ZEE जानकारी: नेहरू धर्मनिरपेक्षता को संविधान में क्यों नहीं जोड़ पाए?
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ZEE जानकारी: नेहरू धर्मनिरपेक्षता को संविधान में क्यों नहीं जोड़ पाए?

 क्या आप जानते हैं कि धर्म निरपेक्ष का अर्थ क्या होता है? क्या आप जानते हैं कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कब बना? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा . भारत के संविधान का Preamble यानी प्रस्तावना बताती है कि भारत को कैसा राष्ट्र होना चाहिए. 

ZEE जानकारी: नेहरू धर्मनिरपेक्षता को संविधान में क्यों नहीं जोड़ पाए?

आपने सुना होगा कि भारत एक Secular यानी धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है. आज भारत की कई पार्टियां हैं जो Secularism के नाम पर ही जीवित हैं. क्या आप जानते हैं कि धर्म निरपेक्ष का अर्थ क्या होता है? क्या आप जानते हैं कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र कब बना? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटना होगा . भारत के संविधान का Preamble यानी प्रस्तावना बताती है कि भारत को कैसा राष्ट्र होना चाहिए. 

संविधान बनाने के लिए 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था. यहां 3 वर्षों तक विस्तृत चर्चा के बाद ही संवैधानिक प्रावधान तय किए गए थे. भारत के संविधान की पहली प्रस्तावना में Secular शब्द को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया गया था. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और हमारे संविधान के निर्माता भीमऱाव अंबेडकर भी संविधान में Secular शब्द के इस्तेमाल के खिलाफ थे. 15 November, 1948 को संविधान सभा के सदस्य प्रोफेसर KT शाह ने संविधान सभा में आग्रह किया था कि संविधान की प्रस्तावना में Secular शब्द का प्रयोग किया जाए.  

6 दिसंबर 1948 को इस विषय पर बोलते हुए संविधान सभा के एक और सदस्य लोकनाथ मिश्रा ने पूछा, "क्या हम ये सच में मानते हैं कि धर्म को जीवन से अलग किया जा सकता है? क्या हम ये भी मानते हैं कि विभिन्न धर्मों को मानने वाले समाज में हम अपने लिए धर्म का चुनाव नहीं कर पाएंगे? अंत में उन्होंने कहा की अगर धर्म राष्ट्र से परे है तो फिर हमें अपने संविधान से धर्म शब्द को ही हटा देना चाहिए." वहीं संविधान के Drafting Committee के उपाध्यक्ष H.C. मुखर्जी ने पूछा, "क्या हमें सच में ऐसा लगता है कि हम एक Secular यानी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाना चाहते हैं? अगर ऐसा है तो फिर हम धर्म के आधार पर किसी को अल्पसंख्यक नहीं बोल सकते हैं." 

प्रश्न था कि एक ही संविधान में धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक मानसिकता को समर्थन कैसे मिल सकता है . और शायद इसीलिए लंबी चर्चा के बाद ये तय हुआ कि भारत के संविधान में Secular शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा. आज़ादी के 3 दशक बाद तक भारत संप्रभु और लोकतांत्रिक गणराज्य था पर Secular नहीं था. लेकिन 1977 में संविधान के 42वें संशोधन के बाद भारत समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भी बन गया . खास बात ये है कि जब इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान का 42वां संशोधन किया था तब देश में Emergency लगी हुई थी. 
ऐसे मे कई प्रश्न खड़े होते हैं: 

1. क्या Emergency के दौरान संविधान का संशोधन किया जाना चाहिए था?
2. जब जवाहर लाल नेहरू और भीम राव अंबेडकर दोनों मानते थे कि भारत के संविधान में Secular शब्द का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, तब ऐसी क्या वजह थी कि 1977 में भारत को Secular बनना पड़ा?
3. क्या Secular होने के बाद भी भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा बरकरार रहना चाहिए?

ये तीन प्रश्न ऐसे हैं जिसपर कभी कोई चर्चा नहीं होती. इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले हमें ये समझना होगा कि Secular शब्द आया कहां से? Secularism शब्द का प्रयोग सबसे पहले मध्यकालीन यूरोप में हुआ था. इतिहासकार Ian Copland के अनुसार Secular सरकार का किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं होना चाहिए. Europe में Secularism की व्यवस्था इसलिए लाई गई थी क्योंकि Europe में सैकड़ों वर्षों तक धर्म के आधार पर लड़ाई होती रही थी. उसके बाद वहां Secularism के सिद्धांत को अपनाया गया था ताकि धर्म के आधार पर होने वाली लड़ाइयों से बचा जा सके. Europe ने भारत को भी धर्म के चश्मे से देखा था और यही कारण है कि अंग्रेज भारत को हिंदू और मुसलमान दो कौम के तौर पर देखते थे. पर हमने अब तक Secular शब्द को समझा नहीं है और इसी वजह से आज भी हम सांप्रदायिक आधार पर बंट जाते हैं. 

इतिहासकार Ronald Inden ने अपनी किताब Imagining India में लिखा है कि भारत ने एक तरफ Secularism अपना लिया और वहीं दूसरी तरफ Muslim Personal Law को भी जारी रखा . यहां आरक्षण भी है. उनका मानना था कि अगर भारत में धर्म के आधार पर कानून है तो फिर राष्ट्र धर्मनिरपेक्ष कैसे हो सकता है.

ये भी देखें: 

France एक Secular देश का उदाहरण है . दुनिया में आधुनिक लोकतंत्र French Revolution के बाद ही शुरू हुआ था . France में सरकार ना तो किसी विशेष धर्म के लोगों को कोई सुविधा देती है और ना ही इस आधार पर भेदभाव करती है . ये सिद्धांत फ्रांस में 18वीं शताब्दी से चलता आ रहा है. और वर्ष 1905 में आए Law Of Separation से चर्च और सरकार को पूरी तरीके से अलग कर दिया गया था . धर्म और सरकार को अलग रखना फ्रांस की राजनीति के DNA में है और इससे फ्रांस का लोकतंत्र कमजोर नहीं होता बल्कि और मजबूत होता है. पर भारत कि स्थिति अलग है. प्रश्न उठता है कि अगर भारत में आरक्षण, Minority और मुस्लिम पर्सनल लॉ को बरकरार रखना है तो क्या भारत Secular राष्ट्र भी बना रह सकता है.

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