कितना कामयाब होगा PM मोदी के आक्रामक राष्ट्रवाद के सामने राहुल गांधी का नया समाजवाद
Advertisement
trendingNow1512113

कितना कामयाब होगा PM मोदी के आक्रामक राष्ट्रवाद के सामने राहुल गांधी का नया समाजवाद

कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में सबसे बड़ा वादा यह किया है कि देश के सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों के बैंक खाते में सरकार 72,000 रुपये साल देगी.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए पार्टी का घोषणापत्र पेश किया.

नई दिल्ली: पहले चरण के मतदान से नौ दिन पहले आज मंगलवार को राहुल गांधी ने कांग्रेस का चुनाव घोषणापत्र पेश कर दिया. घोषणापत्र के औपचारिक रूप से सामने आने से ठीक पहले कांग्रेस ने जो प्रचार अभियान शुरू किया, उसे इंडियाज न्यू ट्रिस्ट विद डेस्टिनी यानी भारत का नया मुकद्दर नाम दिया गया. इस तरह कांग्रेस 72 साल बाद वही नारा वापस लाई है जिसे 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि के ऐतिहासिक भाषण में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस देश के सामने पेश किया था. उस जमाने में नेहरू देश को समाजवादी मॉडल पर आगे लेकर बढ़े थे. आज जब कांग्रेस ने घोषणापत्र जारी किया तो उसके पन्नों में एक बार फिर समाजवाद की आहट महसूस हो रही है.

कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में सबसे बड़ा वादा यह किया है कि देश के सबसे गरीब 20 फीसदी लोगों के बैंक खाते में सरकार 72,000 रुपये साल देगी. उन्होंने दूसरा वादा यह किया कि मनरेगा में न्यूतम 100 दिन की रोजगार गारंटी को बढ़ाकर 150 दिन किया जाएगा. राहुल गांधी ने तीसरा बड़ा वादा किया कि केंद्र सरकार की नौकरियों में खाली पड़े 22 लाख पदों को इसी वित्त वर्ष में भर दिया जाएगा. इसके अलावा उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो राफेल सौदे की जांच पहले दिन से शुरू हो जाएगी.

इन चारों वादों को जरा गौर से देखें और फिर इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति से मिलाकर देखें. अपने चुनावी भाषण में प्रधानमंत्री सबसे ज्यादा किसी चीज का जिक्र कर रहे हैं तो वह है पाकिस्तान में दिखाया गया भारतीय सेना का शौर्य और देश के भीतर आतंकवाद पर सरकार की सख्त कार्रवाई. इसके बाद प्रधानमंत्री यह बता रहे हैं कि किस तरह विपक्ष इन दोनों चीजों का अपमान कर रहा है और इस तरह पाकिस्तान की जुबान बोल रहा है. प्रधानमंत्री का सबसे बड़ा तर्क यह है कि विपक्ष मुद्दाविहीन है और वह सिर्फ उन्हें हटाने के लिए महामिलावट कर रहा है.

अगर भारत से बाहर का कोई आदमी आकर इन दोनों चुनाव प्रचार अभियानों को देखे तो उसे यह समझना कठिन हो जाएगा कि क्या यह दोनों प्रचार अभियान एक ही चुनाव के लिए हो रहे हैं. चुनाव जब एक है तो दो राजनैतिक दलों का चुनावी एजेंडा इतना अलग कैसे दिख रहा है. यानी लंबे समय बाद देश में ऐसा हो रहा है कि दो राजनैतिक दल समांतर चुनाव प्रचार कर रहे हैं.

इस तरह चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आक्रामक राष्ट्रवाद के सामने राहुल गांधी अपना नया समाजवाद लेकर आ रहे हैं. राहुल इस समय न सिर्फ पंडित नेहरू की शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं, बल्कि उनकी रणनीति भी वापस ला रहे हैं. देश की पहली आईआईटी खड़गपुर के पहले बैच के दीक्षांत समारोह में पंडित नेहरू ने समझाया था कि राष्ट्रवाद उस समय तक बहुत अच्छा होता है, जब कोई देश गुलाम होता है. गुलामी से लड़ने में यह देश को एक सूत्र में बांधता है. लेकिन आजाद मुल्क में कई बार राष्ट्रवाद के नाम पर बहुसंख्यक आबादी खुद को राष्ट्र घोषित कर देती है और अल्पसंख्यक कटा हुआ महसूस करते हैं. इसलिए आजादी के बाद नेहरू राष्ट्रवाद की जगह राष्ट्रनिर्माण या राष्ट्रसेवा पर जोर देते थे. और इस काम के लिए उन्होंने समाजवाद को अपना औजार बनाया.

राहुल के घोषणापत्र में गरीब लोगों को 72,000 रुपये साल देने का वादा बुनियादी रूप से एक समाजवादी नारा है. मनरेगा में कार्य दिवस बढ़ाना भी इसी का हिस्सा है. यह दोनों हिस्से ग्रामीणा भारत के किसान और भूमिहीन किसान को सीधे प्रभावित करने वाले हैं. वहीं 22 लाख सरकारी पदों को साल भर के भीतर भरने का उनका वादा मध्यमवर्गीय नौजवानों के लिए सीधी पेशकश है. देश में उदारीकरण कितना भी बढ़ गया हो लेकिन अब भी सरकारी नौकरी का क्रेज कितना ज्यादा है, यह किसी से छुपा नहीं है. इस तरह राहुल गांधी ने इन तीन वादों में ही देश की बड़ी आबादी के सामने समाजवादी सपना रख दिया है.

अब सवाल यह है कि राहुल गांधी ने जो वादे किए हैं क्या लोग उन पर यकीन करेंगे. क्योंकि राहुल की घोषणा के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि ऐसा करना असंभव है. भारत सरकार के खजाने में इतना पैसा नहीं है कि ये योजनाएं अमल में लाई जा सकें. इसके जवाब में राहुल गांधी का कहना है कि बीजेपी को तीन राज्यों में किसान कर्ज माफी भी असंभव लगती थी, लेकिन उनकी सरकारों ने यह करके दिखा दिया.

लोगों के विश्वास करने से बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस अपनी बात लोगों तक पहुंचाएगी कैसे. प्रचार तंत्र के मामले में कांग्रेस बहुत मजबूत नहीं है और न ही उसके पास हर बूथ पर अपना कार्यकर्ता है. जाहिर है जन-जन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए राजनैतिक दलों को इन दोनों चीजों की जरूरत पड़ती है. वैसे भी 11 अप्रैल को पहली वोटिंग होने में अब नौ दिन बचे हैं. क्या इन नौ रातों में कांग्रेस अपनी बात जनता तक पहुंचाएगी. और अगर पहुंचा भी ले तो क्या इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुप बैठ जाएंगे. वैसे भी सबको याद होगा कि संसद के अपने पहले ही भाषण में मोदी ने कहा था कि उन्हें कुछ आता हो या न आता हो, राजनीति खूब अच्छे से आती है और यह बात तो विपक्ष भी मानेगा.

बहुत संभव है कि मोदी के तरकश से फिर कोई अचूक तीर निकले और पहले से ही राष्ट्रवाद के जोश में डूबी जनता, एक बार फिर सिर्फ उन्हीं की सुने. तो राष्ट्रवाद और समाजवाद के बीच शुरू हुई इस होड़ पर अभी नजर बनाए रखिए.

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

Trending news