समलैंगिकता एक `बुरी लत` और मानव अधिकार का हनन है: बाबा रामदेव

योग गुरु बाबा रामदेव ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही बताते हुए कहा कि समलैंगिकता एक बुरी लत है और शीर्ष कोर्ट के फैसले का मैं स्वागत करता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि समलैंगिकता मानव अधिकार का हनन है।

ज़ी मीडिया ब्‍यूरो
नई दिल्‍ली : योग गुरु बाबा रामदेव ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही बताते हुए कहा कि समलैंगिकता एक बुरी लत है और शीर्ष कोर्ट के फैसले का मैं स्वागत करता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि समलैंगिकता मानव अधिकार का हनन है।
गौर हो कि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए समलैंगिक संबंधों को उम्रकैद तक की सजा वाला जुर्म बनाने वाले दंड प्रावधान की संवैधानिक वैधता को आज बहाल रखा। शीर्ष कोर्ट की एक पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2009 में दिए गए उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें वयस्कों के बीच पारस्परिक सहमति से बनने वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था।
बाबा रामदेव ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में सवाल किया कि केजरीवाल सरकार बनाने से पीछे हटकर क्या साबित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस समर्थन देने को तैयार है तो (आप) को सरकार बनानी चाहिए। यदि वह सरकार बनाने से पीछे हटते हैं तो वह अपने संवैधानिक दायित्व से भाग रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि केजरीवाल सरकार नहीं बनाते हैं तो उनके भीतर किसी न किसी चीज का डर है। वह जनता से किये अपने वादे को पूरा नहीं करना चाहते। स्वामी रामदेव ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि कांग्रेस किसी भी शर्त पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ सरकार नहीं बनाएगी। यदि कांग्रेस आप को समर्थन देने को तैयार है तो केजरीवाल को तत्काल सरकार बना लेनी चाहिए।
एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए योगगुरु ने समलैंगिक (गे) समुदाय को अपने आश्रम में आने का आमंत्रण दिया और दावे के साथ कहा कि वे उनकी समलैंगिकता को सही कर सकते हैं। रामदेव ने यह भी कहा कि समलैंगिकता जेनेटिक नहीं है। यदि हमारे माता पिता समलैंगिक होते तो हमारा जन्‍म नहीं हुआ होता। इसलिए यह अप्राकृतिक है। उन्‍होंने इस बात पर जोर दिया कि समलैंगिकता एक बुरी आदत है। उन्‍होंने कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि समलैंगिकता को अपराध घोषित करने के साथ ही कोर्ट ने लाखों भारतीयों की भावनाओं का सम्‍मान किया है।
उधर, शीर्ष कोर्ट की पीठ ने विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों की उन अपीलों को स्वीकार कर लिया जिनमें उच्च न्यायालय के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि समलैंगिक संबंध देश के सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ हैं। न्यायालय ने हालांकि यह कहते हुए विवादास्पद मुद्दे पर किसी फैसले के लिए गेंद संसद के पाले में डाल दी कि मुद्दे पर चर्चा और निर्णय करना विधायिका पर निर्भर करता है।

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