बच्चों के अधिकार, देने को सब तैयार

बच्चों के अधिकारों की बात तो आज सभी करते हैं।लेकिन ये अधिकार कौन कौन से हैं इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।आइए देखें बच्चों के वो कौन कौन से अधिकार हैं जिन्हें देकर हम बच्चों का जीवन संवार सकते हैं।

 

डा. हेमंत कुमार

 

बच्चों के अधिकारों की बात तो आज सभी करते हैं।लेकिन ये अधिकार कौन कौन से हैं इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।आइए देखें बच्चों के वो कौन कौन से अधिकार हैं जिन्हें देकर हम बच्चों का जीवन संवार सकते हैं। बच्चों के अधिकारों से संबंधित घोषणा पत्र अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के कानून में सबसे अधिक स्पष्ट व वृहद हैं। इसके 54 अनुच्छेदों में बच्चों को पहली बार आर्थिक,सामाजिक एवम राजनीतिक अधिकार एक साथ दिए गए हैं।

 

यह घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1989 में स्वीकृत होकर नौ माह के भीतर ही लागू हो गया। इतनी शीघ्रता से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वीकार होने वाला यह पहला घोषणा पत्र था। घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 20 नवंबर 1989 को स्वीकार किया गया और 26 जनवरी 1990 को अन्य देशों द्वारा हस्ताक्षर एवं निश्चय के लिए प्रस्तुत किया गया। यह 2सितंबर 1990 से लागू कर दिया गया।18 मई 1990 तक कुल 159 देशों ने या तो घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया या उसके समर्थक राज्य बन गए।

 

भारत ने भी इस घोषणा का 11 दिसंबर 1992 को समर्थन कर दिया था। इन 54 अनुच्छेदों में बच्चों को 41 विशिष्ट अधिकार दिये गये हैं। बच्चे की परिभाषा, कोई भेदभाव नहीं, बाल हितों की रक्षा, अधिकारों को लागू करना, मां बाप की जिम्मेदारियों का मार्गदर्शन, जिंदा रहना व विकसित होना, नाम और राष्ट्रीयता,पहचान का संरक्षण, मां बाप के साथ रहना, पारिवारिक एकता, अपहरण से बचाव, बच्चों के विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, वैचारिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता, मिलने जुलने की स्वतंत्रता, गोपनीयता की रक्षा, सूचनाओं के उचित साधन, मां बाप की जिम्मेदारी, लापरवाही व दुर्व्यवहार से रक्षा, अनाथ बच्चों की रक्षा,बच्चों का गोद लेना, शरणार्थी बच्चों की देखभाल, विकलांग बच्चों के लिए उचित व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवायें, स्थानान्तरित बच्चों की नियमित देखभाल, सामाजिक सुरक्षा, अच्छा जीवन स्तर, शिक्षा की व्यवस्था, शिक्षा सम्पूर्ण विकास के लिये, अल्पसंख्यक आदिवासी बच्चों की संस्कृति, क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक गतिविधियां, बाल श्रमिकों की सुरक्षा, नशीले पदार्थों से बचाव, यौन शोषण से बचाव, बेचने भगाये जाने पर रोक, अन्य शोषणों से बचाव, यातना व दासता पर रोक, सेना में भर्ती पर रोक, पुनर्वास व देखरेख और किशोर न्याय का प्रबंध उच्चतर स्तर लागू।


इन 41 बाल अधिकारों में से 16 अधिकार भारतीय बच्चों के संदर्भ में ज्यादा जरूरी हैं। इन्हें हर भारतीय को जानना भी चाहिये। इसीलिए मैं उन्हीं 16 अधिकारों के बारे में विस्तार से लिख रहा हूं। जिंदा रहना एवम विकसित होना : हर बच्चे को जिन्दा रहने का मौलिक अधिकार है। इसकी पूरी जिम्मेदारी राज्य पर है।हर राज्य इस के लिये नैतिक रूप से बंधा है।राज्य को हर बच्चे के जीवन और विकास को निश्चित करना चाहिए।

 

-कोई भेद भाव नहीं : बिना भेदभाव के हर अधिकार हर बच्चे के लिए लागू होंगे।यह हर राज्य की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाये।उनके अधिकारों को बढ़ाने के लिए उचित कदम उठाए।

-मां बाप की जिम्मेदारी : बच्चों को आगे बढ़ाने की पहली जिम्मेदारी मां बाप दोनों पर है।राज्य इस काम में उन्हें सहारा देगा।राज्य मां बाप या अभिभावक को बच्चों के विकास के लिये उचित सहायता देगा।

