राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन वजाहत हबीबुल्लाह कश्मीर में लंबे समय तक प्रशासनिक पद पर रहे हैं। वह कश्मीर की आंतरिक समस्याओं को सुलझाने में महत्वपूर्ण योगदान देते आए हैं। इस बार `सियासत की बात` कार्यक्रम में ज़ी रीजनल चैनल्स हिंदी के संपादक वासिंद्र मिश्र ने वजाहत हबीबुल्लाह के साथ खास बातचीत की। पेश हैं इसके मुख्य अंश-
वासिंद्र मिश्र: सबसे पहले ते हम ये बात जानना चाहते हैं कि इस समय पाकिस्तान में नई सरकार बनी है, आप कश्मीर से एक लंबे अरसे तक जुड़े रहे हैं। कश्मीर के प्रशासन से, कश्मीर के हालात ठीक करने के लिए अलग-अलग भूमिकाओं में आप रहे हैं। आप किस रूप में देख रहे हैं ये जो मौजूदा हालात हैं पाकिस्तान के, और उसका कितना असर पड़ेगा कश्मीर की समस्या एवं भारत-पाकिस्तान के जो आपसी रिश्तें हैं उसको बेहतर बनाने में।
वजाहत हबीबुल्लाह: ये तो कुछ आशाजनक बात है कि ये जो नई सरकार वहां आई है, वो लोकतंत्र के जरिए ही आई है। ये पहली दफा है कि एक लोकतंत्र से ही ये तबादला हुआ है। कभी इस प्रकार से पाकिस्तान में हुआ ही नहीं है। तो ये अच्छी बात है और उनके पास अब एक संविधान है जो थोड़ा-सा शक्तिशाली है उसमें जो उसमें संशोधन किया है हाल में 18वां शायद संशोधन था, जिसमें उन्होंने जो सिविल अथॉरिटी है उसको ज्यादा शक्तिशाली बनाया है और जो पहले सेना के अंदर इतनी सारी शक्तियां हैं उनमें थोड़ी कमियां लाई हैं। तो ये सारी जो चीजें हैं ये हमें आशा दिलाती हैं कि आगे जाकर लोकतांत्रिक सीमांओं के तहत ही हम कुछ समझौते तक आ सकते हैं और हमारा भारतवर्ष एवं पाकिस्तान के साथ जो संबंध है उसमें कुछ सुधार आ सकता है। सुधार का मतलब ये होगा कि वो शांतिपूर्वक हो और दोनों देशों में शांति के प्रचार का जो प्रयत्न है उसको शक्तिशाली करें।
वासिंद्र मिश्र: भारत और पाकिस्तान के बीच में जो मुख्य मुद्दा हैं वो कश्मीर है और पाकिस्तान लगातार इस बात को कहता रहा है कि अगर दोनों मुल्कों में अमन-चैन कायम करना है तो बॉर्डर पर अमन-चैन कायम करना है तो कश्मीर की समस्या को बिना निपटाए, बिना उसका समाधान खोजे न तो बॉर्डर पर अमन बहाली हो सकती है और न तो दोंनों मुल्कों के रिश्तों में बेहतरी आ सकती है।
वजाहत हबीबुल्लाह: दोनों देश ये कहते हैं कि जहां तक कश्मीर की समस्या है, वह एक समस्या है। पाकिस्तान कहता रहा है पहले कि क्योंकि ये मुसलमान आबादी थी खास तौर से बाजे कश्मीर में इसके होना चाहिए था पाकिस्तान का भाग। भारतवर्ष ये कहता रहा है कि नहीं, भारत वर्ष में सब यहां के नागरिक हैं चाहे वो मुसलमान हों,हिंदू हों, सिख हों या इसाई। तो इसीलिए ये एक वजह नहीं हो सकती है कि देश हमारा बंटवारे के साथ जैसे और देश का