर सिर्फ 1.7 प्रतिशत इंजीनियर ही ऐसे हैं, जिनके पास नए ज़माने की नौकरी के लायक skills हैं . अक्सर माता-पिता अपने बच्चों के बारे में कहते हैं कि...मेरे बच्चे का दिमाग तो बहुत तेज़ है, लेकिन वो पढ़ाई में मन नहीं लगाता है और स्कूल नहीं जाना चाहता है.
आखिर बच्चे स्कूल क्यों नहीं जाना चाहते, हमने खास तौर पर मनोवैज्ञानिकों से बात करके इसका जवाब ढूंढने की कोशिश की है. बड़े बच्चों या हाई स्कूल के बच्चों के बारे में जो नई जानकारी सामने आ रही है, वो ये है कि...उन्हें लगता है क्लास-रूम से ज्यादा वो घर में बैठकर इंटरनेट के जरिये नई चीजें सीख सकते हैं. कुछ बच्चों को ये भी लगता है कि उनके लिए अपनी hobbies को पूरा करना ज्यादा जरूरी है
छोटे बच्चों के मामले में ऐसा कहा जाता है कि. उनके मन में किसी टीचर या साथ पढ़ने वाले किसी बच्चे को लेकर डर भी हो सकता है. मनोवैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि कई बार परीक्षा के डर से या होम-वर्क पूरा नहीं होने की वजह से भी बच्चे स्कूल नहीं जाना चाहते हैं. लेकिन, ऐसा आम तौर पर 8वीं तक के बच्चे करते हैं. हाई स्कूल के बच्चे ऐसा नहीं करते हैं. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को स्कूल की दीवारें किसी जेल की दीवार जैसी लगती थी. \
उनके माता-पिता ने एक के बाद एक तीन स्कूलों में उनका दाखिला कराया,लेकिन स्कूल में उनका मन नहीं लगा . इसका ये मतलब नहीं हुआ कि टैगोर का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. क्योंकि स्कूल ना जाकर भी वो साहित्य, संगीत और चित्रकला के क्षेत्र में काफी मशहूर हुए.
महान नाटक-कार शेक्सपियर भी कभी स्कूल नहीं गए, और जाने-माने आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन को उनके स्कूल से ये कह के निकाल दिया गया था कि...वो पढ़ाई में बहुत कमज़ोर हैं . लेकिन इन सभी के नाम इतिहास में बहुत प्रतिष्ठा के साथ लिए जाते हैं . यानी स्कूल जाने ...और स्कूल की परीक्षा में पास होने से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि आप ज़िंदगी की परीक्षा में कामयाब हों.