आलोक कुमार राव
दिल्ली में 16 दिसंबर की रात मेडिकल छात्रा के साथ हुई दरिंदगी ने सभी को बेचैन किया। देश के प्रमुख शहरों में बलात्कार के खिलाफ आक्रोश सड़कों पर दिखाई दिया। राजधानी दिल्ली में इसकी धमक सबसे ज्यादा सुनाई पड़ी। सड़क से संसद तक दोषियों को सख्त और शीघ्र सजा देने की मांग जोर पकड़ी। सरकार को भी लगा कि कानूनी स्तर पर इस बार कुछ ठोस करने की जरूरत है और वह कुछ करने की प्रक्रिया में है।
गैंगरेप के खिलाफ सड़कों पर जिस बड़े पैमाने पर आक्रोश दिखाई दिया है, वह अभूतपूर्व है। बिना किसी बैनर तले युवा वर्ग की ओर से बुलंद की गई आवाज सीधे हुक्मरानों तक पहुंची। इस मुहिम की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि यह बिना किसी खास चेहरे के अपना आकार ग्रहण करते गया। इस मुहिम से लोगों, खासकर युवा वर्ग का जुड़ाव स्वत:स्फूर्त था। अच्छे लक्ष्य ‘नोबल कॉज’ के लिए लोगों का एकजुट होना इस बात का प्रमाण है कि संवेदना पर वज्रपात होने की स्थिति में वे उठ खड़े होंगे।
कुछ लोग इस मुहिम पर सवाल खड़े करने के साथ ही इस घटना को वर्गीय रंग दे रहे हैं। उनकी दलील है कि लड़की मध्य वर्ग से थी और घटना दिल्ली में हुई इसलिए उसके लिए न्याय की मांग तेज हुई। देश में हर रोज बलात्कार होते हैं उसके लिए तो एकजुटता नहीं दिखती।
यह सही है कि देश में रोजाना दुष्कर्म की घटना होती है, हर रोज बच्चियां, लड़कियां और महिलाएं बलात्कार की शिकार होती हैं। बलात्कार के बहुत सारे मामले थाने तक नहीं पहुंचते, जो पहुंचते हैं उसे दबाने की कोशिश की जाती है। दोषियों को सजा दिलाने की प्रक्रिया भी बहुत लंबी चलती है। ये सारी स्थितियां बलात्कारियों के पक्ष में जाती हैं और इससे उनका हौसला बढ़ता है।
जरूरत है इस तरह के घृणित कृत्य करने की मंशा रखने वाले लोगों में खौफ पैदा करने की। यह दहशत केवल कानून से पैदा नहीं हो सकती। परिवार, माहौल और समाज यानि हर स्तर से यह संदेश निकलना चाहिए कि बलात्कार और छेड़छाड़ को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही एक सख्त कानून की जरूरत है जो पीड़ितों को समयबद्ध तरीके से त्वरित न्याय सुनिश्चित कराए।
बलात्कारियों को यह स्पष्ट लगना चाहिए कि उन्हें समाज और कानून से कोई छूट नहीं मिलने वाली। दिल्ली गैंगरेप की इस त्रासदपूर्ण घटना के बाद सरकार मौजूदा कानून में जो बदलाव के बारे में सोच रही है, वह अकारण नहीं है। इसके पीछे जनदबाव है, जो इंडिया गेट और रायसीना हिल्स पर दिखाई पड़ा। इसलिए, जरूरत है कि अन्याय के खिलाफ हर स्तर विरोध दर्ज कराया जाए।
मेरे एक मित्र ने सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ‘फेसबुक’ पर किए एक पोस्ट में कहा कि उन्हें इंडिया गेट पर हुए प्रदर्शन में ‘तमाशा’ नजर आया। उनकी इस नजरिए को कई लोगों ने पसंद भी किया। उनका कहना है कि युवा (हुड़दंगी) वोट नहीं देते। उनके प्रदर्शन की हवा दो दिन में निकल गई। मित्र की इच्छा है कि युवाओं को शांतिपूर्वक अनशन करना चाहिए था।
इस पर मुझे कहना है कि मतदान किए तो मुझे भी अरसा बीत गया है, इसका एक कारण मैं अपने मूल निवास से दूर हूं। शहरों में पढ़ाई-लिखाई करने वाले अथवा नौकरी-पेशा युवाओं के सामने भी कुछ इसी तरह की समस्या होगी। मतदान के मौके यदि उनके पास उपलब्ध हों तो वे निश्चित रूप से मतदान करेंगे। जनता मतदान के जरिए सरकारें बदल सकती है लेकिन कानून में बदलाव अथवा जनसारोकार से जुड़े मुद्दों पर त्वरित कार्रवाई के लिए सत्तारूढ़ सरकार पर जनदबाव बनाना जरूरी होता है तभी सरकार जनता की आवाज सुनती है।
बलात्कार की घटना मणिपुर की हो या राजधानी दिल्ली की। समाज और कानून की दृष्टि में सभी बराबर हैं। जनाक्रोश दिल्ली की घटना पर क्यों फूटा, सवाल यह नहीं होना चाहिए, बल्कि लोग एकजुट हुए और त्वरित न्याय की मांग की यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
दिल्ली की घटना पर फूटा जनाक्रोश ज्वालामुखी की तरह है जो लंबे अरसे से सुप्ता अवस्था में था। इतिहास में इस तरह की ढेर सारी घटनाएं हैं जो बताती हैं कि परिवर्तन या जनांदोलन के पीछे वर्षों का अन्याय और अत्याचार रहा है। एक समय आता है जब सहनशीलता का सब्र टूट जाता है और जनाकांक्षाएं अवरोधों को हटाकर अपना रास्ता बना लेती हैं।
गैंगरेप
दिल्ली गैंगरेप: जनाक्रोश में दिखी उम्मीद
दिल्ली में 16 दिसंबर की रात मेडिकल छात्रा के साथ हुई दरिंदगी ने सभी को बेचैन किया। देश के प्रमुख शहरों में बलात्कार के खिलाफ आक्रोश सड़कों पर दिखाई दिया। राजधानी दिल्ली में इसकी धमक सबसे ज्यादा सुनाई पड़ी। सड़क से संसद तक दोषियों को सख्त और शीघ्र सजा देने की मांग जोर पकड़ी।
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