बंटवारा हो गया। कश्मीर ने स्वीकार किया था कि वह भारतवर्ष का भाग होना चाहिए था। मेरे विचार में हम दोनों पाकिस्तान और भारतवर्ष मिल कर प्रयत्न करें तो कश्मीर समस्या का समाधान निकल सकता है। लोकतंत्र में कमी-बेशी इसलिए हुई है कि हमारा झगड़ा हुआ है और देश की सुरक्षा की वजह से हमें भी और वहां भी ऐसे कदम उठाने पड़े जिसके नतीजे में जो लोकतांत्रिक आजादी है, आजादी का शब्द मैं इस्तेमाल कर रहा हूं, आजादी है उसमें कमी आनी अनिवार्य हो गई थी। अगर इस बारे में हम दोनों समझौते पर आकर आपस में दखल करने की कोशिश ना करें और इसमें मेरे विचार में आरोप हमारे ऊपर इतना अधिक लग नहीं सकता है किंतु ये एक बहस की बात है जो बहस कर सकते हैं। किंतु मेरा विचार है इसमें आपस में समझौता कर लें कि लोगों को आज लोकतांत्रिक प्रकार से अपनी प्रगति करने का मौका दें तो मेरे विचार में ये मसला, ये समस्या हल हो सकती है।
वासिंद्र मिश्र: मतलब लोकतंत्र से ये है कि जो कश्मीर भारते के हिस्स में है या भारत के पास है, वहां के लोगों को भी एक डेमोक्रेटिक आजादी दी जाय जिससे कि वहां के लोग भी अपनी रायशुमारी कर सकें कि वो क्या चाहते हैं।
वजाहत हबीबुल्लाह: रायशुमारी की बात नहीं है। उनको वो सारे जो लोकतांत्रिक आजादियां हैं जो वाकई हिंदुस्तान में हैं और इसमें हम ज्यादा शक्तिशाली हैं क्योंकि भारतवर्ष में 65 वर्ष से लेकतंत्र है। लोकतंत्र केवल कुछ हिस्सों के लिए नहीं, बल्कि हर हिस्से के लिए, और जैसे मैंने पहले कहा कि पूरी तरह से कश्मीर में वो लोकतंत्र हावी नहीं हो पाया क्योंकि वहां ये झगड़ा चलता रहा और हमारी सुरक्षा के लिए देश की सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो गया कि जो लोकतांत्रिक आजादियां हैं, उनको कुछ सीमित रखने की आवश्यकता रही हैं। अगर संपूर्ण लोकतंत्र हमारे भाग में भी और पाकिस्तान के भाग में तो फिर इस झगड़े की जो नींव है वो ही चली जाएगी।
वासिंद्र मिश्र: वजाहत साहब आपका मतलब ये तो नहीं कि आप मानते हैं कि जो कश्मीर में दहशतगर्दी अभी जो चल रही है वो कहीं न कहीं पाकिस्तान स्पॉंसर्ड है जिसकी वजह से वहां के जो सिविल राइट्स हैं वो प्रभावित हैं।
वजाहत हबीबुल्लाह: इसमें मुझे क्या कहने की आवश्यकता है, ये तो स्पष्ट है। हां, वहां झगड़े हुए हैं लेकिन वो हम हल कर सकते थे। संवैधानिक प्रकार से, लोकतांत्रिक प्रकार से, अगर उनका साथ वहां की ISI और वहां की सेना ने इस प्रकार का नहीं किया होता कि वो हम ये रास्ता अपना ही नहीं सकते थे, लेकिन अब हम अपना सकते हैं, अब ये मौका मुमकिन हो गया है।
वासिंद्र मिश्र: आपको लग रहा है कि नवाज़ शरीफ को इतना मेंडेट रहेगा, इतनी आजादी रहेगी कि वो ISI को दरकिनार करके दोनों मुल्कों के बीच एक अमन की बातचीत शुरू कर सकें।
