एक मजबूर EVM की आत्मकथा: 5000 साल पुरानी सभ्‍यता और 23 मई का विकट दिन
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एक मजबूर EVM की आत्मकथा: 5000 साल पुरानी सभ्‍यता और 23 मई का विकट दिन

चुनाव आयोग ने लंबी प्रक्रिया के बाद लाखों की संख्या में मुझे तैयार कराया. फिर सुरक्षा के चाक चौबंद उपायों के बीच मुझे जिला मुख्यालय तक भिजवाया. वहां मुझे मोटे तालों के बीच अंधेरे कमरों में रख दिया गया. उस अंधेरे में मैं सोचती थी कि खुद अंधेरे में रहकर मैं लोकतंत्र का उजाला कैसे फैलाऊंगी. लेकिन यही जमाने की रीत है...

एक मजबूर EVM की आत्मकथा: 5000 साल पुरानी सभ्‍यता और 23 मई का विकट दिन

यह मैं (EVM) ही जानती हूं कि 23 मई का दिन मेरे लिए कितना विकट होने वाला है. 5000 साल पुरानी सभ्यता के वारिस भारत देश में जब 500 से ज्यादा सीटों के चुनाव परिणाम घोषित होंगे तो वे मेरे ही रक्त और मांस से निकलेंगे. मैं ही जानती हूं कि यहां तक पहुंचने में मुझे और मेरी नवजात बहन वीवीपेट को क्या-क्या मुसीबतें झेलनी पड़ीं. मेरा तो जो है सो वो है ही, लेकिन जरा सोचिए कि वीवीपेट के जन्म के समय ही डॉक्टर्स ने बता दिया था कि इसे धूप और लू-लपट से बचाना, यह बहुत नाजुक है. लेकिन बिधना का लेख कौन टाल सकता है. इसे पहली बार घर से निकाला तो आर्यावर्त की पवित्र भूमि का वायुमंडल 48 डिग्री के ताप में झुलस रहा था. इसके बावजूद मैं इसे गोद में लिए बूथ-बूथ घूमती रही.

चुनाव आयोग ने लंबी प्रक्रिया के बाद लाखों की संख्या में मुझे तैयार कराया. फिर सुरक्षा के चाक चौबंद उपायों के बीच मुझे जिला मुख्यालय तक भिजवाया. वहां मुझे मोटे तालों के बीच अंधेरे कमरों में रख दिया गया. उस अंधेरे में मैं सोचती थी कि खुद अंधेरे में रहकर मैं लोकतंत्र का उजाला कैसे फैलाऊंगी. लेकिन यही जमाने की रीत है. जिसे सबको आजादी देनी हो, कई बार उसे खुद ही कैद में रहना होता है. इस देश के लिए यह कौन सी नई बात है. करोड़ों भारतवासियों को नव जीवन देने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी तो मृत्यु की गोद में समाना पड़ा था.

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महात्‍मा और मशीन
खैर, मैं कहां खामख्याली में पड़ गई. वो ठहरे महात्मा और मैं मामूली सी मशीन. तो जब मैं अंधेरे कमरे में बंद थी, तब बाहर अफसरों की टोलियां कर्मचारियों की फौज को समझा रही थीं कि मुझे कैसे इस्तेमाल करना है. पहले तो वे मुझे सीधे इस्तेमाल करते थे. लेकिन हुआ यह कि जो चुनाव हार जाता था, वही मेरे चाल-चलन पर अंगुली उठाने लगता था. इसलिए कुछ चुनावों से मॉक पोल की व्यवस्था कर दी गई. यानी जितने वोट मुझे डलवाने थे उसके अलावा कुछ अतिरिक्‍त वोट भी जांच-परख के लिए मुझसे डलवाए गए. लेकिन इस अतिरिक्त मेहनत का मुझे कभी ओवर टाइम नहीं मिला.

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लेकिन मेरे काम बढ़ने से मेरी मुसीबतें नहीं घटीं. इसलिए मेरी मर्यादा की रक्षा के लिए वीवीपेट को मुझसे जोड़ा गया. इसमें होता यह है कि इधर मेरा बटन दबता और उधर वीवीपैट पर प्रत्याशी का नाम दिख जाता. मुझे लगा कि अब तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. इस तरह भारत में 542 लोकसभा सीटों पर 38 दिन तक वोट पड़ते रहे. मैं कभी किसी ट्रक में, कभी किसी टेंपो में, कभी चुनाव कर्मचारी के हाथ में तो कहीं गोदी में घूमती रही. चुनाव के बाद मुझे सील कर दिया गया. मैं एक बार फिर स्ट्रांग रूम में आ गई.

