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MDH King: खुद कैसे बनें अपने ब्रांड की पहचान, हमेशा याद रखें महाशय धर्मपाल गुलाटी के ये नियम

एमडीएच मसाले (MDH Masale) के संस्थापक महाशय धर्मपाल गुलाटी (Mahashay Dharampal Gulati) ने 98 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली है. उन्होंने दिल्ली के माता चंदन देवी हॉस्पिटल में 3 दिसंबर को सुबह 5.38 बजे आखिरी सांस ली. बताया जा रहा है कि वह पहले कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित हुए थे. हालांकि उससे ठीक होने के बाद गुरुवार सुबह उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उनका निधन हो गया.

ईमानदारी, मेहनत और अनुशासन का संगम

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ईमानदारी, मेहनत और अनुशासन का संगम

जिंदगी में सफल होने के लिए हर कदम पर ईमानदारी, मेहनत और अनुशासन का दामन थामे रहना बहुत जरूरी है. अगर घमंड में हमारे कदम जरा भी डगमगाने लगे तो बिजनेस के साथ हम खुद भी धरतल पर आ सकते हैं. अपनी नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए उस पर पैर जमाए रखना भी जरूरी होता है. वे पद्म विभूषण से नवाजे जा चुके हैं.

खुद बनें अपने ब्रांड की पहचान

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खुद बनें अपने ब्रांड की पहचान

मसालों के सरताज बादशाह महाशय धर्मपाल गुलाटी ने मार्केटिंग के गुर उस समय सीख-समझ लिए थे, जब किसी को उनकी एबीसीडी भी नहीं पता थी. वे अपने ब्रांड एमडीएच का चेहरा बने रहे और खुद उसे प्रमोट करने से कभी पीछे नहीं हटे. इससे हमें भी सीख मिलती है कि जब हम कुछ अच्छा करते हैं या दुनिया तक अपना नाम और काम पहुंचाना चाहते हैं तो हमें खुद ही आगे आकर उसकी कमान थामनी होगी.

चेहरे पर न थकान, न शिकन

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चेहरे पर न थकान, न शिकन

इतने उम्रदराज हो जाने के बावजूद मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी अपनी फैक्ट्रियों में विजिट के लिए जाते रहते थे. शायद हर सफल व्यक्ति की तरह वे भी यह बात समझते थे कि कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाने और व्यवसाय को अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए जमीनी तौर पर जुड़े रहना बहुत जरूरी था.

परिवार का साथ जरूरी

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परिवार का साथ जरूरी

एमडीएच (MDH) यानी महाशियां दी हट्टी को कारोबार के तौर पर विकसित करने में मुख्य भूमिका महाशय धर्मपाल गुलाटी की थी, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उन्हें अपने परिवार का साथ नहीं मिला. उनके खोखे पर बिक्री बढ़ने के बाद पूरे परिवार ने अपनी सारी जमा-पूंजी और पाई-पाई लगाकर इस बिजनेस को अपने मुकाम तक पहुंचाया. दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में खोली गई दुकानें समय के साथ एक एंपायर बन गईं.

खुद पर हो विश्वास

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खुद पर हो विश्वास

धर्मपाल गुलाटी के पिता ने उन्हें 1500 रुपये दिए थे. उसमें से उन्होंने 650 रुपये में घोड़ा और तांगा खरीद लिया था. तांगा भाई को देने के बाद उन्होंने बचे हुए रुपयों से करोलबाग में खोखा लगाकर मसाले बेचना शुरू कर दिया था. वे अपने मसाले खुद ही पीसते थे और देखते ही देखते लोगों की जुबां पर उनके मसालों का स्वाद चढ़ने लगा था. ऐसा नहीं है कि इस मंजिल तक आते-आते उनके कदम डगमगाए नहीं होंगे, लेकिन उन्होंने खुद पर से विश्वास कम नहीं होने दिया.

नया करने की चाह

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नया करने की चाह

आमतौर पर सब कुछ खो जाने के बाद जीवन की फिर से शुरुआत करना आसान नहीं होता है. जिंदगी में कड़वे पलों का अनुभव ले चुके महाशय धर्मपाल गुलाटी ने दिल्ली में तांगा चलाना शुरू कर दिया था. हालांकि नियति को कुछ और ही मंजूर था और उन्होंने वह तांगा अपने भाई को थमाकर खुद मसालों का व्यापार करने का निर्णय लिया था. इससे हमें सबक मिलता है कि नई शुरुआत करने से कभी भी घबराना नहीं चाहिए.

कहानी एक तांगेवाले की

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कहानी एक तांगेवाले की

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने बहुत से परिवारों को बेघर कर दिया था. लोग अपना बसा-बसाया जीवन छोड़कर सड़कों पर आने को मजबूर हो गए थे. 1922 में पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे महाशय धर्मपाल गुलाटी (Mahashay Dharampal Gulati) के परिवार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. उनके पिता महाशय चुन्नी लाल गुलाटी 1947 में बंटवारा होने के बाद दिल्ली में बस गए थे. कहा जाता है कि हिंसा के शुरुआती दौर में उनका परिवार अमृतसर में बसा था लेकिन काम की तलाश में वे दिल्ली आ गए थे. दिल्ली आने के बाद महाशय धर्मपाल ने तांगा चलाना शुरू किया था. फिर यहीं से शुरू हुआ था उनका एक ऐसा सफर, जिसके चर्चे देश-विदेश तक फैले हुए हैं. जानिए महाशय धर्मपाल गुलाटी की जिंदगी से जुड़े कुछ ऐसे ही सफल पल, जिन्हें अमल कर हम भी सफलता की सीढ़ी चढ़ सकते हैं.

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