`2014 में बहुमत मिला तो राहुल गांधी बनेंगे पीएम`

दिग्विजय सिंह कांग्रेस पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं में शुमार किए जाते हैं। दिग्विजय सिंह का मानना है कि वह जो भी बोलते हैं, सोच समझकर बोलते हैं। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर उन्‍होंने कई मसलों पर बेबाकी से अपनी राय जाहिर की।

दिग्विजय सिंह कांग्रेस पार्टी के वरिष्‍ठ नेताओं में शुमार किए जाते हैं। दिग्विजय सिंह का मानना है कि वह जो भी बोलते हैं, सोच समझकर बोलते हैं। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर उन्‍होंने कई मसलों पर बेबाकी से अपनी राय जाहिर की। इस बार सियासत की बात में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से ज़ी रीज़नल चैनल्स (हिन्दी) के संपादक वासिंद्र मिश्र ने खास बातचीत की। पेश हैं इसके मुख्य अंश:-
वासिंद्र मिश्र: दिग्विजय सिंह जी, सबसे पहले तो हम ये जानना चाहते हैं कि लोग कहते हैं कि आप बिना सोचे समझे बोलते हैं लेकिन अभी तक जो मेरी याददाश्त है, पिछले चार-पांच सालों से आपका कोई भी बयान चाहे पॉलिटिकल हो या एडमिनिस्ट्रेटिव हो, डाक्यूमेंट्स और डेटा पर आधारित होता है और बाद में तमाम एजेंसियों की जांच रिपोर्ट में वो साबित भी होता है। आपको ये फीडबैक मिलता कहां से है?
दिग्विजय सिंह: मैं एक पॉलिटिकल व्यक्ति हूं और लोगों से मिलता रहता हूं, जानकारियां लेता रहता हूं। और उसी के आधार पर मैं सोच विचार कर ही अपना बयान देता हूं। लोग कुछ भी कहते रहें लेकिन मेरा कोई भी बयान बिना सोचे समझे और बिना आधार के मैं कोई अपना बयान नहीं देता। इसलिए लोगों को अच्छा लगे या बुरा लगे लेकिन राजनीति आखिर विचारधारा कि राजनीति होती है। एक विश्वास की राजनीति होती है, एक कन्विक्शन की राजनीति होती है। मैंने जीवन भर कन्विक्शन (दृढ़ विश्वास) की राजनीति की है और विचारधारा के लिए मैं लड़ता रहा हूं।
वासिंद्र मिश्र: कई बार लगता है कि आपके बयान के चलते आपके विरोधियों से ज्यादा आपकी पार्टी के लोग या तो आपसे कुछ दिन तक दूरी बनाने की कोशिश करते हैं या आपके बयान को लेकर कह देते हैं कि आपकी निजी राय है। आपको इसे लेकर कभी अनकमफर्टेबल (असहजता) महसूस नहीं हुआ?
दिग्विजय सिंह: मैंने कोई ऐसा बयान नहीं दिया जोकि कांग्रेस की नीति रीती के विरुद्ध हो या कांग्रेस की विचारधारा या कांग्रेस के हित में ना हो। जो कुछ भी मैंने कहा है सोच-विचार कर राष्ट्रहित में और पार्टी के हित में अपनी बात कही है। कई बार होता है कि शायद मैंने कुछ ऐसा कुछ कहा हो, जिससे लोगों को लगा हो कि आउट ऑफ टर्न मैंने बात कह दी है या बिना सोच-विचार कह दी है, लेकिन ऐसा नहीं है जो भी मैंने कहा सोच-विचार के ही अपनी बात कही।
वासिंद्र मिश्र: आपके बयान से ज्यादा आपके लेख का जिक्र करना चाहते हैं और मुझे लगता है कि आप जब अपनी राय रखते हैं तो सरकार से ज्याद पार्टी की नीतियों और पार्टी की चिंता रहती है आपके दिमाग में। आपका इकोनॉमिक टाइम्स में कुछ महीने पहले एक लेख छपा था, जब चिदंबरम जी देश के गृह मंत्री हुआ करते थे। आपने ये चिंता किए बिना या ये परवाह किए बिना कि ये एक गठबंधन सरकार है जिसमें कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ा घटक दल है और आपने अपने ही गृह मंत्री की नीतियों की खुले तौर पर आलोचना की थी। नक्सलवाद के मामले में जब उन्होंने एक नीति बनाई थी और चाह रहे थे कि पूरे देश में लागू की जाए, इसके पीछे क्या लॉजिक था?
