एमपीसीए पर सिंधिया खेमे की बादशाहत बरकरार

कांग्रेस और भाजपा के दो सियासी धुरंधरों की नाक की लड़ाई में तब्दील होने के बाद कई नाटकीय घटनाक्रमों के गवाह बने एमपीसीए चुनावों में केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई वाले खेमे ने विरोधियों का लगातार दूसरी बार सूपड़ा साफ कर दिया।

इंदौर : कांग्रेस और भाजपा के दो सियासी धुरंधरों की नाक की लड़ाई में तब्दील होने के बाद कई नाटकीय घटनाक्रमों के गवाह बने एमपीसीए चुनावों में केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की अगुवाई वाले खेमे ने विरोधियों का लगातार दूसरी बार सूपड़ा साफ कर दिया।
मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन (एमपीसीए) के द्विवाषिर्क चुनावों में सिंधिया खेमे ने प्रदेश की भाजपा सरकार के उद्योग मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के गुट को पटखनी देते हुए अध्यक्ष पद समेत कार्यकारिणी के सभी ओहदों पर कब्जा जमाया।
भारी कश्मकश और दलगत राजनीति की छाया में हुए एमपीसीए चुनावों में सिंधिया ने विजयवर्गीय को 77 मतों से करारी मात दी और वह लगातार चौथी बार प्रदेश के क्रिकेट संगठन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पूर्व ग्वालियर रियासत के वंशज को 150 मत मिले, जबकि एमपीसीए चुनावों में लगातार दूसरी बार किस्मत आजमाने वाले दमदार भाजपा नेता को महज 73 वोटों से संतोष करना पड़ा।
एमपीसीए चुनावों के दौरान कुल 258 मतदाताओं में से 232 ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। सिंधिया ने कल देर रात चुनावी नतीजे घोषित होने के बाद अपने खेमे की शानदार जीत पर पहली प्रतिक्रिया में कहा, ‘एमपीसीए चुनावों में दूध का दूध और पानी का पानी हो गया। यह राजनीति नहीं, बल्कि क्रिकेट का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में नकारात्मक सोच वाले लोगों के लिये कोई जगह नहीं है।’ कांग्रेस के युवा चेहरों में शामिल नेता ने कहा, ‘क्रिकेट के क्षेत्र में दलगत राजनीति का भी कोई स्थान नहीं होना चाहिये। यह क्षेत्र खेलभावना से जुड़ा है और इसे ऐसा ही बना रहना चाहिये। वैसे विरोधी पक्ष ने (एमपीसीए चुनावों में) तमाम सियासी हथकंडे अपनाये थे।
एमपीसीए चुनावों का मतदान खत्म होने से कुछ देर पहले मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की विशेष खंडपीठ ने सहायक पंजीयक (फर्म एवं संस्थाएं) के उस विवादित आदेश पर कल 26 अगस्त को रोक लगा दी, जिसके तहत सिंधिया समेत 20 लोगों की संगठन की आजीवन सदस्यता को शून्य घोषित कर दिया गया था। अदालत ने दो रिट अपीलों पर सुनवाई करते हुए सभी 20 लोगों को एमपीसीए चुनावों में कल मताधिकार के इस्तेमाल की भी इजाजत दे दी।
सिंधिया ने कहा, ‘मैं न्यायालय को नमन करना चाहता हूं, जिसने सच की लड़ाई लड़ रहे हमारे मतदाताओं के साथ इंसाफ किया। नतीजतन वे एमपीसीए चुनावों में अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सके।’ उन्होंने अपने खेमे की जीत को ‘क्रिकेट, सच और खेल भावना की विजय’ बताते हुए कहा, ‘एमपीसीए सदस्यों ने हम पर जो विश्वास जताया है, हम उस पर खरे उतरने का प्रयास करते हुए प्रदेश के क्रिकेट को नयी उंचाइयों पर ले जायेंगे।’ बहरहाल, सिंधिया ने एक सवाल पर कहा, ‘मैं विरोधी पक्ष के बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, क्योंकि उसके बारे में मुझसे ज्यादा आपको (मीडिया को) पता है।’ उधर, एमपीसीए चुनावों में सिंधिया विरोधी खेमे के अगुवा विजयवर्गीय ने अपने गुट की हार स्वीकार करते हुए कहा कि वह ‘क्लीन बोल्ड’ हो गये। लेकिन उन्होंेने इस बात से इंकार किया कि वह इन चुनावों में लगातार दूसरी पराजय से ‘आहत’ हैं।
