Zee जानकारी: जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी लगे JNU जैसे राष्ट्रविरोधी नारे, देशविरोधी नारों का स्क्रिप्ट राइटर कौन हैं?
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Zee जानकारी: जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी लगे JNU जैसे राष्ट्रविरोधी नारे, देशविरोधी नारों का स्क्रिप्ट राइटर कौन हैं?

हमें जिस बात का डर था। आज वही हुआ है पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी जेएनयू जैसे राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए हैं। ये ठीक वैसे ही नारे हैं जो 9 फरवरी की रात को जेएनयू के अंदर लगाए गए थे। हम बार-बार यही कह रहे हैं कि ये ऐसी आग है जिसे सख्ती से कंट्रोल करना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो इस देश में अलगाववाद की ऐसी आग लग जाएगी जिसे बुझाना किसी के बस की बात नहीं होगी। जेएनयू में देशद्रोह में शामिल छात्रों के समर्थन में आज जादवपुर यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों और बुद्धिजीवियों ने कोलकाता में एक मार्च निकाला और इस मार्च में देशविरोधी नारेबाज़ी की गई। 

Zee जानकारी: जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी लगे JNU जैसे राष्ट्रविरोधी नारे, देशविरोधी नारों का स्क्रिप्ट राइटर कौन हैं?

नई दिल्ली: हमें जिस बात का डर था। आज वही हुआ है पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी जेएनयू जैसे राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए हैं। ये ठीक वैसे ही नारे हैं जो 9 फरवरी की रात को जेएनयू के अंदर लगाए गए थे। हम बार-बार यही कह रहे हैं कि ये ऐसी आग है जिसे सख्ती से कंट्रोल करना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो इस देश में अलगाववाद की ऐसी आग लग जाएगी जिसे बुझाना किसी के बस की बात नहीं होगी। जेएनयू में देशद्रोह में शामिल छात्रों के समर्थन में आज जादवपुर यूनिवर्सिटी के कुछ छात्रों और बुद्धिजीवियों ने कोलकाता में एक मार्च निकाला और इस मार्च में देशविरोधी नारेबाज़ी की गई। 

आज पाकिस्तान, हाफिज़ सईद और उसके आतंकवादी समर्थक बहुत खुश होंगे क्योंकि भारत के टुकड़े-टुकड़े करने के उसके एजेंडे को भारत में भी कुछ लोग आगे बढ़ा रहे हैं देश के बुद्धिजीवियों और कुछ छात्रों से इस तरह के समर्थन की उम्मीद तो हाफिज़ सईद ने भी नहीं की होगी सवाल ये है कि छात्रों में देश के खिलाफ नफरत का जो वायरस फैलाया जा रहा है। उसका सॉफ्टवेयर कौन तैयार कर रहा है।,इन देशविरोधी नारों का स्क्रिप्ट राइटर कौन हैं? कौन इन देशविरोधी तत्वों को बढ़ावा दे रहा है किसकी साज़िश पर JNU जैसी यूनिवर्सिटी में ऐसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियां की जा रही हैं?

अगर हम देश की तमाम विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में राष्ट्रविरोधी तत्वों को discount देते रहेंगे तो यकीन मानिए एक ना एक दिन ऐसा आएगा जब देश की यूनिवर्सिटीज़ और कॉलेजों में ऐसी ज़मीन तैयार हो जाएगी। जिसमें अलगाववाद के पौधे उगेंगे जो आगे चलकर आतंकवाद के खूनी पेड़ भी बन सकते हैं आज हम DNA में JNU के मामले को लेकर सबसे बड़ा खुलासा कर रहे हैं ये ऐसा खुलासा है जिसे सुनना और देखना आज हर देशवासी के लिए ज़रूरी है।

