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बिमल कुमार
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर या यूं कहें कि इंटरनेट सेंशरशिप का मामला अब पूरी दुनिया में तूल पकड़ता जा रहा है। एक तरफ भारत में जहां इस मसले पर फेसबुक, गूगल, याहू समेत 21 वेबसाइटें दिल्ली की अदालत में कानूनी लड़ाई में उलझी हैं, वहीं अमेरिका में इस बाबत दो कानून स्टॉप ऑनलाइन पाइरेसी एक्ट (सोपा) और प्रोटेक्ट इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी एक्ट (पीपा) पर बहस चल रही है। विभिन्न देशों द्वारा इस मसले को गंभीरता से लेने के बाद तमाम वेबसाइटें भी हरकत में आ गई हैं।
गौर हो कि इस समय दुनिया में इंटरनेट की दीवानगी पूरी तरह छाई हुई है। खासकर युवा पीढ़ी तो इससे जड़ तक जुड़ चुकी है और आगे और जुड़ने की कतार में खड़ी है। आज यदि इन साइटों के जरिए युवाओं में सामाजिक संरचना का एक नया रूप आकार ले रहा है तो इसमें साइबर वर्ल्ड की बड़ी भूमिका है। आने वाली पीढ़ी को लक्ष्य कर हम देखें तो यह संरचना किस आकार या किस रूप में होगी, यह कहना अभी तो मुश्किल है, लेकिन इसका स्वरूप काफी व्यापक होगा। और यह युवाओं के जीवन पर गहरा प्रभाव छोड़ेगी।
गौर हो कि इस समय दुनिया भर में 2 अरब इंटरनेट के उपभोक्ता हैं, जिसमें से 80 करोड़ फेसबुक पर सक्रिय हैं। इसमें 30 करोड़ टि्वटर यूजर्स की संख्या है। अब यदि भारतीय इंटरनेट उपभोक्ता पर गौर करें तो इस समय भारत में 8.7 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हैं। जिसमें से 3.7 करोड़ फेसबुक से जुड़े हैं और 1.2 करोड़ टि्वटर पर सक्रिय हैं।
सोशल साइट टि्वटर ने हाल में घोषणा की है कि वह स्थानीय कानून के आधार पर आपत्तिजनक ट्वीट्स को सेंसर करेगा। इससे पहले जिन ट्वीट्स को हटाया जाता था, वे पूरी तरह गायब हो जाते थे और दुनिया के किसी भी देश में नहीं दिखते थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह चीन जैसे देशों में ट्विटर को विस्तार देने की रणनीति है, जहां इंटरनेट सेंशरशिप के कानून काफी सख्त हैं।
सोशल नेटवर्किंग की दुनिया का बेताज बादशाह फेसबुक आने वाले कुछ दिनों में टाइमलाइन प्रोफाइल को अनिवार्य कर सकता है। वेबसाइट का दावा है कि नया प्रोफाइल यूजर को अपनी इच्छा के अनुसार चीजें छिपाने की छूट देगा। वहीं, कुछ ऐसी योजना है कि गूगल अपने जरिए किसी भी साइट तक पहुंचने वाले उपभोक्ताओं का रिकॉर्ड बनाएगा। गूगल की यह कवायद उपभोक्ताओं और जारी सामग्रियों पर नजर रखने को लेकर है।
माइक्रोब्लागिंग साइट ट्विटर ने आपत्तिजनक ट्वीट को सेंसर करने की बात क्या कही, इसके यूजर्स गुस्से से भड़क उठे। इस कदम से खफा तमाम लोगों ने अमेरिका में एक दिन के लिए इसका बायकॉट ही कर दिया। इसके पीछे तर्क यह है कि विकीलिक्स के खुलासों के बाद आई जागरूकता और अरब क्रांति में लोगों के ट्वीट्स की अहम भूमिका रही है। हालांकि ट्विटर ने साफ किया कि प्रतिबंधित ट्वीट्स सिर्फ उन्हीं देशों में नहीं दिखेंगे, जहां से शिकायत आई है। लेकिन यूजर्स इस फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश मानते हैं।
अब सवाल यह भी उठता है कि क्या सामाजिक और राजनीतिक क्रांति की इसकी क्षमता पर विपरीत असर पड़ेगा। वैसे देखा यह गया है कि दुनिया में किसी भी विषय पर सेंसर का परिणाम अच्छा नहीं होता, लेकिन पारदर्शिता से इस नुकसान को कम तो किया ही जा सकता है। वैसे भी पिछले साल 4410 ट्वीट हटाए जा चुके हैं, जिनमें ज्यादातर मामले कॉपीराइट उल्लंघन के थे।