उन्होंने सिंधिया का नाम लिये बगैर कहा, ‘एमपीसीए पर दो पीढ़ियों की सल्तनत को केवल दो चुनावों में हिलाना मुश्किल है। लेकिन हमने हिम्मत दिखाते हुए इस सल्तनत को लगातार दो बार चुनावी चुनौती दी। नतीजतन उन लोगों को मतदाताओं की सुध लेने के लिये इंदौर के गली-कूचों की खाक छाननी पड़ी, जो कभी हवाई अड्डे से ही शहर को टाटा-बाय कहकर निकल जाते थे।
एमपीसीए चुनावों में अपने गुट की करारी हार की वजहों के बारे में पूछे जाने पर विजयवर्गीय ने कहा, ‘मैं इस बारे में कोई भी टिप्पणी नहीं करूंगा, क्योंकि प्रजातंत्र में न्यायालय पर टिप्पणी करना उचित नहीं हैै। हम एक.दो कारणों से हारे हैं, जिनका सार्वजनिक रूप से जिक्र करना मैं उचित नहीं समझता।’ हालांकि, वह इस बार भी सिंधिया को ‘बड़ा दिल’ रखने की सलाह देने से नहीं चूके।
इंदौर संभागीय क्रिकेट संगठन (आईडीसीए) के अध्यक्ष ने कहा, ‘हमारे साथ मध्यप्रदेश के कुछ ऐसे पूर्व रणजी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने लम्बे समय तक सूबे का नेतृत्व किया था। उनका दोष सिर्फ यही है कि उन्होंने हमारे साथ एमपीसीए का चुनाव लड़ लिया। एमपीसीए में ऐसे पूर्व खिलाड़ियों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये और चुनाव हारने वाले लोगों का भी सम्मान किया जाना चाहिये।’ जब विजयवर्गीय से पूछा गया कि क्या वह वर्ष 2014 में लगातार तीसरी बार एमपीसीए के चुनावों में अपनी किस्मत आजमाना चाहेंगे, तो उन्होंने सीधा जवाब टालते हुए कहा, ‘अगली बार का कार्यक्रम अगली बार ही तय किया जायेगा।’ एमपीसीए के चुनावों में चेयरमैन पद पर एमके भार्गव, उपाध्यक्ष के तीन पदों पर भगवानदास सुथार, भरत छपरवाल व मनोहर शर्मा, सचिव पद पर नरेंद्र मेनन, संयुक्त सचिव के दो पदों पर अल्पेश शाह तथा मिलिंद कनमड़ीकर और कोषाध्यक्ष पद पर प्रवीण कासलीवाल निर्वाचित हुए। ये सभी विजयी उम्मीदवार सिंधिया खेमे से जुड़े हैं। एमपीसीए के सभी निर्वाचित पदाधिकारियों का कार्यकाल दो साल का होगा।
वर्ष 2001 में तत्कालीन एमपीसीए अध्यक्ष माधवराव सिंधिया की एक हवाई दुर्घटना में मौत के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया इस क्रिकेट संगठन से जुड़े थे। ज्योतिरादित्य एमपीसीए के चेयरमैन रह चुके हैं और उनका वर्ष 2006 से इस संगठन का निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाने का सिलसिला शुरू हुआ। लेकिन विजयवर्गीय ने एमपीसीए पर सिंधिया खेमे के दबदबे को वर्ष 2010 में अचानक चुनौती देकर इस सिलसिले को रोक दिया था। इससे ‘भद्र जनों के खेल’ के सांगठनिक चुनावों को राजनीतिक रंग भी मिल गया था। यह रंग एमपीसीए के कल 26 अगस्त को संपन्न चुनावों में भी बरकरार रहा।
एमपीसीए के प्रवक्ता अशोक कुमट के मुताबिक इस क्रिकेट संगठन की औपचारिक स्थापना वर्ष 1956 में हुई, जब एक भारतीय राज्य के रूप में मध्यप्रदेश वजूद में आया था। उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 से पहले एमपीसीए के चुनावी इतिहास में कभी मतदान की नौबत नहीं आयी थी और इसके तमाम पदाधिकारी सर्वसम्मति से ही चुने जाते थे। (एजेंसी)

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