वजाहत हबीबुल्लाह: ISI को दरकिनार करने की बात नहीं है। ISI का किस प्रकार से वहां कि सरकार प्रयोग करती है उस पर निर्भर है ये बात, उसे दरकिनार करें या ना करें, क्या करना चाहते हैं। उसको एक ऐसा विभाग बना दें कि वो शांति का रास्ता अपना ले, वो तो एक विभाग है, ISI तो एक विभाग है पाकिस्तान सरकार का। हमारे पास भी इंटेलिजेंस ऐजेंसियां हैं, क्या वो सरकार में इस तरह से दखल देते हैं-नहीं, उतना ही दखल देते हैं जितना सरकार चाहती है और अब सिविल अथॉरिटी का वहां दोबारा स्थापित होने के नतीजे में हम ये उम्मीद कर सकते हैं। हो सकता है कि ऐसा ना हो किंतु आशा तो हम कर सकते हैं और सिविल अथॉरिटी में हम आशा रख सकते हैं। नवाज शरीफ साहब ने स्वयं कहा कि उन्होंने प्रायोरिटी दी है इस चीज को कि भारत वर्ष के साथ उनके जो संबंध हैं उनको मजबूत करना है।
वासिंद्र मिश्र: केंद्रीय गृह मंत्री शिंदे साहब का एक बयान आया कि जो प्रॉब्लम चल रही है उसमें कहीं ना कहं ISI का हाथ है, तो तुरंत वहां से खंडन आ गया और वहां कि सरकार ने बकायदा अधिकृत बयान जारी करके कहा कि ऐसा नहीं है और ISI भारत के अंदरुनी मामलों में दखलअंदाजी नहीं कर रही है।
वजाहत हबीबुल्लाह: अगर ऐसी बात है तो बहुत अच्छी बात है, इसमें क्या झगड़ा है लेकिन अगर हमारे पास ऐसी कोई बात है, आपस में बातचीत करने के संबंध में। हम उनको कहेंगे कि ये हमारे पास सबूत हैं और ISI ने ये किया है, आप कहेंगे नहीं ISI का काम नहीं है, किसी और का काम है जिसने ये किया है उसको हम जवाबदेह बनाएंगे और आपने जो सबूत दिया है उस पर हम कार्रवाई करेंगे। बार-बार हमने कई विषयों पर पाकिस्तान को सबूत दिया है लेकिन उन्होंने उस पर कार्रवाई नहीं की, उन्होंने उसको रद्द कर दिया, ये ना हो। अब हमें उम्मीद हो सकती हैं क्योंकि अब हमें आशा है कि जो सिविल अथॉरिटी हैं अब वो सर्वोच्च हो गई है। हो सकता है ऐसा नहीं हो लेकिन हम आशा तो रखते हैं।
वासिंद्र मिश्र: वजाहत साहब कश्मीर के जो अंदरुनी हालात हैं उसमें ISI का रोल है, पाकिस्तानी हुकूमत का रोल है लेकिन जो काम हमारी सरकार को करना चाहिए, हम सबको करना चाहिए वहां अमन चैन कायम करने के लिए उस फ्रंट पर भी, उस संजीदगी से उस ईमानदारी से काम होता दिखाई नहीं दे रहा है। शायद यही कारण है कि वहां के जो मुख्यमंत्री हैं उमर अबदुल्ला साबह, वो भी बार-बार कहते हैं कि जो सुरक्षा बल हैं, जो अफस्पा है, उसे हटाया जाना चाहिए, आपकी क्या राय है।