दिग्विजय सिंह: मेरा विरोध केवल एक बात का था। उस समय विचार केंद्र सरकार की ओर से किया जा रहा था कि आर्मी का उपयोग नक्सल क्षेत्रों में किया जाए, एयर फोर्स का उपयोग नक्सल क्षेत्रों में किया जाए। मैं समझता हूं कि वो उचित नहीं था क्योंकि मैं उस क्षेत्र का मुख्यमंत्री रहा हूं, बहुत दिनों तक मैंने राजनीति की है। उस इलाके को मैं जानता हूं जिस इलाके में अगर एयर क्रैश हो जाता है तो तीन-पांच हफ्तों तक उसका मलबा भी नहीं मिल पाता है। उस क्षेत्र में आप वो फोर्सेस जोकि शूट टू किल के लिए प्रशिक्षित की गई है। आर्मी जो है वो कोई सिविल ड्यूटी में माहिर नहीं है, उनको ट्रेन किया गया है दुश्‍मनों से और चिन्हित दुश्‍मनों से लड़ाई लड़ने के लिए। अब इन क्षेत्रों में कोई चिन्हित दुश्‍मन नहीं है। वहां नक्सली क्षेत्र में कौन नक्सली है, कौन नक्सली नहीं है ये पता लगाना आसान है क्या। वहां की भौगोलिक परिस्थितियां भी खासा मुश्किल है। आप एयरफोर्स की बांबिंग करिएगा तो कहने की नौबत आएगी। इसलिए उस बात को लेकर मेरी उससे नाइत्तफाकी थी और उसी के आधार मैंने अपनी बात कही थी। जो कुछ मैंने कहा था, कांग्रेस पार्टी की जो रणनीति रही है नक्सलवादियों से लड़ने के लिए वो डाक्यूमेंटेड हैं, हमारे इलेक्शन मैनीफिस्टो में हैं। हमारे कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में है, उसी के आधार पर मैंने वो बात कही थी। हां एक टिप्पणी पर्सनल लेवल पर चिदंबरम जी मेरे मित्र हैं। सन 85 में वो पार्लियामेंट में पहली बार आए। मैं उससे पहले केंद्र, राज्य में मंत्री था। मैं भी पहली बार पार्लियामेंट में आया तो राजीव गांधी जी ने जिन पांच नवयुवकों को चुना था पार्लियामेंट में एंटरवीन करने के लिए उसमें चिदंबरम जी थे, मैं था, कुमार मंगलम थे, दो-एक लोग और थे। उस समय से मेरा उनका परिचय है, मेरे मित्र हैं। मैंने उनको कह दिया था कि एरोगेंस के बारे में मैं भी शिकार रहा हूं और वो भी इटेलेक्चुअल एरोगेंस। खैर वो टिप्पणी एक मित्र के रुप में मैंने कह दिया था और अगर उनको बुरा लगा तो मैंने जाके उनसे क्षमा याचना भी कर ली थी। आज भी हम बेहद अच्छे मित्र हैं और विचारों का आदान-प्रदान होता है। कई बार होता है कि हम लोगों के विचार मेल नहीं खाते हैं, लेकिन निजी स्तर पर हम लोगों की मित्रता है।
वासिंद्र मिश्र : पिछले दिनों आपका एक बयान आया था, उसकी भी काफी चर्चा हुई देश में। आपने अपनी राय जाहिर की थी कि प्रधानमंत्री और अध्यक्ष का पद एक ही व्‍यक्ति के पास होना चाहिए। और ये जो प्रयोग सोनिया जी ने किया था पिछले आठ-नौ वर्षों का, वो उतना संभावित रिजल्ट नहीं दिया। इसके पहले जो मॉडल था वो ज्यादा इफेक्टिव था, ज्यादा रिजल्ट ओरिएंटेड था। अभी भी आप इस राय पर कायम हैं?
