सबसे अंत में जलता है रोहिड़ा का रावण

किन राजस्थान के माउंटआबू से 50 किलोमीटर दूर रोहिड़ा देश का इकलौता ऐसा स्थान है जहां रावण रात के 12 बजे तक जलता है।

संजीव कुमार दुबे

दशहरा यानि विजयादशमी के दिन पूरे देश में रावण का पुतला जलाया जाता है। इसी परंपरा के साथ दशहरा का समापन होता है। आमतौर पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण का ये पुतले सूर्यास्त के बाद ही जलाए जाते हैं। लेकिन राजस्थान के माउंटआबू से 50 किलोमीटर दूर रोहिड़ा देश का इकलौता ऐसा स्थान है जहां रावण रात के 12 बजे तक जलता है।
इसके पीछे यहां के लोगों की सदियों पुरानी धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है। लेकिन इस परंपरा से पुलिस को भारी मुसीबत होती है। जबतक ये पुतला दहन नहीं होता पुलिस की नींद उड़ी रहती है क्योंकि देश के इस जगह का रावण सबसे अंतिम में जलाया जाता है। दशहरा के दिन रावण दहन का कार्यक्रम पुलिस के लिए बड़ी चुनौती होती है लेकिन उनकी चुनौती इस दिन रात 12 बजे के बाद खत्म होती है।
रोहिड़ा की आबादी 25 हजार की है जिसमें 10 हजार से ज्यादा ब्राह्मण लोग रहते हैं। ऐसा क्यों होता है आईए अब इसको जानने की कोशिश करते हैं। दरअसल रावण को अहंकार का प्रतीक माना जाता है। रावण ब्राह्मण था और प्रकांड विद्वान भी। वह सभी वेदों का भी जानकार था। उसने तपस्या के बल पर कई देवी-देवताओं को वश में कर रखा था।
अहंकार रुपी रावण का ही नाश करने के लिए त्रेतायुग में भगवान राम अवतरित हुए। दशहरा सत्य की असत्य पर, अच्छाई की बुराई पर और प्रकाश की अंधकार पर विजय है। रावण जो अहंकार का प्रतीक है उसका दहन यहां रात के 12 बजे किया जाता है। रात 12 बजे इसलिए क्योंकि ये वक्त महाकाल का होता है और ऐसा माना जाता है कि इस वक्त रावण का दहन होने से रावण यानि अंधकार हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। तब से यहां रावण को रात बारह बजे के बाद दहन करने की सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है।

रावण दहन के इस प्रक्रिया की शुरुआत होती है गोधूलि बेला से। यह पूजा डेढ़ घंटे तक चलती है। पूजा शुरू होती है खेचड़े के पेड़ के नीचे। गांव के लोग वाराही माता और लक्ष्मीनारायण की पूजा करते हैं। चारों दिशाओं का पूजन कर ये प्रार्थना की जाती है कि हर दिशा का अहंकार दूर हो और सब जगह प्रकाश फैले। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक दस दिशाएं होती है और सभी दिशाओं की पूजा की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि जिस वक्त भगवान राम रावण का संहार करते हैं। उसी वक्त रावण यानि महाकाल के समय पर खुद महाकाली भगवान राम को आशीर्वाद दे रही होती है । उनके साथ सफेद गण, काले गण और लाल गण मौजूद होते है। महाकाल के समय ही ऐसा माना जाता है कि रात के ठीक 12 बजे भगवान राम अंहाकारी रावण का संहार करते है, अहंकार हार जाता है, प्रकाश यानि सत्य की विजय होती है। अहंकार रुपी रावण का वध होता है और उस वक्त महाकाल और महाकाली के लिए प्रसन्नता का कारण होता है। महाकाल रुप में मां काली राम को शक्ति देती है जिसके बाद रावण का संहार होता है।

रावण दहन से पहले यहां भव्य शोभा यात्रा निकाली जाता है। शोभा यात्रा में भगवान राम की सेना, महाराणा प्रताप की सेना और छत्रपति शिवाजी की भी सेना होती है। छत्रपति शिवाजी घोड़े पर सवार होते है। धर्म ध्वजा हर घोड़े पर देखने को मिलते है। इस शोभायात्रा में 1000 से ज्यादा ट्रैक्टर और बैलगाड़ियां होती है। शोभायात्रा में भव्य झांकियां की प्रस्तुति देखते ही बनती है। राम रामेश्वरी मंदिर से ये शोभायात्रा गाजे बाजे के साथ निकलती है और बड़ी ब्रह्मपुरी पहुंचती है। और यही रावण का दहन होता है। इस दौरान युवक-युवतियां नाचते गाते रहते है। शोभायात्रा के दौरान गीत संगीत का दौर चलता रहता है।
समय बीतता जाता है और घड़ी की सूइयां 12 बजा देती है। उसके बाद रावण दहन का कार्यक्रम शुरू होता है। पटाखों की गूंज से आसमान नहा उठता है। रंग-बिरंगी रोशिनयों के बीच राहण,मेघनाद और कुंभकर्ण का पुतला अग्नि के समर्पित हो जाता है। अंधकार हट जाता है। रोशनी से आसमान जगमगा उठता है। यही रोहिड़ा का रावण है जो अब जल चुका है। पुलिस ने भी राहत की सांस ली। क्योंकि अब देश का आखिरी रावण जल चुका है। अब इंतजार है अगली सुबह का जो खुशियां और नई उम्मीदें लेकर आएगी। जिस सुबह में खुशहाली होगी।

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