बेंगलुरू: कर्नाटक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। अब सरकार के दबाव में राज्य के महाधिवक्ता बीवी आचार्या को अपना पद छोड़ना पड़ा है। आचार्या एक वरिष्ठ वकील हैं। उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर कर्नाटक के मुख्य न्यायाधीश ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता के खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले में विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) भी नियुक्त किया था।
78 वर्षीय आचार्या ने यहां बुधवार रात संवाददाताओं से कहा कि सरकार की ओर से उन पर एसपीपी पद छोड़ने के लिए दबाव बनाया गया था। उनसे यह पद छोड़ने के लिए दबाव बनाते हुए कहा गया कि एक समय में दो पदों पर नहीं रहा जा सकता।
इससे पहले बुधवार को भाजपा के तीन मंत्री अपने पदों से इस्तीफे दे चुके हैं। इनमें से दो को विधानसभा में अश्लील वीडियो देखते पकड़ा गया था।
आचार्या ने कहा कि उनके कर्नाटक के महाधिवक्ता व जयललिता मामले में एसपीपी के रूप में एकसाथ काम करने में कोई कानूनी रुकावट नहीं थी।
वैसे उन्होंने कहा कि उन्होंने एसपीपी बने रहने को प्राथमिकता दी क्योंकि कर्नाटक के मुख्य न्यायाधीश ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उनकी नियुक्ति की थी।
राज्यपाल एचआर भारद्वाज ने बुधवार रात उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया। भाजपा व सरकार ने आचार्या के दावों पर प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया।
जयललिता के खिलाफ मामला है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के तौर पर अपने पहले कार्यकाल में 60 करोड़ रुपये से अधिक की आय से अधिक सम्पत्ति अर्जित की। सर्वोच्च न्यायालय ने निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए मामले को बेंगलुरू उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया है।
आचार्या ने कहा कि उनके महाधिवक्ता का पद छोड़ने के निर्णय का बेंगलुरू के एक शैक्षिक ट्रस्ट में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है। आचार्या इस ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं।
हाल ही में उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल हुई थी। जिसमें आचार्या के एक ही समय में दो पदों पर रहने पर सवाल उठाया गया था।
आचार्य पर पद छोड़ने का दबाव नहीं डाला: गडकरी
भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने आज इस बात से इनकार किया कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की संपत्ति से जुड़े मामले की जांच में अड़चन डालने के लिए कर्नाटक के पूर्व महाधिवक्ता बी वी आचार्य पर विशेष लोक अभियोजक पद से इस्तीफा देने का उनकी पार्टी की ओर से दबाव बनाया गया।
गडकरी ने यहां संवाददाताओं के सवालों के जवाब में कहा कि न न तो भाजपा आलाकमान और न न ही राज्य सरकार की ओर से आचार्य पर ऐसा कोई दबाव डाला गया।
उधर गडकरी और कर्नाटक के मुख्यमंत्री डी वी सदानंद गौड़ा के इन दावों के विपरीत आचार्य ने कहा कि उन्होंने महाधिवक्ता पद से तब इस्तीफा दिया जब सरकार ने उनपर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के खिलाफ सम्पत्ति मामले में विशेष लोक अभियोजक पद से इस्तीफा देने का दबाव बनाया।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने भी आर्चाय के आरोप को खारिज करते हुए सफाई दी, सरकार ने आचार्य पर इस्तीफा देने का कोई दबाव नहीं डाला। सरकार ने आचार्य से केवल यह कहा था कि वह महाअधिवक्ता या विशेष लोक अभियोजक में से एक पद छोड़ दें, क्योंकि आचार्य के इन दोनों पदों पर रहने के खिलाफ अदालत में जनहित याचिका दायर की गई है।
उन्होंने कहा, सरकार किसी फजीहत से बचना चाहती थी इसलिए मैंने आचार्य से कहा कि वह इन दोनों पदों में से एक को चुन लें। महाधिवक्ता पद से इस्तीफा देने के बाद आचार्य ने कहा, मुझे बताया गया कि भाजपा हाईकमान का भी यही मत है कि मुझे विशेष लोक अभियोजक पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। हालांकि मैं इसके लिए तैयार नहीं था क्योंकि यह दायित्व मुझे कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने सौंपा था।
(एजेंसी)