-स्वास्थ्य सेवायें: बच्चे को उच्चतम स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधायें पाने का अधिकार है।हर राज्य बच्चों को प्रारंभिक स्वास्थ्य की रक्षा,और शिशुओं की मृत्यु दर कम करने पर विशेष बल देगा।

-अच्छा जीवन स्तर : हर बच्चे को अच्छा जीवन स्तर पाने का अधिकार है।जिसमें उसका पर्याप्त मानसिक,शारीरिक,बौद्धिक,नैतिक और सामाजिक विकास हो सके। उसे पर्याप्त रोटी कपड़ा और मकान मिल सके।

-विकलांग बच्चों के लिए उचित व्यवस्था : हर अक्षम बच्चे को विशेष देखभाल,शिक्षा, प्रशिक्षण पाने का अधिकार है।जिससे वह सक्षम हो कर अपने समाज का हिस्सा बन जाए।

-नशीले पदार्थों से बचाव : हर बच्चे को नशीली दवाओं,मादक पदार्थों के उपयोग से बचाए जाने का अधिकार है।राज्य बच्चे को इन दवाओं,नशीले पदार्थों के बनाने बेचने से बचायेगा।

-शिक्षा की व्यवस्था : हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है।हर राज्य का यह कर्तव्य है कि वह हर बच्चे के लिये प्राथमिक स्तर की शिक्षा निःशुल्क एवम अनिवार्य करे।बच्चों को माध्यमिक स्कूलों में प्रवेश दिलवाए।यथा संभव हर बच्चे को उच्च शिक्षा दिलवाए।विद्यालयों में अनुशासन बच्चों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाला न हो।शिक्षा बच्चों को ऐसे जीवन के लिये तैयार करे जो उसमें समझ,शान्ति एवं सहनशीलता विकसित करे।

-क्रीड़ा एवं सांस्कृतिक गतिविधियां : बच्चे के सम्पूर्ण विकास में खेलकूद,मनोरंजन, सांस्कृतिक गतिविधियों,विज्ञान का बड़ा हाथ होता है।इसलिये हर बच्चे को छुट्टी, खेलकूद तथा कलात्मक,सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त है। बच्चे को ऐसा माहौल प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है।

-दुर्व्यवहार से रक्षा : बच्चे को उपेक्षा,गाली,दुर्व्यवहार से बचाये जाने का अधिकार है। राज्य का यह कर्तव्य है वह बच्चों को हर तरह के दुर्व्यवहार से बचाये।पीड़ित बच्चों के सुधार,उचित उपचार के लिये उचित सामाजिक कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए।

-अनाथ बच्चों की रक्षा : समाज के अनाथ बच्चों को सुरक्षा पाने का अधिकार है।राज्य का कर्तव्य है कि अनाथ बच्चों के संरक्षण,उनको पारिवारिक माहौल देने वाली संस्थाओं या सही परिवार द्वारा गोद लेने की व्यवस्था करे।

-बाल श्रमिकों की सुरक्षा : बच्चों को ऐसे कामों से बचाये जाने का अधिकार है जो उसके स्वास्थ्य,शिक्षा,विकास को हानि पहुंचायें।राज्य को बाल मजदूरी और नौकरी की न्यूनतम उम्र तय करने के साथ काम करने का माहौल सुधारना चाहिये।

-बेचने,भगाने पर रोक : किसी बच्चे को बेचना,बहला फ़ुसलाकर अपहरण करना,या जबरन काम करवाना कानूनी अपराध है।राज्य की नैतिक  जिम्मेदारी है कि वह बच्चे को इनसे बचाये।

-यौन शोषण से बचाव : हर राज्य की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को यौन अत्याचारों,वेश्यावृत्ति या अश्लील चित्रों के व्यवसाय से बचाये।

-यातना ,दासता पर रोक : बच्चे को कठोर दण्ड,यातना,गैर कानूनी कैद नहीं दी जा सकती। 18 साल से कम बच्चे को आर्थिक दण्ड,उम्रकैद जैसी सजा नहीं दी जा सकती।बाल कैदियों के साथ क्रूरता,कठोरता का व्यवहार नहीं होना चाहिये।

-किशोर न्याय का प्रबंध : अपराध करने वाले बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार होना चाहिये जिससे उनके आत्मसम्मान,योग्यता,विकास को बल मिले।जो उन्हें समाज के साथ फ़िर से जोड़े। जहां तक संभव हो ऐसे बच्चों को कानूनी कार्यवाहियों या संस्थागत परिवर्तनों से बचाना चाहिये।

बच्चों को दोगे अधिकार, तब पाओगे उनसे प्यार।

(लेखक वतर्मान में शैक्षिक दूरदर्शन केंद्र,लखनऊ में लेक्चरर प्रोडक्शन पद पर कार्यरत हैं)

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