वजाहत हबीबुल्लाह: जैसे मैंने आपसे अर्ज किया कि लोकतंत्र वास्तविक रूप में उसकी कुछ झलकियां कश्मीर में आपको नजर आ जाएंगी, अब काफी समय के बाद आप देखते हैं कि चुनाव होते हैं। चुनाव हुए हैं वहां कि असेंबली के लिए। चुनाव हुए हैं वहां कि म्यूनिसिपालिटी के लिए। चुनाव हुए हैं वहां कि पंचायतों के लिए, आपने स्वयं देखा कि लोगों में ये इच्छा है कि ये जो सारे इंस्टि्टयूशन हैं ये काम करें। इसीलिए वो आते हैं बड़ी तादाद में वोट डालने के लिए लेकिन बार-बार उनको निराश होना पड़ता है कि जैसे हमने उम्मीद किया। और आपको पता है कि जो पंचायत है वो इस प्रकार से तो काम कर नहीं रही है और ना ही उनके पास कोई शक्ति है, ना ही वो सेल्फ गवर्मेंट बनी है, जैसा कि उम्मीद की गई थी। गांव में एक सेल्फ गवर्नेंस हो जाए, वो नहीं बना। तो यह चीज लोगों को निराश करती है और ये काफी खतरनाक बात है क्योंकि अगर लोगों को लकतंत्र में ही आशा ना रहे तो फिर ये एक बात है कि फिर उनको देश में ही आशा नहीं रहेगी। देश की सबसे बड़ी शक्ति है हमारे देश की कि हम लोकतंत्र हैं और लोकतंत्र की ये खूबियां बाकी हम सबने चखी हैं, देखी हैं और कश्मीरियों ने सिर्फ झलकियां देखी हैं।
वासिंद्र मिश्र: बस उसी प्वाइंट पर हम आना चाह रहे हैं कि आपने लोकल सेल्फ गवर्मेंट की बात कही, आपने कोई किताब भी लिखी है। इस तरह की चीजों पर, आप जब वहां की समस्या से रू-ब-रू हो रहे थे तब भी आपने कोशिश की थी। वहां पर एक चुनी हुई सरकार है, तो वहां के मुख्यमंत्री को क्या मजबूरी है, क्या दिक्कत हो रही है कि POWER TO THE PEOPLE TRANSFOR करने में, या पंचायतों को अधिकार देने में, रेवेल्यूशन आफ पावर क्यों नहीं हो पा रहा है, इसमें केंद्र सरकार कहां आड़े आ रही है।
वजाहत हबीबुल्लाह: जैसे उन्होंने खुद कहा कि वहां अगर सेना कि भारी आवश्यकता है, अगर पुलिस की भारी आवश्कता है तो लोकतंत्र नहीं आ पाएगा और वो क्यों अनिवार्य है, मैंने आपको बताया, अनिवार्य इसलिए था कि उसमें दखल थी, उसमें आक्रमण था, सुरक्षा पूरे देश की सर्वोच्च है। उसको रखना है, अगर आप उसको रखेंगे तो पूरी तरह से वास्तविक रूप से आप नहीं दे पाएंगे, काफी रूप से प्रगति हुई है जैसे पिकेट वगैरह हटाई गई हैं। लेकिन जिस प्रकार से पूर्णतया शांति आने की आवश्यकता थी वो नहीं आई और ये सारी चीजे हैं, अच्छा और अफस्पा को हटाने के लिए वहां के मुख्यमंत्री कह रहे हैं फिर भी नहीं हट रहा है और उसकी वजहें भी हैं क्योंकि मेरे विचार में मैंने लिखा भी है इस बारे में क्योंकि अगर आप अफस्पा को हटाना चाहते हैं तो फिर आप जिस प्रकार से सेना का प्रयोग कर रहे हैं उसका प्रयोग कर नहीं सकते लेकिन उसका प्रयोग किस लिए अनिवार्य है क्योंकि देश की सुरक्षा, अगर आप इस प्रकार के लिए संतुष्ट हो जाएं कि देश को आक्रमण का भय अब नहीं रहा है तो वो कब आएगा। पाकिस्तान से बात करने के बाद आप समझ सकते हैं।
