ZEE जानकारीः कई साल की देरी से ही सही भारत को मिला पहला 'वॉर मेमोरियल'
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ZEE जानकारीः कई साल की देरी से ही सही भारत को मिला पहला 'वॉर मेमोरियल'

वर्ष 2015 में मोदी सरकार की कैबिनेट ने 176 करोड़ रुपये की लागत से The National War Memorial के निर्माण को अपनी मंजूरी दी.

ZEE जानकारीः कई साल की देरी से ही सही भारत को मिला पहला 'वॉर मेमोरियल'

आज सबसे पहले मेरे पास आपके लिए दो सवाल हैं...और ये दोनों ही सवाल हमारे पहले विश्लेषण का आधार हैं. आपमें से कितने लोग हैं, जिन्हें इस बात की जानकारी है, कि हमारे देश में बड़े-बड़े नेताओं के पुराने घरों और बंगलों को राष्ट्रीय स्मारक या संग्रहालय बना दिया गया हो? आपमें से बहुत से लोगों को ऐसे कई नेताओं के नाम याद होंगे.... उदाहरण के लिए दिल्ली का तीन मूर्ति भवन, लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल, राजेंद्र प्रसाद मेमोरियल, बाबू जगजीवन राम मेमोरियल और इंदिरा गांधी Memorial Museum...आपको ऐसे कई और नेताओं के नाम भी मिल जाएंगे....जिनके पुराने घर को आज भी काफी सहेज कर रखा गया है. 

अब दूसरा सवाल...आपमें से कितने लोग हैं...जिन्हें इस बात की जानकारी है...कि हमारे देश के शहीदों की याद में कोई राष्ट्रीय स्मारक, संग्रहालय या War Memorial बनाया गया है? हम यकीन के साथ कह सकते हैं, कि आपको इसके बारे में जानकारी नहीं होगी. इसकी मूल वजह में जाने की कोशिश करें...तो एक बात समझ में आती है...कि हम अपने देश में नेताओं को तो भगवान का दर्जा दे देते हैं. लेकिन आज जिन शहीदों की बदौलत, भारत एक आज़ाद देश है और जिनके बलिदान ने हम सबको खुली हवा में सांस लेने की आज़ादी दी है, उन्हें पिछले 71 वर्षों में हम वो उचित सम्मान नहीं दे पाए, जिसके वो सही मायनों में हकदार हैं. 

लेकिन, कई वर्षों की देरी के बाद ही सही, भारत की 135 करोड़ की आबादी को देश का पहला War Memorial मिल गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज देश की राजधानी दिल्ली में स्थित India Gate के पास बनाए गए, The National War Memorial को राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया है. ये War Memorial उन शहीदों को समर्पित है, जिन्होंने आज़ादी के बाद देश की सुरक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है. इसके अलावा यहां पर उन बलिदानियों के नाम भी स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए हैं, जिन्होंने United Nations के Peace Keeping Missions और Counter Insurgency Operations के दौरान अपनी शहादत दी है.

शहीदों की याद में बनाया गया, ये War Memorial कैसा है ? इसकी Location क्या है ? यहां आपको किन शहीदों के बारे में जानकारी मिलेगी ? ये सारी बातें हम आपको बताएंगे. लेकिन, उससे पहले आपको ये पता होना चाहिए, कि भारत के पहले National War Memorial को तैयार होने में इतना समय क्यों लग गया ? 

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा, कि Armed Forces ने पहली बार National War Memorial बनाए जाने का प्रस्ताव वर्ष 1960 में दिया था. लेकिन इस दौरान जितनी भी सरकारें आईं, उनकी उदासीनता...और सरकारी अफसरों और सेना के बीच के गतिरोध की वजह से इसका निर्माण नहीं हो सका. फाइलें अटकी रहीं और सरकारें चलती रहीं. लेकिन किसी को आज़ादी के बाद देश के लिए मर-मिटने वाले शहीदों की याद नहीं आई. इस दौरान भारत दुनिया के बड़े-बड़े देशों में अकेला ऐसा देश था, जिसके पास अपना राष्ट्रीय युद्ध स्मारक नहीं था. 

अब इसी से जुड़ा विरोधाभास देखिए. लगभग 200 वर्षों तक भारत पर राज करने वाले अंग्रेज़ों ने वर्ष 1921 में ही 42 मीटर ऊंचे India Gate की नींव रख दी थी. और इसे उन 84 हज़ार से ज़्यादा भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया था, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे Anglo-Afghan युद्ध में British Army की तरफ से युद्ध लड़ते हुए शहादत दी थी. उसके बाद 1971 के युद्ध में शहीद हुए साढ़े तीन हज़ार से ज़्यादा सैनिकों के सम्मान में अमर जवान ज्योति बनाई गई थी. लेकिन National War Memorial नहीं बन सका. और इसके ना बन पाने के पीछे अलग-अलग कारण थे. 