ज़ी न्यूज़ को तमाम खुफिया एजेंसियों के हवाले से ये जानकारियां मिली है कि जेएनयू के अंदर देशद्रोही प्रदर्शन करने और भारत की बरबादी के नारे लगाने के लिए कश्मीर से कई लोग बुलाए गए थे। इंटेलीजेंस एजेंसियों से मिली जानकारियों के मुताबिक JNU के अंदर ऐसी देश विरोधी गतिविधियों की तैयारी उस उमर खालिद ने की जो JNU के देशद्रोही कार्यक्रम का मुख्य आयोजक था उमर खालिद फिलहाल फरार है और उसे पकड़ने के लिए दिल्ली पुलिस और आईबी की टीम लगातार छापे मार रही है। हमें जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक उमर खालिद पिछले कई महीनों से जेएनयू के अंदर देशद्रोही प्रदर्शन की तैयारी में जुटा था। सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि उमर खालिद, कश्मीर के अलगाववादियों के संपर्क में भी था। उसने करीब 10 कश्मीरी युवाओं की एक टीम बनाई थी और इन कश्मीरी युवाओं को देशविरोधी प्रदर्शन से दो दिन पहले से ही JNU के कैंपस में बुला लिया गया था। हम आपको उमर खालिद का देशद्रोही वाला बायोडेटा भी दिखाएंगे और ये बताएंगे कि किस तरह से JNU के अंदर नक्सली और जेहादी तत्वों का एक गठजोड़ तैयार हो रहा है। जो देश के लिए बेहद ख़तरनाक संकेत हैं।

ज़ी न्यूज़ के पास जेएनयू के अंदर 9 फरवरी की रात का वो अहम वीडियो है। जिनमें देशविरोधी प्रदर्शन के दौरान कुछ संदिग्ध कश्मीरी भी दिख रहे हैं। ये संदिग्ध कश्मीरी, भारत विरोधी वो नारे लगा रहे हैं। जिन नारों की स्क्रिप्ट वर्ष 2008 में कश्मीर के अलगाववादी मसरत आलम ने लिखी थी। इन संदिग्ध लोगों के साथ उमर खालिद भी दिख रहा है। इन खुफिया जानकारियों के संदर्भ में हमने जेएनयू के अंदर 9 फरवरी की रात का नए सिरे से वीडियो विश्लेषण किया है। जिसे आज आपको ज़रूर देखना चाहिए।

9 फरवरी की रात को जेएनयू के अंदर कश्मीर की आज़ादी के वो नारे लगाए जा रहे थे जिन नारों की स्क्रिप्ट वर्ष 2008 में कश्मीर के अलगाववादी नेता मसरत आलम ने लिखी थी। मसरत आलम के बारे में आपको बता दें कि वो इस वक्त जम्मू-कश्मीर की जेल में बंद है। मसरत आलम के खिलाफ 27 मामले चल रहे हैं। रगड़ा नाम के वो नारे, जो जेएनयू में लगाए जा रहे थे। वो दरअसल मसरत आलम का लिखा एक देशद्रोही गीत है। जो पहली बार वर्ष 2008 में अमरनाथ मुद्दे पर कश्मीर में विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बना था। मसरत आलम को वर्ष 2010 में कश्मीर में पथराव की घटनाओं का मास्टरमांइड भी माना जाता है। मसरत आलम पिछले वर्ष अप्रैल में जेल से छूटा था तो उसने श्रीनगर में एक रैली की थी और ''कश्मीर बनेगा पाकिस्तान'' के नारे लगाए थे कहीं ना कहीं इससे इस बात को मजबूती मिलती है कि जेएनयू के अंदर कश्मीरी अलगाववादियों को बुलाया गया था और इसकी तैयारी उमर खालिद पिछले कई महीने से कर रहा था।

हम आपको उस रिपोर्ट के बारे में बताते हैं। जो दिल्ली पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी है। इस रिपोर्ट को देखने के बाद आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि जेएनयू में 9 फरवरी को जो कुछ हुआ। उसकी तैयारी कई महीने से चल रही थी। ये रिपोर्ट इस वक्त मेरे पास है...इसके मुताबिक