वासिंद्र मिश्र: ये सारे मामले इंटरलिंक्ड हैं और अल्टिमेट रिस्पॉन्सिबलिटी पाकिस्तान की है।
वजाहत हबीबुल्लाह: इसीलिए, मैंने कहा कि इलेक्टेड गवर्मेंट एक झलकी है, फिर जो प्रशासन है क्या वह पूरी तरह से लोकतांत्रिक है। क्योंकि लोकतंत्र का मतलब ये नहीं की आप इलेक्शन में भाग ले लिया तो लोकतंत्र हो गया। आखिर सद्दाम हुसैन के जमाने में भी 90 फीसदी लोग भाग लेते थे इलेक्शन में। तो क्या वो लोकतंत्र था, नहीं था।
वासिंद्र मिश्र: तो ज़हनी तौर पर डेमोक्रेटिक होना चाहिए।
वजाहत हबीबुल्लाह: लोकतांत्रिक प्रकार से प्रशासन को चलाने की आवश्यक्ता है और इसके लिए सारे पुर्जे हमारे पास हैं। आरटीआई है, पंचायती राज है सब कुछ है। किंतु ये चल नहीं रहे हैं जैसे चलने चाहिए।
वासिंद्र मिश्र: आपको लगता है कि उमर साहब की जो सरकार है, लोकतांत्रिक तरीके से काम नहीं कर रही है।
वजाहत हबीबुल्लाह: नहीं, वहां कोई सरकार अभी कर नहीं पा रही है, वहां लोग मांग भी रहे हैं कि वो लोकतांत्रिक तरीके से किस प्रकार चला सकते हैं, वही तो उनकी मांग है किंतु वो पूरी नहीं हो पा रही हैं। ये वजहें हैं।
वासिंद्र मिश्र: अच्छा, वहां जो एक डेलिगेशन भारत सरकार ने बनाया है। एक ग्रुप कमेटी है जो कि वार्ता करती है, जो कश्मीर में सेप्रेटिस्ट फोर्सेज हैं, उनसे बाकि अलग-अलग संस्थाओं से उनका क्या रोल है। उनसे काफी करीबी से जुड़े हुए हैं।
वजाहत हबीबुल्लाह: वो जो बनाया गया था। वो तो हो गया है। वार्ताकार जिनको कहा जाता था। वो सेपरेटिस्ट से बात कर ही नहीं पाए और अगर एक दो से उन्होंने किया भी, एक वहां मौलाना शौकत वो जो अहले हदीस के हेड थे और वो कोशिश कर रहे थे कि अहले हदीस और धर्म को, जो राजनैतिक मार्ग है उससे हटा के केवल धार्मिक मार्ग पर ले आएं। उनसे उन्होंने बात कि फिर हमें पता चला कि उनका तो देहांत ही हो गया, उन पर आक्रमण हो गया, उनको फिर मार ही डाला। तो इस प्रकार की चीजें हुई हैं तो वो उन्होंने इनसे बात की नहीं, बातचीत वैसे करने की जरूरत मेरे हिसाब में। वो संसद ने मांगा था मैं ये नहीं कहना चाहता कि गलत है। इस वातावरण में वो बात आवश्यक थी। किंतु मैं जिस बात की बात कर रहा हूं कि जो आशा है मुझे उसमें बातचीत करने की क्या आवश्कता होगी। वहां के लोग अपनी ही सरकार को चुनाव में लाएंगे वो लोगों की सरकार होगी उसमें पंचायत भी होगी, जब वो हटाना चाहेंगे उस सरकार को हटाएंगे, जो काम वो करवाना चाहते हैं वो करवाएंगे। ये और राज्यों में है इस वक्त लेकिन उधर नहीं है, वो है वास्तविक लोकतंत्र।
वासिंद्र मिश्र: वजाहत साहब, आप मॉइनॉरिटी कमीशन के चेयरमैन हैं, अगर हम बात करें देश के अन्य राज्यों में जो अल्पसंख्यक समाज रहता है और कश्मीर का अल्पसंख्यक समाज जो उनका जो सोशियोइकोनॉमिक जो स्थिति है उसमें कितनी आप समानता और विषमता पाते हैं।