Memorial को दिल्ली से बाहर बनाया जाए या नहीं, इसे लेकर कई वर्षों तक विवाद बना रहा. और इसका सैनिकों ने पुरज़ोर विरोध किया. दूसरी वजह थी, Memorial के स्थान को लेकर हुआ विवाद. पहले ऐसा प्रस्ताव दिया गया था, कि ये War Memorial, दिल्ली कैंट में बनाया जाए. इसके लिए ये तर्क दिया गया था, कि जगह की कमी की वजह से, कि राजपथ पर War Memorial बनाना मुश्किल है. और तीसरी सबसे मुख्य वजह थी, राजनैतिक इच्छाशक्ति का अभाव. जिसकी वजह से हमारे देश में नेताओं के स्मारक और भवन बनते चले गए. लेकिन शहीदों का War Memorial नहीं बन सका. आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शहीदों को नज़रअंदाज़ करने वाली राजनीति पर कटाक्ष किया और कहा कि India First और Family First वाली राजनीति में बहुत अंतर है

वर्ष 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आई. और अक्टूबर 2015 में Cabinet ने 176 करोड़ रुपये की लागत से The National War Memorial के निर्माण को अपनी मंजूरी दी. इसकी शुरुआती लागत करीब 500 करोड़ रुपए है. यहां पर एक म्यूज़ियम भी बनाया जाएगा. हालांकि, उसे तैयार होने में अभी कुछ वर्ष और लगेंगे. लेकिन आज हमारा सवाल ये है, कि जो फैसला 59 साल पहले वर्ष 1960 में ही ले लिया जाना चाहिए था. वो फैसला लेने में 55 साल क्यों लग गए ? शहीदों के सम्मान और उनकी याद में बनाए गए War Memorial के लिए देश को लगभग 6 दशकों का इंतज़ार क्यों करना पड़ा ? इसका जवाब ये है, कि इन 59 वर्षों के दौरान देश की राजधानी में तमाम बड़े नेताओं की समाधियां और Memorial Hall ही बनाए गए. जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु से लेकर, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक के नाम हैं. 

दिल्ली में यमुना के किनारे 44 एकड़ में बनाए गए राज घाट पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि है. लाल किले के पीछे बना शांति वन 52 एकड़ में फैला है. और यहां पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की समाधि है. राज घाट के पास 40 एकड़ में बने विजय घाट पर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की समाधि है. ठीक इसी तरह 45 एकड़ में फैले शक्ति स्थल पर इंदिरा गांधी और 15 एकड़ में फैली वीर भूमि पर राजीव गांधी की समाधि है. जबकि, 19 एकड़ में फैले किसान घाट पर पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की समाधि है. 

यहां पर ध्यान देने वाली बात ये है, कि ये सभी समाधि स्थल सिर्फ एक-एक व्यक्ति को समर्पित हैं. जबकि, 25 हज़ार 942 शहीदों की याद में बनाया गया, The National War Memorial सिर्फ 40 एकड़ में फैला हुआ है. यहां आपको बता दें, कि शांति वन, शक्ति स्थल, राजघाट और वीर भूमि सभी एक साथ हैं. यानी एक ही इलाके में हैं. और जब हमने इस इलाके में ज़मीन की कीमत पता की. तो हमें जानकारी मिली, कि आज की तारीख में यहां पर ज़मीन की क़ीमत क़रीब दो लाख रुपये प्रति Square Feet है. इस हिसाब से इस इलाके में एक एकड़ ज़मीन की क़ीमत क़रीब 870 करोड़ रुपये है. जिन समाधि स्थलों के बारे में हमने आपको बताया उनका कुल क्षेत्रफल करीब 200 एकड़ है. और उनकी कुल कीमत करीब एक लाख 74 हज़ार करोड़ रुपये है. 

इस Memorial का निर्माण दिल्ली के बीचों-बीच India Gate के सामने किया गया है. और इसकी आकृति गोलाकार है. इस War Memorial में आज़ादी के बाद अलग-अलग युद्धों में शहीद होने वाले 25 हज़ार 942 सैनिकों के नाम दीवार की ईंटों में उकेरे गए हैं. इनमें भारतीय सेना के वो जवान भी शामिल हैं, जिन्होंने दिसम्बर 2017 तक देश के लिए कुर्बानी दी. इसके अलावा वायुसेना और नौसेना के उन शहीदों के नाम भी लिखे गए हैं, जो जनवरी 2018 तक शहीद हुए. आने वाले दिनों में कई और नाम War Memorial की दीवारों में लगी ईंटों पर लिखे जाएंगे. 