दिग्विजय सिंह: ये विषय कोई आज का नहीं है। आपको याद होगा नरसिम्हा राव जी के समय में भी वन मैन वन पोस्ट का विषय आया था काफी चर्चा हुई थी और उसमें तिवारी कांग्रेस बनने के पहले ये एक प्रयास हुआ था। बात उसकी नहीं है, बात साफ है कि जिस वातावरण में सरकार चलती है उसमें जो कार्यपालिका है जो ब्यूरोक्रेसी है, उसको क्लीयर कट एक इंडिकेशन होना चाहिए कि कहां से सरकार चल रही है। ये बात साफ है कि विपक्ष बार-बार कहता रहा है कि पावर सेंटर सोनिया गांधी जी हैं, जबकि मैं इस बात को जानता हूं कि सोनिया गांधी जी कभी भी कोई प्रशासकीय तंत्र में हस्तक्षेप नहीं करती हैं। और हां जो नेशनल एजवायजरी काउंसिल के माध्यम से कुछ योजनाएं जिनका हमारे कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में उनका जिक्र है, चाहे महात्मा गांधी नरेगा हो, चाहे राइट टू इंफॉर्मेशन हो, राइट टू एजुकेशन हो, राइट टू फूड हो ऐसे कई कानूनों के बारे में नेशनल एजवायजरी काउंसिल के माध्यम से सोनिया जी ने अपना प्रस्ताव सरकार को दिया है और सरकार ने उसका पालन भी किया है। लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था में मैं इस बात को कह सकता हूं कि सोनिया जी कभी हस्तक्षेप नहीं करती हैं।
वासिंद्र मिश्र : गांधी परिवार कभी लाइबलिटी लेकर नहीं चलता है। जरूरत पड़ती है तो अपने परिवार के लोगों को भी किनारे कर देता है] जब गांधी परिवार की इमेज पर बात आती है। आज की तारीख में लग रहा है कि मनमोहन जी की वजह से जो तमाम तरह के प्रशासनिक विफलताओं के आरोप लग रहे हैं, जो आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं तो अब गांधी परिवार को लगने लगा है कि शायद मनमोहन सिंह जी लाइबलिटी हो गए हैं और उनसे मुक्ति पाने के लिए अब गांधी परिवार इस तरह की कार्रवाई कर रहा है, जिसके तहत की दो मंत्री ड्राप किए गए हैं?
दिग्विजय सिंह: ऐसा नहीं है, अगर आप देखेंगे कि सोनिया गांधी जी भ्रष्टाचार के मामलों में बहुत ही संवंदनशील हैं। चाहे किसी ने भ्रष्टाचार किया हो थोड़ा सा भी अगर उन्हें लगा है कि बात ठीक नहीं है तो उन्होंने तत्काल कार्रवाई की है। पवन बंसल के भांजे ने पैसा लिया, लेकिन किस बात के लिए लिया कि एक महेश कुमार जो जनरल मैनेजर से रेलवे बोर्ड मैंबर प्रमोट हुए, उनको मैंबर इलेक्ट्रिकल की प्रस्थापना का उन्होंने विश्वास दिलाया। लेकिन ये लोग नजरअंदाज कर रहे हैं कि इस प्रकार के दो बार प्रस्ताव पवन बंसल जी के पास लिखित में आए कि महेश कुमार को मैंबर इलेक्ट्रिकल बनाया जाए लेकिन दोनों बार उन्होंने वो प्रस्ताव रिजेक्ट कर दिए और आज भी वो मैंबर इलेक्ट्रिकल के पद पर नहीं हैं। तो जब आदेश नहीं हुआ है और मंत्रीजी ने उसे रिजेक्ट कर दिया है तो भ्रष्टाचार के लिए वो जवाबदार कहां से हो गए। चूंकि उनके भांजे उसमें शामिल हैं, अभी तक जो प्रमाण सामने आए हैं। मैं आगे नहीं जानता, मैं किसी जांच एजेंसी का अंग नहीं हूं लेकिन आज तक पवन बंसल पर कोई आंच नहीं है। उनके खिलाफ कोई प्रमाण साबित नहीं हुए हैं। मैं पवन बंसल जी को पिछले तीस साल से जानता हूं और वो एक बेहद अच्छे राजनेता हैं और इस प्रकार के आरोप उन पर कभी नहीं लगे। वह काफी लोकप्रिय हैं। संसदीय मंत्री थे तो सारे दलों के नेता उनका बड़ा सम्मान करते थे। मृदु भाषी हैं, व्यवहार कुशल हैं, लेकिन