वजाहत हबीबुल्लाह: कश्मीर की समस्या के बारे में जो चर्चा कर रहे हैं कि वहां जो आप जानते हैं, वहां अक्सरियत तो है मुसलमानों की और बाकि देश में मुस्लमान अल्पसंख्यक हैं। और वहां सबसे जो इस पिछले 20 साल में सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी अल्पसंख्यक का हुआ वो जाहिर है कि कश्मीरी पंडित हैं। जिनको वहां से छोड़ के निकलना पड़ा, वादी से खास तौर से। राज्य में तो कश्मीरी पंडित काफी हैं किंतु ज्यादातर वो जम्मू में बसते हैं, वो जाना चाहते हैं वहां से, खास तौर पर जो बुजुर्ग हैं। नौजवान तो अब चाहते हैं कि जहां भी उनका जीवन बने वो वहां जाएं और बनाएं। जैसे भारत वर्ष में हर जगह ऐसी सोच है लेकिन जो बुजुर्ग हैं जिन्होंने जिंदगी वहां गुजारी है वो चाहते हैं कि वो वापस जाके शांतिपूर्वक रह सकें। मैं ये कह सकता हूं कि जो कश्मीरी पंडित वहां हैं अभी कुछ 3 हजार से भी कम आबादी। करीब 700 परिवार जो अभी कश्मीर में हैं वो एक शांतिपूर्ण जीवन अवश्य गुजार रहे हैं। अब उनको कोई ऐसा खतरा नहीं है जो एक जमाने में था किंतु अभी जो लोग बाहर हैं उनको काफी शक है। वो अभी तक काफी भयभीत हैं उनको वो तसल्ली नहीं मिली है, वो इतने संतुष्ट नहीं है कि सोच सकते हैं कि हम वापस जा सकते हैं। तो ये सारे काम करने के लिए एक अल्पसंख्यक आयोग बहुत आवश्यक है। अल्पसंख्यक आयोग हमने दो सुझाव दिए हैं, कश्मीर में बनाए जाने चाहिए-एक तो केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग है, वहां भी इसको बढ़ाया जाय और वो एक अल्पसंख्यक आयोग अपना बनाए ताकि वहां के जो अल्पसंख्यक हैं वहां के कश्मीरी पंडित हैं, सिख हैं काफी आबादी हैं सिखों की, बौद्ध हैं लेह में काफी आबादी है बौद्ध की। तो उनको अल्पसंख्यक करार देते हुए उनकी सेवा वो कर सकती हैं जो राज्य के अल्पसंख्यक आयोग है और राष्ट्र के। और हम जानते है कि वहां के मुख्यमंत्री ने बार-बार ये कहा है कि जो वहां के बच्चे आते हैं मुसलमान बच्चे बाकी हिंदुस्तान में उनको अक्सर पकड़ लिया जाता है कि आतंकवादी हैं, उनको घर नहीं मिलता है, एडमिशन नहीं मिलते हैं कॉलेज वगैरह में तो ये काम करने के लिए इसमें सुविधा लाने के लिए केंद्रीय अल्पसंख्यक आयोग काफी मददगार हो सकता है।
वासिंद्र मिश्र: वजाहत साहब अभी एक निर्णय आया है और उस निर्णय को लेके सभी राजनैतिक दलों में हड़कंप है।