* 6 अक्टूबर 2015 को दिल्ली पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को जेएनयू के अंदर माहौल से जुड़ी एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें ये बताया गया था कि जेएनयू के अंदर इस तरह के नारे और पोस्टर लगाए जाते हैं, जो राष्ट्रविरोधी और देशहित के खिलाफ हैं। इस रिपोर्ट में लिखा गया कि जेएनयू के कैंपस में सीसीटीवी कैमरे लगाकर ऐसी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर नज़र रखने की ज़रूरत है। करीब एक महीने बाद दिल्ली पुलिस ने एक दूसरी रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी इसके बारे में भी हम आपको बताते हैं।

* 12 नवंबर 2015 को दिल्ली पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में जेएनयू के दो गुप्त छात्र संगठनों के बारे में ज़िक्र किया। ये दो छात्र संगठन हैं- डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फ्रंट। इन दोनों गुप्त संगठनों के बारे में दिल्ली पुलिस ने लिखा कि ये उपद्रवी
गुट हैं, जो राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। रिपोर्ट में लिखा है कि हालांकि इन संगठनों से जुड़े छात्रों की संख्या कम है लेकिन ये कैंपस में आपत्तिजनक पोस्टर और नारे लगाते हैं, जिससे धार्मिक भावनाएं भड़कती हैं। 

* इन गुप्त छात्र संगठनों ने हाल में जो राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी गतिविधियां की हैं। उनका भी ज़िक्र दिल्ली पुलिस ने इस रिपोर्ट में किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कुछ छात्रों ने अफज़ल गुरू की फांसी को शहादत बताकर उस पर शोक जाहिर किया। 
इन्होंने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 2010 में CRPF जवानों की शहादत का जश्न मनाया। रिपोर्ट के मुताबिक ये छात्र दुर्गा पूजा की जगह महिषासुर दिवस मनाते थे। इन्होंने कश्मीरी अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी को जेएनयू में न्योता दिया, जबकि
प्रशासन ने इसकी इजाज़त नहीं दी थी। हॉस्टल के मेस में बीफ की मांग की गई थी जबकि इसकी भी इजाजत नहीं थी।

* यानी जेएनयू के अंदर ये राष्ट्रविरोधी और समाजविरोधी गतिविधियां काफी वक्त से चल रही हैं। अब सवाल ये है कि इन सब गतिविधियों पर जेएनयू का प्रशासन क्या कर रहा था? हमारे पास 9 फरवरी की घटना पर जेएनयू प्रशासन की वो रिपोर्ट भी है। जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपी गई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जेएनयू की जांच कमेटी ने 8 आरोपी छात्रों की पहचान की है जांच कमेटी ने सिफारिश की है कि इन 8 छात्रों को  Academic Activities यानी पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी लगा दी जाए और इन 8 छात्रों को हॉस्टल में बतौर गेस्ट रहने की इजाज़त दी जाए।

* सवाल ये उठता है कि जब इन छात्रों की Academic Activities पर रोक लगाने की सिफारिश की गई तो फिर इनको हॉस्टल में बतौर गेस्ट रहने की इजाज़त क्यों है यानी कहीं ना कहीं जेएनयू प्रशासन इस पूरे मामले को लेकर नरम है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए ये मामूली बात नहीं है कि किसी यूनिवर्सिटी के कैंपस की ज़मीन में अलगाववाद के बीज बोए जाएं जो आगे चलकर आतंकवाद के बड़े पेड़ बन सकते हैं।