चूंकि एक माहौल बन गया था इसलिए उनका इस्तीफा लेना पड़ा। अश्विनी कुमार की बात मैं आपसे करता हूं। अश्विनी कुमार का दोष सिर्फ इतना भर है कि एक कानून मंत्री के नाते एफिडेविट को उन्होंने देखने का प्रयास किया। मैं जहां तक समझता हूं, इसमें सीबीआई का प्राजीक्‍यूशन मैनुअल जो है उसके अंदर लॉ मिनिस्ट्री को अधिकार है अपनी बात कहने का और सीबीआई एक इनवेस्टिगेटिंग एजेंसी हैं। और इनवेस्टिगेटिंव एजेंसी के लिए ये आवश्यक है कि प्राजीक्‍यूशन का केस किस धारा के अंदर बनाया जाए, उसमें वकील की राय लेनी पड़ती है और सीबीआई का वकील कौन होगा इसका निर्णय कौन करता है। लॉ मिनिस्ट्री करती है तो इसमें इतना बड़ा प्रकरण नहीं बनता था।
वासिंद्र मिश्र: राजा साहब एक सबसे बड़ा सवाल ये है कि आप इतने सीनियर हैं, आप सरकार में भी रहे हैं और विपक्ष में भी रहे हैं। जब कमजोर सरकार होती है तो जो अलग संवैधानिक संस्थाएं हैं, उसके जो मुखिया होते हैं वो निरंकुश हो जाते हैं। वो चाहे ज्यूडिशियरी हो सीएजी हो, सीबीआई हो या आईबी हो। आपको नहीं लगता है कि आपकी जो मौजूदा सरकार है केंद्र की वो इतनी कमजोर है कि जिसको मौका मिलता है वो ही झटका दे देता है और आपकी सरकार बर्दाश्त कर लेती है?
दिग्विजय सिंह: विपक्ष तो दूसरा आरोप लगा रहा है कि हमारी सरकार इतनी सक्षम है कि सीबीआई को प्रभावित कर रही है।

वासिंद्र मिश्र: नहीं, लेकिन सच्चाई तो यही है।
दिग्विजय सिंह: सच्चाई की बात आप दूसरी कह रहे हैं, लेकिन प्रश्न इस बात का है कि ये केंद्र सरकार वो है जो इंस्टीट्यूशन्स का सम्मान करती है और अपने इंस्टीट्यूशन्स का सम्मान करते हुए कई बार ज्यादा झुक जाती है। अब जैसे अन्ना हजारे का एजिटेशन मान लिजिए।
वासिंद्र मिश्र: हां, मैं रामदेव के बारे में भी बात करूंगा।
दिग्विजय सिंह: मैं अन्ना हजारे के एजिटेशन की आपसे बात करता हूं। अन्ना हजारे के आंदोलन में केंद्र सरकार ने अभूतपूर्व निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि आपके पांच लोग और केंद्र सरकार के वरिष्ठतम पांच मंत्री किसी कानून बनाने के लिए साथ बैठेंगे। क्या मुझे बता दीजिए की हिंदुस्‍तान की आजादी के बाद में ऐसा अवसर आया, लेकिन क्योंकि माननीय प्रधानमंत्री और सरकार इस बात को लेकर संवेदनशील थी कि अच्छा लोकपाल बनना चाहिए और उसमें सुझाव देने में कोई दिक्कत नहीं है। लगभग कई सौ घंटों से ज्यादा तक की चर्चा हुई और अधिकांश सुझाव मान लिए गए। इसमें कुछ सुझाव अव्यवहारिक थे। अब उनका एक सुझाव था कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार के सारे अधिकारी, कर्मचारी को शामिल कर लिया जाए। जहां लाखों एम्प्लाइज हो उनके चतुर्थ श्रेणी कर्माचारी से लेकर कैबिनेट सेक्रेटी तक और चीफ सेक्रेटी तक का लोकपाल के अंदर शामिल करना कहां तक उचित था। ऐसे अव्यवहारिक उनके सुझाव थे, तो उसमें कहने का मतलब ये है कि ये सरकार जरूरत से ज्यादा संवेदनशील है।