वजाहत हबीबुल्लाह: मेरे विचार में इसमें गलतफहमी है इसके नतीजे में घबराहट हो रही है। हम जानते हैं कि जब ये अधिनियम पहले लागू हुआ था और जब ये स्थापित हो गया था कि ये राष्ट्रपति पर भी लागू हो जाएगा, सेना पर भी लागू हो जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय पर भी लागू हो जाएगा। इन सब में पहले ये कोशिश हुई कि ये लागू ना हो हम सब इससे बाहर ही रहें। किंतु जब ये लागू हो गया तो किसी को शिकायत नहीं, अच्छी तरह से चल रहा है। मैं तो इस हद तक जाऊंगा की जो भारत की सेना है हालांकि उनका बड़ा डेलिगेशन मुझसे मिलने आया जनरल और वरिष्ठ अधिकारी जिसमें सुरक्षा मंत्रालय के थे मेरे पास आए। बड़ी भारी मीटिंग हुई, उन्होंने अपना शक जाहिर किया, किंतु सेना में ही अब भारत वर्ष में सूचना देने का जो मैकेनिज्म है अच्छा बना लिया है। अब क्योंकि उनमें डिसिप्लिन है तो बहुत ही अच्छा क्योंकि सिस्टम है। सूचना का मतलब है केवल वो जो कागजात वगैरह हैं। जो आपके मन में बात है, मैं आपको क्यों पसंद करता हूं। क्यों आपको पसंद नहीं करता हूं, मेरे विचार में क्या, मेरे मन में क्या था जब मैंने कहा कि आपको टिकट दूंगा इनको नहीं दूंगा। ये सूचना है ही नहीं इसमें तो देने की आवश्कता ही नहीं है, क्योंकि कुछ लोगों ने कहा कि इसमें ये स्पष्टीकरण करेंगे कि क्यों हमने इसको वोट दिया, ये तो मन में बातें होती हैं। आपस में बातचीत, वो तो रिकार्ड में बात है ही नहीं, ये जो अधिनियम है, यह संपूर्ण अधिनियम है, यह सारे समाज पर हावी हुआ है। यह केवल सरकार पर हावी नहीं है।
वासिंद्र मिश्र: राजनीतिक दल ज्यादा परेशान हैं।
वजाहत हबीबुल्लाह: राजनीतिक दल परेशान हैं, इसी बात से कि जैसे सर्वोच्च न्यायालय परेशान था। सेना परेशान थी, राष्ट्रपति कार्यालय परेशान था, अब तो कोई परेशान नहीं क्योंकि इसमें केवल वो चीजें देनी हैं, मैंने आपको बताया कि क्या है रिकॉर्ड। रिकार्ड का भी विश्लेषण किया गया है इस अधिनियम में धारा-2I में। इसमें एक आलोचना ये हुई थी की ये रखते ही नहीं है, इनको जो डोनेशन वगैरह मिलते हैं, रिकॉर्ड ही नहीं रखते हैं। उसको रखना या नहीं रखना आरटीआई का काम नहीं है, वो तो रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट है, इलेक्शन कमीशन आदेश दे सकता है कि ऐसे रिकार्ड आप रखिए। आरटीआई ऐसा आदेश नहीं दे सकता, जो आपके पास है उसी को देने के लिए और पहले से ही। केंद्रीय सूचना आयोग के निर्णय से 2008 में ये निर्णय हुआ था कि जितने भी आपके फाइनेंसेंज हैं, वो जो आपको रिकॉर्ड करने पड़ते हैं इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में, वो ही सार्वजनिक हो जाएंगे। और सार्वजनिक तबसे हैं, कोई बड़ा गदर हो गया, कोई बड़ी क्रांति आ गई, कोई बड़ा इंकलाब आ गया, नहीं उसमें कोई घबराने वाली बात नहीं है। दूसरा प्रॉपर्टी स्टेटमेंट्स जो आपके हैं जो चुनाव आयोग के सामने जाते हैं, पब्लिक डॉक्यूमेंट सार्वजिनक डाक्यूमेंट्स हैं। ये कोई भी प्राप्त कर सकता है जब भी चुनावों का ऐलान होता है, आप