नई दिल्ली : सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह के वकील पुनीत बाली ने शुक्रवार को उम्र विवाद के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि सेना प्रमुख का सम्मान फिर से बहाल हुआ है। हालांकि उन्होंने इस फैसले के बाद इसे दोनों पक्षों की जीत करार दिया है। जनरल सिंह को अपनी याचिका वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
न्यायालय से निकलने के बाद सेना प्रमुख के वकील पुनीत बाली ने संवाददाताओं से कहा कि यह दोनों पक्षों की विजय थी क्योंकि मामले का स्वीकार्य ढंग से समाधान निकाल लिया गया। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि हमारी याचिका सेवा के विस्तार (जनरल सिंह की) के लिए नहीं थी बल्कि यह जनरल के सम्मान और ईमानदारी का मामला था। दस मिनट तक कार्यवाही स्थगित करने से पहले न्यायालय ने कहा कि जनरल सिंह के पास विकल्प है कि या तो वह अपनी याचिका वापस ले लें अथवा पीठ उनकी दलीलें सुनने के बाद निर्णय देगी।
शीर्ष न्यायालय ने जनरल सिंह से कहा कि वह अपनी पूर्व प्रतिबद्धता को अस्वीकार नहीं कर सकते। उन्होंने पूर्व में प्रतिबद्धता जताई थी कि वह अपनी जन्मतिथि को 10 मई 1950 मानने के सरकार के फैसले को स्वीकार करेंगे। न्यायालय ने उनके पूर्वाग्रह और विकृत करने के दावों को खारिज कर दिया। तीन घंटे तक चली कार्यवाही में शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्र को 38 वर्षों तक दी गई सेवाओं के लिए उनकी सराहना की। उसने कहा कि उसे जनरल सिंह जैसे प्रतिभा संपन्न अधिकारी पर गर्व है और वह यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वह काम करना जारी रखें तथा 13 लाख सैनिकों वाली सेना के प्रमुख के रूप में नेतृत्व करते रहें।
न्यायालय ने कहा उनकी जन्मतिथि के बारे में सरकार का निर्णय प्रभावी रहेगा। साथ ही उसने सेवा रिकार्ड में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 दर्ज है। इसके चलते जनरल सिंह को अब इस साल 31 मई को सेवानिवृत्त होना पड़ेगा। सेना प्रमुख का कहना रहा कि उन्होंने अपने सम्मान और ईमानदारी को बचाने के लिए यह कदम उठाया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार को आप पर पूरा भरोसा है। यह जन्मतिथि निर्धारित करने का मामला नहीं है। इससे आपको क्या मदद मिलेगी। पीठ ने कहा कि यह सेवा रिकार्ड में जन्मतिथि की पहचान के लिए है। जब तक यह विकृत या भीषण रूप से गलत न हो, इस अदालत द्वारा याचिका पर विचार की कोई गुंजाइश नहीं है।
(एजेंसी)