* जेएनयू में देशविरोधी गतिविधियों ने आतंकवादी हाफिज़ सईद को भी एक बड़ा मौका दे दिया है। जिस हाफिज़ सईद को United Nations यानी UN और अमेरिका ने दुनिया के लिए खतरनाक आतंकवादी बताया है वो हाफिज़ सईद जेएनयू के मुद्दे पर You Tube के ज़रिए ख़ुलेआम अपने एजेंडे को फैला रहा है। जेएनयू के मुद्दे पर हाफिज़ सईद ने You Tube पर अपना आतंकवादी संदेश डाला। जिसे हमारे देश के तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी और पत्रकार Share कर रहे हैं लेकिन इन बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को शायद पता नहीं है कि इंटेलीजेंस एजेंसियों से मिली जानकारी के मुताबिक हाफिज़ सईद की नज़र अब भारत के पत्रकारों पर है जिनके ज़रिए वो भारत में कश्मीर के एजेंडे को लेकर दुष्प्रचार करना चाहता है। सूत्रों के मुताबिक हाफिज़ सईद ने एक साइबर सेल का गठन किया
है, जिसे भारतीय पत्रकारों का ग्रुप बनाने की ज़िम्मेदारी दी गई। हाफिज़ सईद ने साइबर सेल को भारतीय पत्रकारों के ईमेल-अड्रेस और
मोबाइल नंबर का डेटा जुटाने को भी कहा है।

* अफसोस की बात ये है कि देश के कुछ तथाकथित पत्रकारों और संपादकों को देश के गृह मंत्री की बात पर भरोसा नहीं होता वो हाफिज़ सईद के दावों पर भरोसा करते हैं और हाफिज़ सईद के सुर से सुर मिलाते हैं इस पर हमने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू से खास बातचीत की है। जिसका एक अंश आपको ज़रूर सुनना चाहिए।

हमारी स्पष्ट सोच है कि हाफिज़ सईद जैसे आतंकवादियों को कोई प्लेटफॉर्म नहीं मिलना चाहिए। लेकिन हमारा सवाल ये भी है कि You Tube ऐसे आतंकवादी को अपना प्लेटफॉर्म क्यों देता है और कुछ तथाकथित पत्रकार हाफिज़ सईद के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं। हमें भारत के टुकड़े करने वाली इस सोच से लड़ना होगा क्योंकि अगर आतंकवादियों को समर्थन देने वाली सोच ऐसे ही चलती रही तो ना जाने इस देश का क्या हाल होगा? क्योंकि पाकिस्तान और हाफिज़ सईद यही तो चाहते हैं।

सियाचिन में शहीद हुए जवानों के अंतिम दर्शन
DNA में अब हम सियाचिन में शहीद हुए जवानों के अंतिम दर्शन करवाएंगे क्योंकि शहीदों की अंतिम यात्रा के दर्शन करना अपने आप में चारधाम की यात्रा करने के बराबर होता है। सियाचिन के हिमस्खलन में शहीद 9 जवानों का आज उनकी पैतृक जगहों पर अंतिम संस्कार किया गया। शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों का हुज़ूम उमड़ पड़ा। शहीदों के परिवारों और सेना के जवानों ने नम आंखों से शहीदों को अंतिम विदाई दी। सियाचिन में खराब मौसम की वजह से 9 शहीदों के पार्थिव शरीर को लेह स्थित सेना मुख्यालय में रखा गया था। पार्थिव शरीरों को कल यानी सोमवार को एयरफोर्स के स्पेशल प्लेन से 12 दिन बाद दिल्ली लाया गया था। जिन 9 शहीदों का आज अंतिम संस्कार किया गया है। उनमें तमिलनाडु के चार, कर्नाटक के दो, आंध्र प्रदेश, केरल और महाराष्ट्र का एक-एक जवान शामिल है। 

सोचिये कैसी विडंबना है कि कुछ कथित पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी लोग इन दिनों भारत विरोधी गतिविधियों में इतने व्यस्त हैं कि उन्हें सियाचिन के शहीदों को अंतिम विदाई देने तक का वक्त नहीं मिल रहा। लेकिन शहीदों की शहादत को याद रखना हर देशभक्त नागरिक का फर्ज़ है क्योंकि शहीदों की शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता इसलिए हम अपनी इस भावुक रिपोर्ट के जरिये सियाचिन के शहीदों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं।

सियाचिन में शहीद हुए सैनिकों के अंतिम दर्शन करके आपका भी दिल भर आया होगा और आंखें नम हो गई होंगी आपको ये जानकर और भी ज्यादा दुख होगा कि सियाचिन के हड्डियां गला देने वाले मौसम में हर महीने औसतन 2 सैनिक शहीद हो जाते है संसद में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक।

