Exclusive: जैसे गूंगा गुड़ खा ले और बता न पाए...राम मंदिर बनने पर मेरी खुशी वैसी ही है: साध्वी ऋतंभरा
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Exclusive: जैसे गूंगा गुड़ खा ले और बता न पाए...राम मंदिर बनने पर मेरी खुशी वैसी ही है: साध्वी ऋतंभरा

Sadhvi Ritambhara Interview: अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाली साध्वी ऋतंभरा 22 जनवरी को लेकर खुशी से आह्लादित हैं. उन्होंने अपनी खुशी बयां करते हुए कहा कि जैसे जैसे गूंगा गुड़ खा ले और बता न पाए, ऐसी ही स्थिति उनकी हो रही है.

Exclusive: जैसे गूंगा गुड़ खा ले और बता न पाए...राम मंदिर बनने पर मेरी खुशी वैसी ही है: साध्वी ऋतंभरा

Sadhvi Ritambhara on Ayodhya Ram Temple: करोड़ों भारतीयों की आस्था- श्रद्धा के प्रतीक भगवान राम अपने बाल रूप में 22 जनवरी को अयोध्या के अपने घर में प्राण प्रतिष्ठित होने जा रहे हैं. इस मौके पर देश-दुनिया में जबरदस्त तैयारियां हो रही हैं. मंदिर सजाए जा रहे हैं. जगह जगह सुंदरकांड और भजन-कीर्तन का दौर चल रहा है. जी न्यूज भी अपने रामराज्य प्रोग्राम की कड़ी में राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी शख्सियों से इंटरव्यू कर अनछुए इतिहास को सामने ला रहा है. जी न्यूज के कंसल्टिंग एडिटर दीपक चौरसिया ने राम मंदिर आंदोलन की पुरोधा और वात्सल्य ग्राम की संस्थापक साध्वी ऋतंभरा से एक्सक्लूसिव इंटरव्यू किया. पेश है इंटरव्यू के खास अंश:- 

'अयोध्या में मंदिर नहीं महल बन रहा'

देश में 22 जनवरी को लेकर चल रहे माहौल पर साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि लगता है कि अयोध्या में मंदिर नहीं बल्कि महल बन रहा है. देश के लोगों में 22 जनवरी को लेकर गजब का उत्साह है. उस दिन दीवाली से भी बड़ी दीवाली मनेगी. पूरे देश में जबरदस्त तैयारी चल रही है. सब लोग टकटकी लगाकर भगवान राम के अपने भवन में पधारने का इंतजार कर रहे हैं.  

'मेरे पुरखे 500 वर्ष संघर्ष करके चले गए'

राम मंदिर पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर साध्वी ऋतंभरा ने कहा, 'जब निर्णय आया तो मन की खुशी का पारावार नहीं था. 500 वर्ष मेरे पुरखे संघर्ष करके चले गए. बहुत सारे साधु- संत अपने जीवन में मंदिर नहीं देख पाए. अब भगवान राम अपने धाम में पधार रहे हैं तो इस आनंद को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है.'

'जर्जर ढांचे के लिए जीवित लोगों को लाश बना दिया'

अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाए जाने पर दुख और गुस्सा प्रकट करते हुए साध्वी ऋतंभरा ने कहा, 'पता न था, जर्जर ढांचे के लिए जीवित लोगों को लाश बना देंगे. कई बहनों के भाई चले गए, कईयों की मांग के सिंदूर उजाड़ दिए गए. निशस्त्र किशोरों की छातियों में गोलियां उतार दी गईं. मैं टेंट में रामजी को नहीं देख सकती थी. एक बार दर्शन करके मैं दोबारा दर्शन करने नहीं आई. मैंने प्रण लिया कि जब मंदिर बनेगा तभी दर्शन करने आऊंगी.' 

'लोग मेरे साथ फोटो खिंचवाने से डरते थे'

राम मंदिर आंदोलन में भाग लेने पर अपने साथ हुई प्रताड़ना की टीस जाहिर करते हुए साध्वी ऋतंभरा ने कहा, 'मेरे मृदुल से गुरुदेव का अपमान किया गया. मुझे 3 दिनों तक अवैध तौर पर बंद रखा गया. ग्वालियर में मुझे कैदियों के साथ गंदी जेल में डाल दिया गया. मुझ पर 35 मुकदमे थे. जहां भी भाषण दिया, वहीं मुकदमा दर्ज कर दिया गया. लोग मेरे साथ फोटो खिंचवाने से डरते थे. अपनों से उपेक्षा झेलना पीड़ा देता है. मेरा मनोबल तोड़ने की पूरी कोशिश की गई. पथराव कराया गया, मेरी कॉलर बोन टूट गई. लेकिन मेरी हिम्मत नहीं टूटी. मैं प्रण कर चुकी थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपने आराध्य की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ूंगी.'

'पापियों ने रामजी से प्रमाण मांगे'

यूपीए शासन काल में भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने से व्यथित साध्वी ने कहा, 'मैंने राजनीति का बहुत गलत रूप देखा. परंपरा को दुत्कारने वाली राजनीति हुई. हिमालय जैसा अपराध बोध था. भारत के मन को पापियों ने नहीं समझा. पापियों ने रामजी से प्रमाण मांगे. साधु की आह बहुत दूर तक दंड देती है. यही उनके साथ हुआ. जनता ने उन पापियों को अपने दिलों से उतार दिया.' 

'हमारी आस्था का मजाक उड़ाया'

अयोध्या में राम मंदिर से देशभर में बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता पर साध्वी बोलीं, 'शबरी जैसी, भरत जैसी प्रतीक्षा से मन बेचैन, जो राम रथ लेकर निकला उसे प्रसाद मिलेगा. जो राम की जयकार करेगा, जनता उसी के साथ जाएगी. आपके पास समय था, आपने हमारी भावना नहीं समझी. आपने हमारी आस्था का मजाक उड़ाया. आप मंदिर का उद्घाटन हो रहा तो आपके पेट में क्यों दर्द हो रहा है.' 

'लंबे काल की उपेक्षा झेली'

साध्वी ऋतंभरा ने अपने प्रति बरती गई उपेक्षा पर भी गहरा दुख और अफसोस जाहिर किया, 'मैं भारत के कण कण में मगन रहती हूं. मैंने लंबे काल की उपेक्षा झेली. मुझे पद या सरकारी तमगे की चाहत नहीं थी. मुझे अपनी विचारधारा से समझौता स्वीकार नहीं है. मुझे कभी किसी पद की अभिलाषा नहीं रही है. राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाने में लाखों कारसेवकों के साथ मैंने भी अपना योगदान दिया. इसके बावजूद मेरी उपेक्षा की गई, यह बात मुझे व्यथित करती है.' 

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