देखते ही हैं हर एक अखबार में निकल जाता है कि फलाने के पास इतनी प्रॉपर्टी है, फलाने के पास इतना प्रॉपर्टी है। ये पहले निकलता नहीं था और किसी को इस बात से घबराहट भी नहीं होती है, किसका क्रिमिनल रिकॉर्ड है, वो भी सारा निकल आता है तो अब केवल इस निर्णय से क्या हुआ है। इस निर्णय से केवल ये हुआ है नाक ऐसे पकड़ने की बजाय आप ऐसा पकड़ रहे हैं कि आप वही सूचना जिनका रिकॉर्ड है आप सीधा पब्लिक का आदमी है जो सूचना मांगता है उसे सीधा आप दे देंगे इसमें कोन सी घबराने वाली बात है।
वासिंद्र मिश्र: लेकिन एक मजेदार बात आपने नोटिस की कि पहली बार एक तरह से दलीय सीमा को तोड़ के एक्रास द पार्टी लाइन सबने इस फैसले का विरोध किया।
वजाहत हबीबुल्लाह: मेरे विचार में क्योंकि उनकी समझ में ये पूरी बात आई नहीं है, आम तौर पर यह वाद-विवाद सेक्शन 2 H की वजह से है जिसके तहत ये आदेश दिया गया है। इसमें ये कहते हैं कि हम पब्लिक अथॉरिटी हैं ही नहीं, अच्छा पॉलिटिकल पार्टिज जैसे आपको पता है। चुनाव आयोग इनको नोटिफाई करती है, चुनाव आयोग जब तक इनको नोटिफाई ना करे तब तक इन्हें मान्यता नहीं मिलती है।
वासिंद्र मिश्र: सिंबल नहीं मिलेगा।
वजाहत हबीबुल्लाह: तो चुनाव आयोग कैसे बनाया गया है, संविधान के तहत तो ये बात मेरे विचार में बहस की बात नहीं है और इसमें स्वीकार करना चाहिए हर एक को ना केवल पॉलिटिकल पार्टिज क्योंकि ये जो इसका फैलाव है और भी बढ़ेगा। और भी ऐसे बहुत सारे विभाग हैं, कंपनीज हैं या फर्म हैं पाएंगे कि उनको भी इसके तहत लाया जा रहा है।
वासिंद्र मिश्र: तो उम्मीद की जाय की आने वाले समय में कॉरपोरेट घराने भी इसकी परिधि में आ जाएंगे।
वजाहत हबीबुल्लाह: काफी तो आ भी गए हैं, जैसे मैंने कहा कि बैंगलोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट जो है वो तो कॉरपोरेट घराना है, और भी हैं जो इसके तहत आए हैं और आने भी चाहिए क्योंकि पारदर्शिता और जवाबदेही ये दो बुनियादी बाते हैं, चुनाव नहीं। ये दो बुनियाद हैं लोकतंत्र की। लोकतंत्र के विषय पर हम शुरू से बात करते आए हैं। लोकतंत्र की दो बुनियाद हैं जवाबदेही और पार्दर्शिता, दोनों कश्मीर की सरकार में अभी नहीं आए हैं, बाकी भारत वर्ष में काफी हद तक आए हैं और ये जब आ जाएंगे सारे समाज में तब जाकर हम कह सकते हैं कि हम संपूर्णतया लोकतंत्र हैं, वरना जब तक वो नहीं होता है- ‘वी आर ओनली ए पार्सियल डेमोक्रेसी’-हां पार्सियल डेमोक्रेसी है, एक रेवेल्यूशनरी प्रोसेस है ये, कोई लोकतंत्र ऐसा नहीं है संसार में भी अमरिका में भी जो अपने को परफेक्ट कह सकता है।
वासिंद्र मिश्र: वजाहत साहब, विभिन्न मसलों पर अपनी बात साफगोई से रखने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।