वासिंद्र मिश्र: हां, मैं उसी की बात करना चाह रहा हूं कि संवेदनशील है कि कमजोर है। क्योंकि इसका दूसरा उदाहरण भी सामने है। आप विरोध कर रहे थे कि रामदेव ठग हैं, रामदेव हत्या के आरोपी हैं, रामदेव की कंपनियों में जो चल रहा है कामकाज वो बहुत ठीक नहीं चल रहा हैं। बावजूद इसके आपकी सरकार के पांच जिम्मेदार मंत्री रामदेव को रिसीव करने एयरपोर्ट चले गए आपके बार-बार बोलने के बाद भी। आपकी राय को तरजीह नहीं दी गई, संगठन की राय नहीं ली गई और मंत्री गए उनकी आवभगत की। रामदेव के ट्रस्ट को आपकी ही की सरकार के एक मंत्री ने फूड पार्क बनाने के लिए कई करोड़ रुपया भी दिया। ठीक है ये सारे काम हुए और आप लोगों जैसे और भी जो पार्टी के नेता थे, सीनियर लीडर थे उनकी राय को तरजीह नहीं दी गई और बाद में क्या हुआ। तो ऐसा हो क्यों रहा है चाहे वो रामदेव हों, डायरेक्टर सीबीआई हों, सीएजी हों ये सारे जो हम कहें की डायमंड्स हैं ये तो आपकी सरकार के मंत्रियों ने खोज के निकाला है और जोकि आज आपके लिए सिरदर्द बने हुए हैं। आपकी सरकार के लिए, आपकी पार्टी के लिए तो क्या इसी वजह से इतनी कमजोर और लचर सरकार चल रही है?
दिग्विजय सिंह: आपने ये बात छेड़ी है तो मैं थोड़ा सा आपको बताना चाहता हूं। बाबा रामदेव को जितनी मदद कांग्रेस पार्टी की उत्तराखंड सरकार ने की है, उतनी किसी ने नहीं की होगी। जमीनें दी गई, यूनिवर्सिटी बनाया गया और उसका चांसलर बाबा रामदेव को बनाया गया जो कि अनपढ़ है। बालकृष्ण जो मैट्रिक पास भी नहीं है, झूठे फर्जी सर्टिफिकेट से अपने आपको मैट्रिक पास बताया है और वो उसका वाइस चांसलर है। पतांजलि यूनिवर्सिटी बना दी ये गलती हमसे हुई। जमीनें उनको अलॉट की गई हैं और जिस काम के लिए ज़मीनें दी गई थी उसका भी उपयोग ठीक ढंग से नहीं हुआ है। फूड पार्क भी दिए गए लेकिन जिस प्रकार से इस व्यक्ति ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग किया है, जिस प्रकार से लोगों को ठगा है ये बातें भी सामने आएंगी, तभी तो मालूम पड़ेगा। जहां तक आपने पांच मंत्रियों की बात कही है, ये पांच मंत्री मेरे बयान के पहले चले गए थे और ये बाद में मैंने इस बात को लेकर तत्कालीन वित्त मंत्री (मौजूद समय में महामहिम राष्ट्रपति जी हैं) से कहा कि प्रणब दा आपको ये बातें पता होनी चाहिए कि ये व्यक्ति कौन है, क्या है। ये विशुद्ध रूप से फ्रॉड है और ये ब्लैकमेल कर रहा है। पूरे शासन को ब्लैकमेल कर रहा है, जबकि इसके खिलाफ बहुत सारे प्रकरण ऐसे हैं जिसमें इसने गलत काम किए हैं। इनके गुरु शंकर देव गायब हैं, उसकी एफआईआर लिखी गई और अब उसकी सीबीआई इन्क्वायरी हो रही है। उन्होंने कई बार इसकी शिकायत भी की थी कि ये हमसे प्रभाव डालके इस प्रकार के कार्य करवा रहे हैं। कहने का मतलब ये है कि जहां तक बाबा रामदेव का सवाल है, पता लगा लीजिए। एक तो जयपुर का अस्पताल है, जहां के आईसीयू वार्ड का नाम ही बाबा रामदेव वार्ड है। उनके दवाइयों के कारण कई लोग वहां आईसीयू में पहुंच चुके हैं। तो इनके बारे में थोड़ा सा समझना चाहिए कि ये किस प्रकार का काम करते हैं।
वासिंद्र मिश्र: लेकिन इन सारी चीजों के बावजूद सरकार चल रही है और बहुत ही लचर तरीक से, बहुत कमजोर तरीके से चल रही है। आपकी पार्टी के नेतृत्व में सरकार चल रही है। संगठन की जिम्मेदारी है कि अगर सरकार ठीक से परफार्म नहीं कर रही है, गवर्नेंस ठीक नहीं है, करप्शन के झूठे ही सही लेकिन इतने सारे आरोप लगे हैं। तब एक उपयुक्त समय है, माकूल वक्त है कि इसमें नेतृत्व परिवर्तन किया जाए और कोई ऐसा सशक्त नेतृत्व दिया जाए जो सरकार की भी छवि बनाए और पार्टी को भी आने वाले लोकसभा चुनाव में दोबारा सत्ता में लाने के लिए रास्ता तैयार कर सके?