* वर्ष 1984 से लेकर अबतक पिछले 32 वर्षों में सियाचिन में 883 सैनिक शहीद हुए हैं। शहीद हुए जवानों में 33 अधिकारी 54 Junior Commissioned अधिकारी और 792 अन्य रैंक के अधिकारी शामिल हैं।

* देशद्रोही विचारधारा से ग्रस्त चंद लोग भले ही सैनिकों की शहादत की परवाह ना करें लेकिन पूरा देश शहीदों को हमेशा याद रखेगा क्योंकि देश की खातिर अपनी जान कुर्बान करने वाला हर जवान भारत माता का सपूत है फिर चाहे वो सियाचिन में तैनात हो या कहीं और।

* सियाचिन में सैनिकों की शहादत और JNU में देशविरोधी गतिविधियों को देशभक्ति वाले चश्मे से देखें तो दो Extra विचार मन में उठते हैं। पहला विचार ये है कि देशद्रोही सोच रखने वालों के लिए अगर आतंकवादी अफज़ल गुरु शहीद है तो फिर सियाचिन में अपनी जान कुर्बान कर देने वाले सैनिक कौन हैं?

* दूसरा विचार ये है कि जो लोग कश्मीर की आज़ादी के देशविरोधी नारे लगाते हैं वो लोग सिर्फ कश्मीर के अलगाववादियों की भाषा क्यों बोलते हैं। कश्मीर की आज़ादी के ये कथित दीवाने कश्मीरी पंडितों की आवाज़ क्यों नहीं उठाते जिन्हें 1990 में आतंकवाद की वजह से अपना घर बार छोड़कर भागना पड़ा था कश्मीर की आज़ादी के नारे लगाने वाले लोग कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर में बसाने और उनका जायज़ हक दिलवाने के लिए नारेबाज़ी क्यों नहीं करते? गला फाड़ फाड़कर देश विरोधी नारे लगाने वाले देशद्रोहियों की बोलती इन दो विचारों को सुनते ही बंद हो जाती है।

* DNA में अब हम JNU के पाकिस्तान प्रेमी बुद्धीजीवियों के, पाकिस्तानी दिल की Open Heart सर्जरी करेंगे ये लोग रहते तो भारत में हैं। खाते और पीते भी भारत में ही हैं। Subsidy और आरक्षण भी यहीं से लेते हैं लेकिन इनका दिल फिर भी पाकिस्तान के लिए ही धड़कता है। ऐसे लोगों को हम सचेत कर देना चाहते हैं कि हमारा अगला वीडियो विश्लेषण इनका Blood Pressure, काफी बढ़ा सकती है फिर चाहे वो देश के भीतर बैठे दुश्मन हों या फिर सीमा पार बैठे हाफिज़ सईद जैसा आतंकवादी।

युद्ध के मैदान में हमेशा भारत की तुलना पाकिस्तान और चीन के साथ की जाती है। इन दोनों ही देशों के साथ हमारा मुकाबला पहाड़ों पर हैं और वहां के दुर्गम इलाक़ों में उसी का पलड़ा भारी होता है जिसका तोपख़ाना दमदार हो लेकिन DNA में 14 जनवरी 2015 को मैंने आपको एक रिपोर्ट दिखाई थी जिसमें हमने आपको बताया था कि कैसे हमारी सेना के पास मौजूद तोपों में ज़ंग लग गया है मैंने आपको On The Spot रिपोर्टिंग की मदद से भारत के तोपखाने की तस्वीरें भी दिखाई थीं जिसमें मैंने आपको ये जानकारी दी थी कि भारत के तोपखाने की हालत बहुत ख़राब है और तीस वर्षों से सेना नई तोपों के लिए तरस रही है।