ये Memorial चार चक्रों पर आधारित हैं. पहला है रक्षक चक्र. दूसरा है, त्याग चक्र. फिर वीरता चक्र और अंत में अमर चक्र. रक्षक चक्र में घने पेड़ों की कतारें हैं. और ये उन सैनिकों की प्रतीक हैं, जो देश की सीमाओं पर खड़े हैं. त्याग चक्र में शामिल सभी सैनिकों के नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखे गए हैं. वीरता चक्र में सैनिकों के शौर्य और पराक्रम को तांबे के चित्रों से दर्शाया गया है. और अंतिम चक्र है.. अमर चक्र. जिसमें साढ़े 15 मीटर ऊंचा ग्रेनाइट का स्तंभ है. इसके नीचे एक अमर ज्योति सदैव जलती रहेगी. 

The National War Memorial में 'परम योद्धा स्थल' भी बनाया गया है. जहां सेना के सर्वोच्च सम्मान परम वीर चक्र से सम्मानित 21 सैनिकों की प्रतिमाएं लगाई गई हैं. यानी आज देश के शहीदों के सम्मान में एक ऐसी श्रद्धांजलि दी गई है, जो उनके शौर्य, वीर गाथा और बलिदान का जीता-जागता प्रतीक है. और आने वाले दिनों में ये Memorial देश की हर पीढ़ी को भारत के लिए मर-मिटने वाले एक-एक सपूत की याद दिलाता रहेगा. जो लोग दिल्ली या उसके आस-पास के इलाके में रहते हैं. उनके लिए यहां जाना ज़्यादा मुश्किल नहीं है. लेकिन जो लोग देश के दूसरे हिस्सों में रहते हैं, आज उन्हें Zee News के माध्यम से भारतीय सैनिकों की शौर्यगाथा को महसूस करने का मौका मिलेगा. 

भारत में तो शहीदों की याद में National War Memorial बनने की प्रक्रिया में 59 साल का लम्बा वक्त बीत गया. लेकिन अब ये देखिए, कि अलग-अलग देशों के लिए युद्ध लड़ने वाले बहादुर भारतीय योद्धाओं को किस प्रकार सम्मानित किया गया. फ्रांस में World War-One memorial मौजूद है. जिसे वर्ष 1927 में ही बना लिया गया था. यहां पर उन 10 हज़ार भारतीय सैनिकों की याद को सहेज कर रखा गया है. ये भारत के ऐसे बहादुर सपूत थे, जिन्होंने फ्रांस के साथ मिलकर युद्ध लड़ते हुए अपने जीवन का बलिदान किया था.

101 वर्ष पहले...इज़राएल के Haifa को गुलामी की जंज़ीरों से मुक्ति दिलाने में भी भारतीय सैनिकों का अहम योगदान था. Germany और Turkey के गठबंधन की सेना ने इस शहर पर कब्जा कर लिया था. सितंबर 1918 में, Haifa को Ottoman Empire.. से मुक्ति दिलाने की ज़िम्मेदारी, भारत के सैनिकों को सौंपी गई. Ottoman Empire को Turkish Empire भी कहा जाता था. भारत में उस वक्त अंग्रेजों की हूकुमत थी. और उन्होंने भारत की तीन रियासतों - जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद के घुड़सवार सैनिकों को Haifa में युद्ध के लिए भेजा था. और उनके अदम्य साहस की बदौलत अंत में जीत भी भारत के सैनिकों की ही हुई. आज भी भारतीय सेना हर वर्ष 23 सितंबर को Haifa Day मनाती है. जबकि, इज़रायल में भी इसी दिन Haifa Day मनाया जाता है.

Russia में भी दूसरे विश्व युद्ध के शहीदों की याद में वर्ष 1960 में ही युद्ध स्मारक का निर्माण कर दिया गया था. यहां आपको ये भी पता होना चाहिए, कि दुनिया का पहला War Memorial कब और कहां बना था. वैसे तो युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में स्मारक बनाना एक पुराना चलन है.. लेकिन आधुनिक संदर्भ में इसका लिखित प्रमाण 15वीं सदी में मिलता है. रिसर्च के दौरान हमें पता चला, कि आज से लगभग 581 वर्ष पहले, वर्ष 1438 में ब्रिटेन में युद्ध स्मारक बनाया गया था. ये स्मारक इस मकसद से बनाया गया था, ताकि फ्रांस के खिलाफ युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को.. उनके साथी सैनिक याद करें और उनके लिए प्रार्थना करें. 

अंत में हम आपसे एक बार फिर ये कहना चाहते हैं.. कि एक शहीद के घर जाना चार धाम की यात्रा करने के बराबर है. अब National War Memorial ही भारत का सबसे बड़ा तीर्थ है. ये 25 हज़ार सैनिकों के शौर्य और बलिदान का घर है. अब आप जब भी दिल्ली आएं..तो यहां आकर देश के शहीदों को ज़रूर नमन करें.

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