मुंबई। 18 अगस्त 1936 को पाकिस्तान के झेलम जिले में जन्मे संपूर्ण सिंह उर्फ गुलजार गुरूवार को जीवन के 75 बसंत जरूर देख लिए पर दिल से जवां और शायरी की दीवानगी उन्हें आज भी जिंदादिल इंसान बनाता है.
मुशायरों और महफिलों से मिली शोहरत तथा कामयाबी ने कभी मोटर मैकेनिक का काम करने वाले गुलजार को पिछले चार दशक में फिल्म जगत का एक अजीम शायर और गीतकार बना दिया है. सन् 1947 मे देश के विभाजन के बाद उनका परिवार अमृतसर आ गया. इसके बाद अपने सपनो को नया रूप देने के लिए गुलजार मुंबई आ गए.
इस स्वप्न नगरी में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने मोटर गैराज मे एक मैकेनिक की नौकरी भी की. बचपन के दिनों से ही शेर-ओ-शायरी का शौक रखने वाले गुलजार अंताक्षरी के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेते थे.
शुरू से उन्हें गीत संगीत के प्रति खासी रुचि रही है. छोटी उम्र से ही वह रवि शंकर और अली अकबर खान के कार्यक्रम सुनने के लिए जाया करते थे.
बॉलीवुड में गुलजार साहब शब्दों के बाजीगर के रूप में जाने जाते हैं. जिंदगी के हर फलसफे और हर रंग पर गीत लिखने वाले गुलजार के गीतों में हर आदमी स्वंय को ऐसे समाहित महसूस करता है जैसे कि वह गीत उसी के लिए लिखा गया हो.
गुवजार साहब ने अपने सिने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1961 मे विमल राय के सहायक के रूप में की. इससे पहले वो कवि के रूप में शुरूआर की थी. उन्होनें हृकेश मुखर्जी और हेमन्त कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया.
गुलजार ने कोशिश, परिचय, अचानक, खूशबू, आंधी, मौसम, किनारा, किताब, मीरा, नमकीन, अंगूर, इजाजत, लिबास, लेकिन, माचिस और हू तू तू जैसी कई फिल्में निर्देर्शित भी किया. निर्देशन के अलावा गुलजार ने कई फिल्मों की पटकथा और संवाद भी लिखे.
‘आने वाला पल जाने वाला है’- गोलमाल, ‘तुमसे नाराज नहीं जिंदगी’- मासूम, ‘यारा सिली सिली बिरह की रात का जलना’- लेकिन, ‘चल छइया छइया’- दिल से और ‘कजरारे कजरारे तेरे काले काले नैना’- बंटी और बबली और दिल तो बच्चा है जी, इश्किया फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.
अब तक उन्हें दस बार फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. गुलजार को सबसे पहले वर्ष 1977 मे प्रदर्शित फिल्म घरौदा के दो दीवाने शहर मे, गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था.
गुलजार को तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया है. उनके कैरियर में एक गौरवपूर्ण नया अध्याय तब जुड गया जब वर्ष 2009 में फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में उनके गीत ‘जय हो’ को आस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया.
सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए साल 2004 में उन्हे भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया गया.