दिग्विजय सिंह: आपकी बात से मैं सहमत नहीं हूं मिश्र जी। बड़ी विनम्रता से कहना चाहता हूं कि इस सरकार ने बेहद अच्छे निर्णय लिए हैं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि जबकि पूरे विश्व में आर्थिक मंदी चली हुई है, उसके बावजूद भी हमारा पांच परसेंट से अधिक ग्रोथ रेट है। जबकि कोई भी ऐसा प्रदेश, देश नहीं है केवल चाइना को छोड़ के और इंडोनेशिया थोड़ा बराबर आया है, हमारे से ज्यादा ग्रोथ रेट हो। दो साल लगातार ग्रामीण क्षेत्र का ग्रोथ। बिहार, यूपी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान जहां से माइग्रेशन हुआ करता था, आज माइग्रेशन कम हुआ है। आप देखेंगे कि जितना पैसा अर्बन एरियाज के लिए कभी नहीं दिया गया, इस बार दिया गया है। पिछले नौ सालों के अंदर एक सुनियोजित ढंग से विकसित भारत को आगे लाने का अवसर है। यूआईडी के अंतर्गत सबसे टॉप प्रोफेशनल शामिल हैं, मसलन नंदन नीलेकणी। उनके जिम्‍मे ये काम सौंपा गया है कि हर व्‍यक्ति का यूआईडी होना चाहिए।

वासिंद्र मिश्र: लेकिन वो भी फलॉप ही लग रहा है?
दिग्विजय सिंह: ऐसा नहीं है मिश्र जी, लगभग चालीस करोड़ लोगों को यूआईडी का नंबर दिया जा चुका है। जिनका आईडेंटिफिकेशन, थम्ब इंप्रेशन और आंखों के आईरिस के माध्यम से किया गया है। इसके माध्यम से उसको कोरिलेट करना है। ये जो बुनियादी काम हुए हैं, इस पर आप लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है।
वासिंद्र मिश्र: इसको भी हम लोग मानते हैं और समय-समय पर इसकी चर्चा भी होती है, लेकिन ये भी सच्चाई है कि जब मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री थे और आज देश के प्रधानमंत्री हैं, देश में अगर कहें जितने बड़े वित्तीय घोटाले हुए हैं, उन्हीं के कार्यकाल में हुए हैं?
दिग्विजय सिंह: चलिए अब इतने घोटालों का नाम...।
वासिंद्र मिश्र: एज ए वित्त मंत्री और पाइम मिनिस्टर।
दिग्विजय सिंह: गिनाइये मुझे।
वासिंद्र मिश्र: प्रतिभूति घोटाले से लेकर जितने बड़े घोटाले हुए तब ये देश के वित्त मंत्री हुआ करते थे। देश और अर्थव्यवस्था की ऐसी की तैसी हो गई। इनका प्रमोशन होता गया। मनमोहन सिंह नौ साल से प्रधानमंत्री हैं, कोलगेट, सीडब्ल्यूजी, सारे घोटाले इन्हीं के राज में....?