अब चूंकि भारत में इन साइटों की आपत्तिजनक सामग्रियों पर प्रतिबंध लगाने की बात है तो कुछ जाहिर तौर पर इस दिशा में कंपनियों को पारदर्शिता तो बरतनी ही पड़ेगी। पहले भी कुछ देशों में इन सोशल साइटों पर प्रतिबंध लग चुके हैं। चीन में दलाई लामा, थियानमेन चौक कांड और सरकार विरोधी सामग्रियां प्रतिबंधित हैं। थियानमैन चौक पर हुई दमनात्मक कार्रवाई की 21वीं बरसी पर जून 2010 में चीन ने सोशल नेटवर्किंग साइटों को ब्लॉक कर दिया था।
इसके अलावा, पाकिस्तान में 19 मई, 2010 को पैगंबर मोहम्मद पर कार्टून प्रतियोगिता के आयोजन संबंधी पेज को लेकर फेसबुक पर पाबंदी लगाई गई थी। 20 सितंबर, 2010 को लाहौर हाईकोर्ट ने ईशनिंदा से जुड़ी सामग्री प्रकाशित करने वाली साइटों पर रोक लगाने का निर्देश दिया था।
सोशल नेटवर्किग साइट पर पोस्ट होने वाले आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर मचे हो हल्ले के बाद टि्वटर ने घोषणा किया है कि वह टि्वटर पर आने वाले टि्वट्स पर सेंसर लागू करेगा। उधर, सोशल नेटवर्किग साइटों के जरिए खुफिया सूचनाएं लीक करने के मामले में नौसेना के चार अधिकारियों के नाम सामने आने के बाद सशस्त्र सेनाओं ने साइबर नियमों पर सख्ती बढ़ा दी है। इस कड़ी में सेना मुख्यालय ने अपने सभी सैनिकों और अधिकारियों से सोशल नेटवर्किग साइटों से सेना संबंधी सूचनाएं और तस्वीरें हटाने को कहा है। यही नहीं, नौसेना की पश्चिमी कमान ने इन साइटों के जरिए गोपनीय सूचनाएं लीक करने के मामले में दो अधिकारियों की बर्खास्तगी की सिफारिश की है।
बीते दिनों देश में सोशल साइटों के खिलाफ जमकर आवाज बुलंद की गई। केंद्र सरकार ने फेसबुक, गूगल, याहू, माइक्रोसॉफ्ट समेत अन्य कई विदेशी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर कार्रवाई करने का मूड बना लिया। सोशल नेटवर्किंग साइटों पर अश्लील, आपत्तिजनक और धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली सामग्री को लेकर कई साइटों पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई। यही नहीं, केंद्र सरकार ने पटियाला हाउस कोर्ट में रिपोर्ट के साथ इस मामले में चल रही सुनवाई के दौरान अपना पक्ष भी रखा। सरकार की लिखित अनुमति मिलने के बाद ही पटियाला हाउस कोर्ट ने इन साइटों को समन जारी किया।
हालांकि, सोशल नेटवर्किंग साइट गूगल व फेसबुक सहित अन्य नेटवर्किग साइट प्रबंधन अश्लीलता के मुद्दे पर हाई कोर्ट में अपना पल्ला झाड़ रही हैं। कोर्ट में दी गई दलील में गूगल ने इसे भाषण व विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे से जोड़ने का प्रयास किया और यहां तक कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की तुलना चीन से कतई नहीं जा सकती। फेसबुक ने तो यहां तक कह डाला कि हम सबसे अलग हैं और अपने सदस्य बनाकर काम कर रहे हैं। हम सर्च इंजन भी नहीं हैं। तो क्या इन साइटों की ओर से जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लेने के बाद सवाल यह उठता है कि कोई नियमन नहीं होना चाहिए।
इससे पहले, दिल्ली हाईकोर्ट ने गूगल और फेसबुक को चेतावनी दी थी कि यदि उन्होंने इंटरनेट पर अपने वेब पेज से आपत्तिजनक सामग्री नहीं हटाए तो अदालत उन्हें रोकने का आदेश दे सकती है। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में सोशल नेटवर्किंग साइट्स से कहा कि अगर आपने आपत्तिजनक सामग्री को जांचने और उसे हटाने के लिए कोई तंत्र विकसित नहीं किया तो चीन की तरह यहां भी ऐसी वेब साइट्स को अदालत पूरी तरह ब्लॉक करा सकती है। इन साइटों पर आपत्तिजनक सामग्री को स्थान देने का आरोप है। अब देखना यह है कि समन मिलने के बाद कोर्ट का रुख इस मसले क्या होगा और क्या चीन की तरह इन साइटों पर भारत में भी पूरी तरह नियंत्रण लगाया जा सकेगा।