मैंने सोचा कि चलो अच्छा है इस बार मेरे ऊपर छेड़छाड़ का आरोप नहीं लगा. लेकिन तभी टीवी पर वे वीडियो दिखने लगे कि कहीं कोई ट्रक वाला मुझे सैकड़ों की संख्या में लिए स्ट्रांग रूम की तरफ चला आ रहा है. कहीं इल्जाम लगा कि मुझ पर नजर रखने वाला सीसीटीवी कैमरा खराब हो गया है. कभी मुझे नेताजी के गुर्गों के पास दिखा दिया गया. हद तो तब हो गई जब अफवाह फैल गई कि मेरी 20 लाख बहनें लापता हो गई हैं. और देश में बड़े पैमाने पर ईवीएम की अदला बदली यानी ईवीएम स्वैपिंग होने वाली है.

अब आप ही बताइये कि यह कोई ईमान की बात है. इसमें मेरा दोष कहां हैं. अगर कैमरा बंद हुआ तो क्या मैंने किया. अगर मेरी चोरी हुई तो मैं तो पीडि़त ही हुई न. और अगर मेरी स्वैपिंग हुई तब भी पीड़ित मैं ही हूं. अगर कहीं गड़बड़ी है तो वह नेताओं की नीयत में है. अगर मेरी देख रेख में कमी रह गई हो तो मेरे अभिभावक चुनाव आयोग से पूछा जाना चाहिए. दूसरों की गलतियों के लिए बार-बार मुझसे अग्नि परीक्षा क्यों कराई जा रही है. खेत खाए गदहा और मार खाए जुलाहा.

मां और मत-पेटी
लेकिन इस सबके बावजूद मैं न तो दुखी हूं और न ही परेशान. दरअसल मरने से पहले मेरी मां मत-पेटी ने मुझे बताया था कि बेटी यह दुनिया ऐसी ही है. मां के ऊपर भी बूथ कैप्चर और बूथ छापने के आरोप लगते थे. उन्हें तो कई बार लोग पोलिंग स्टेशन से उठा ले जाते थे और घर से वोट डालकर वापस रख जाते थे. मेरे जमाने में तो वीडियो ही वायरल हो रहे हैं, उनके समय तो बाकायदा लाठी डंडा और गोलियां तक चलती थीं. कोई चुनाव ऐसा नहीं होता था जिसमें कुछ लोग मारे न जाएं. इसके अलावा सैकड़ों बूथ पर दुबारा वोटिंग होती थी.

जब अम्मा चलने लगीं तो मैंने कहा अम्मा बाकी तो सब ठीक है लेकिन यह जो हैकिंग का आरोप लगता है, वह तो आप पर नहीं लगा. अम्मा ने समझाया, बेटा तेरे पास तो वीवीपेट का कुछ सेकंड दिखने वाला सबूत है. मेरे साथ मतपत्र होते थे. एक बार तो आरोप लगा कि मतपत्र पर ऐसी स्याही लगी है, जो उड़ जाती है. लेकिन तब की सरकार ने वह बात नहीं मानी.

योगेश्वर कृष्ण की भाषा
अम्मा की यह बात सुनकर मुझे समझ आया कि जब तक चुनाव होते रहेंगे, हमारे खानदान पर आरोप लगते रहेंगे. और इन्हीं आरोपों के बीच इस महान देश में सरकारें आती-जाती रहेंगी. बड़े बड़े दावे फुस्स होंगे और चौंकाने वाली बातें होती रहेंगी. क्योंकि असल में मैं तो योगेश्वर कृष्ण की भाषा में निमित्त मात्र हूं. असल काम तो नर नारायण को करना है. उसकी अंगुली पर अब भी अदृश्य सुदर्शन चक्र घूमता रहता है. वह अंगुली जिस तरफ उठती है, वह खत्म हो जाता है, वह अंगुली जिसकी तरफ दबती है, तनकर खड़ा हो जाता है.

इसलिए 23 मई को जो नतीजे आएंगे, आप उनका भोग लगाएं. मेरी जो भलाई-बुराई होगी उसे मैं अपनी नियति समझ कर भोग लूंगी. अगर कभी मेरे चाल-चलन में वाकई दोष मिला तो बदल लूंगी. लेकिन फिलहाल आपको नई सरकार की अग्रिम बधाई. अगर आप थोड़ा धन्यवाद मुझे और मेरी मासूम बहन को भी देना चाहें तो आपका बड़प्पन होगा.

आपके उत्तर की प्रतीक्षा में
आपकी

ईवीएम

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