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लखनऊ : उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने मायावती सरकार के कार्यकाल में बनाए गये स्मारकों में इस्तेमाल पत्थरों की आपूर्ति में करीब 1400 करोड़ रुपए का घोटाला संबंधी रिपोर्ट सोमवार को सरकार को सौंप दी।
लोकायुक्त मेहरोत्रा ने बताया कि उन्होंने रपट में पिछली सरकार के प्रभावशाली मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी तथा बाबू सिंह कुशवाहा समेत 199 लोगों को आरोपी बनाते हुए मामले की सीबीआई अथवा किसी स्वतंत्र स्पेशल टास्क फोर्स से जांच कराने की संस्तुति की है।
उन्होंने बताया कि जांच में 14 अरब 10 करोड़ 50 लाख 63 हजार 200 रुपए का घोटाला उजागर हुआ है, जो पत्थर लगवाने के लिये आवंटित कुल बजट का करीब 34 प्रतिशत है।
लोकायुक्त ने बताया कि उन्होंने मायावती सरकार में लोक निर्माण मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी, परिवार कल्याण मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा, दो पूर्व विधायकों शारदा प्रसाद तथा अनिल मौर्या, मौजूदा विधायक रमेश चन्द दुबे, निर्माण निगम के 57 तथा लखनऊ विकास प्राधिकरण के पांच इंजीनियरों, पांच खनन अधिकारियों, 60 पत्थर आपूर्तिकर्ता फर्मो, निर्माण निगम के 37 लेखाकारों और पत्थर खरीद के लिये बनाए गये सलाहकार समूहों (कानसोर्टियम) के 20 नेताओं समेत 199 लोगों को आरोपी बनाया गया है।
लोकायुक्त मेहरोत्रा ने बताया कि उन्हें जांच में पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिले हैं। उन्होंने बताया कि जांच के दौरान पेश गवाहों ने उन्हें बताया कि मायावती ने पत्थरों की आपूर्ति सम्बन्धी कोई आदेश नहीं दिया था।
मेहरोत्रा ने बताया कि उन्होंने इस 14 अरब के घोटाले की रकम का 30-30 प्रतिशत हिस्सा सिद्दीकी तथा कुशवाहा से, राजकीय निर्माण निगम के तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक सीपी सिंह तथा पत्थरों के दाम तय करने वाले इंजीनियरों से 15-15 फीसद, तत्कालीन संयुक्त निदेशक (खनन) एसए फारूकी तथा आरोपी लेखाकारों से पांच-पांच प्रतिशत वसूलने की सिफारिश भी की है।
उन्होंने कुशवाहा, सिद्दीकी, सिंह, फारूकी तथा दाम तय करने वाले 15 इंजीनियरों के खिलाफ सीधे तौर पर मुकदमा दर्ज कराने तथा बाकी की सम्पत्ति की जांच करके भ्रष्टाचार पाए जाने पर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून तथा भारतीय दण्ड विधान की धारा 409 के तहत कार्रवाई करने की भी संस्तुति की है।
लोकायुक्त ने बताया कि इस घपले के तार आवास विभाग, लोकनिर्माण विभाग, संस्कृति कार्य तथा पर्यटन विभाग से जुड़े पाये गये और जिस वक्त यह घोटाला हुआ उस समय सिद्दीकी राजकीय निर्माण निगम के प्रभारी थे। (एजेंसी)