दिग्विजय सिंह: अच्छा मिश्र जी आप ने शुरुआत की प्रतिभूति घोटाले की। उसके अंदर हर्षद मेहता को जेल जाना पड़ा। उसके तहत केतन पारेख को जेल जाना पड़ा, उनके खिलाफ कार्रवाई की गई। किसको बख्शा है हम लोगों ने। 120 करोड़ की जनता के देश में केंद्र सरकार एक फेडरल स्ट्रक्चर में है। राज्यों के घोटाले आप लोगों को नज़र नहीं आते हैं। क्या उत्तर प्रदेश के घोटालों की जानकारी नहीं है..। आप तो उत्तर प्रदेश में बहुत रहे हैं।

वासिंद्र मिश्र: नहीं, हम लोग तो दिखाते भी हैं, रोज दिखाते हैं।
दिग्विजय सिंह: साफ है, इसी तरह से मध्य प्रदेश के अंदर, छत्तीसगढ़ के अंदर जो घोटाले हुए हैं, उस पर भी नजर हमको रखनी चाहिए। बात साफ है आपने टूजी की बात कही, कोल की बात कही और सीडब्ल्यूजी की कही। टूजी के मामले में नीति किसने बनाई थी। हमने तो ऑक्शन किया था लेकिन ऑक्शन करने के बाद एनडीए सरकार ने जिस ऑक्शन की जो शर्तें थीं उसी को बदल दिया। लेकिन प्लेयर्स को नहीं बदला, यानि कि ठेकेदार ने जिस कंडीशन में ठेकेदारी ली थी, वो कंडीशन चेंज कर दी लेकिन ठेकेदार नहीं बदला। आप मुझे बता दीजिए कि कभी पहले ऐसा हुआ है। अगर ठेकेदार को कंडीशन पसंद नहीं है तो ठेका कैंसल किया जाता है। और नई कंडीशन में सबको फिर पार्टिसिपेट करने का अवसर दिया जाता है। एनडीए ने ऐसा नहीं किया। घोटाला कहां हुआ है, घोटाले में जो जिन लोगों ने एप्लीकेशन दी उन्होने अपनी एप्लीकेशंस में गलत जानकारी दे दी। जिसके आधार पर उनका कोल ब्लॉक अलॉट हो गया। वो सारे कैंसल हो रहे हैं। और उन पर केस बन रहे हैं। सीबीआई का इन्वेस्टीगेशन हो रहा है। मैं आप से पूछना चाहता हूं कि टूजी के अंदर सीबीआई को केस किसने दिया था, सरकार ने दिया। कोल ब्लॉक एलोकेशन के अंदर सीबीआई को किसने सौंपा...सरकार ने सौंपा...सीडब्ल्यूजी के करप्शन के मामले में किसको किसने सौंपा,...सरकार ने सौंपा...और जो भी दोषी पाया गया उसके खिलाफ कार्रवाई की गई। किसको बख्शा गया। और भारतीय जनता पार्टी के समय के घोटाले में उन्होने किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की।

वासिंद्र मिश्र: आपको लगता है कि सब कुछ ठीक चल रहा है। सरकार अच्छा परफॉर्म कर रही है। पार्टी की नीतियों के अनुरुप ही सरकार काम कर रही है। क्या 2014 का चुनाव मनमोहन सिंह के नेतृत्व में लड़ा जाएगा या राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा?
दिग्विजय सिंह: चुनाव तो 2004, 2009 2014 में सोनियाजी के नेतृत्व में लड़ा गया है और उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
वासिंद्र मिश्र: राहुल जी की भूमिका क्या होने जा रही है 2014 में।
दिग्विजय सिंह: स्पष्ट है उनकी भूमिका। वो ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं और सोनिया जी ने उन्हें 2014 के इलेक्शन कैंपेन को करने के लिए गठित कमेटी का अध्यक्ष बनाया है। तो उसमें लगे हुए हैं।
वासिंद्र मिश्र: क्या देश की जनता ये मान ले कि 2014 में जो अगली सरकार बनेगी और अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो राहुल जी देश के प्रधानमंत्री होंगे?
दिग्विजय सिंह: मैं तो देश की जनता से एक ही अपील करूंगा कि साल 85 के बाद से, आपने किसी को बहुमत इस देश में नहीं दिया। और गठबंधन सरकार को चलाने में कितनी कठिनाई आाती हैं वो देख लिया। इसलिए 2014 में कांग्रेस पार्टी को स्पष्ट बहुमत दें। और सरकार कैसे चलेगी, हम आपको दिखा देंगे।
वासिंद्र मिश्र: अगर स्पष्ट बहुमत आती है तो राहुल जी देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे?
दिग्विजय सिंह: ये निर्भर करता है हमें बहुमत मिले, सरकार बनाने का अवसर मिले। फिर जो नए चुने हुए संसद सदस्य आएंगे, वो अपना लीडर चुनेंगे।
वासिंद्र मिश्र: बहुत बहुत धन्यवाद, आपको नमस्कार।

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