लेकिन कहते हैं कि अंत भला तो सब भला देर से ही सही भारतीय सेना की तोप वाली कमी का Permanent इलाज मिल गया है।
अमेरिका भारत को 145, M-777 Ultralight-weight Field Howitzer तोपें बेचने के लिए तैयार हो गया है। पेंटागन के सूत्रों के मुताबिक, ये डील 700 मिलियन यूएस डॉलर यानी 4800 करोड़ रूपये से ज़्यादा की होगी। जिसका Final Contract 180 दिन के अंदर तैयार कर लिया जाएगा। 

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि आज से क़रीब 30 साल पहले भारत ने स्वीडन से बोफोर्स तोपें खरीदी थीं। इस डील में कमीशन को लेकर काफी विवाद हुआ था। विवाद के घेरे में गांधी परिवार और उनके क़रीबी थे जिस वक्त बोफोर्स की डील हुई थी। उस वक्त देश में कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। तब से लेकर अब तक देश में जितनी भी सरकारें आईं वो इस तरह की डील करने से कतराती रहीं क्योंकि वो अपने भीतर का डर नहीं निकाल पा रही थीं।

हालांकि इस दौरान रक्षा मंत्रालय ने कई बार आर्टिलरी तोपों को ख़रीदने की प्रक्रिया शुरू की लेकिन किसी ना किसी वजह से डील नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान को आठ F-16 फाइटर जेट बेचने का फैसला किया है। जिस पर भारत ने अपनी नाराज़गी भी जताई है। इसी के बाद, अमेरिका ने भारत को Howitzer तोपें देने का फैसला किया है। इस डील के साथ ही भारत को आर्म्स सप्लाई करने के मामले में रूस, इज़रायल और फ्रांस को पीछे छोड़कर अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया है।

देश की सुरक्षा और हितों को ध्यान में रखते हुए हमने, M-777 Ultralight-weight Field Howitzer की खूबियों और ताकत का DNA टेस्ट किया है। और यकीन मानिए इसे देखते हुए आपको काफी गर्व का अनुभव होगा। लM-777 Ultralight Howitzer एक ऐसी संजीवनी बूटी है जो भारतीय सेना की तोप वाली बीमारी का इलाज कर देगी लेकिन आज आपको इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि बोफोर्स ने कैसे कारगिल में भारत की जीत की Script लिखी थी।

वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय तोपों ने क़रीब ढाई लाख गोले द़ागे थे। 300 से ज़्यादा तोपों मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर्स ने रोज़, करीब पांच हजार राउंड फायर किए। कारगिल की लड़ाई के महत्वपूर्ण 17 दिनों में रोज़ाना हर तोप से औसतन एक मिनट में एक राउंड फायर किया गया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ये पहली ऐसी लड़ाई थी, जिसमें किसी देश ने दुश्मन देश की सेना पर इतनी ज़्यादा बमबारी की थी। बोफ़ोर्स तोपों ने तोलोलिंग और टाइगर हिल जैसी ऊंची पहाड़ियों में छिपे दुश्मनों को तबाह कर दिया था।

मैंने कारगिल की लड़ाई के दौरान बोफोर्स तोप की ताकत को काफी क़रीब से देखा था और उसकी आवाज़ की गूंज महसूस की थी। उस वक्त मैंने गोलियों के साये में कई दिन गुज़ारे थे और जंग के धमाकों को करीब से सुना था। कारगिल युद्ध में भारत की जीत की सबसे बड़ी वजह थी बोफोर्स तोप। ये तोप जंग की सबसे बड़ी गवाह रही है। इसने दुश्मन के नापाक इरादों पर आग बरसाई और उसे सिर उठाने का मौका नहीं दिया। यही वजह है कि मैंने वर्ष 2014 में कारगिल में बोफोर्स तोप के बेहद करीब जाने का फैसला किया था और आपको वो दुर्लभ तस्वीरें दिखाई थीं इसलिए आज एक बार फिर मैं आपको बोफोर्स की ताकत का छोटा सा Flashback दिखाना चाहता हूं और इसके लिए मैं आपको वहां लेकर चलूंगा जहां के चप्पे चप्पे में भारतीय सेना के जवानों की शौर्यगाथाएं लिखी हुई हैं।

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