जब बापू ने 1942 में फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को लिखा था पत्र

दुनिया में शांति एवं अहिंसा का संदेश देने वाले महात्मा गांधी ने जुलाई 1942 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट को पत्र लिखकर कहा था कि वह सभी तरह के युद्ध से घृणा करते हैं और ब्रिटेन को भारत से तत्काल अपना शासन हटा लेना चाहिए।

नई दिल्ली : दुनिया में शांति एवं अहिंसा का संदेश देने वाले महात्मा गांधी ने जुलाई 1942 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट को पत्र लिखकर कहा था कि वह सभी तरह के युद्ध से घृणा करते हैं और ब्रिटेन को भारत से तत्काल अपना शासन हटा लेना चाहिए।

महात्मा गांधी ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक जुलाई 1942 को सेवाग्राम, वर्धा से तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन डी रूजवेल्ट को लिखे पत्र में कहा था, ‘मैं दो बार आपके महान देश जाने से वंचित रह गया। मेरे कई देशवासियों ने अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की और अभी भी वहां शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मैं यह कहना चाहता हूं कि मैं आपके देश से जुड़ा हुआ हूं।’

उन्होंने लिखा, ‘भारत पर ब्रिटेन के शासन को बेहद नापसंद करने के बावजूद वहां मेरे कई मित्र हैं। मैंने वहां कानून की शिक्षा प्राप्त की है। मेरे मन में उनके प्रति अच्छी ही भावनाएं हैं। ऐसे में ब्रिटेन को भारत से तत्काल अपना शासन समाप्त कर देना चाहिए।’

बापू ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट को लिखा कि मेरे निजी विचार स्पष्ट हैं। ‘मैं हर तरह के युद्ध से घृणा करता हूं। विदेशी शासन के तहत हम इस युद्ध में (द्वितीय विश्वयुद्ध) में सिवाय एक गुलाम के और कोई प्रभावी योगदान नहीं कर सकते हैं।’ पत्र में महात्मा गांधी ने लिखा कि क्रिप्स मिशन में ब्रिटिश नीति का पर्दाफाश हो गया और लगभग सभी दलों ने इसे खारिज कर दिया जो हमारी आंखे खोलने वाला है।   

अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट को लिखे पत्र में बापू ने कहा कि मित्र राष्ट्रों (अमेरिका, ब्रिटेन सहित विभिन्न राष्ट्र) के घोषणा पत्र में कहा गया है कि वे दुनिया को व्यक्तियों और लोकतंत्र के लिये सुरक्षित बनाने को लड़ रहे हैं। उन्होंने लिखा कि मैंने सुझाव दिया है कि मित्र राष्ट्र की सेना भारत में आंतरिक स्थिति के लिए नहीं रखी जाए। भारत में स्वतंत्र सरकार भारत के लोगों द्वारा बनायी जाए और इसमें बाहर से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष हस्तक्षेप न हो। बापू ने लिखा, ‘आप मेरे पत्र को दखलंदाजी नहीं मानेंगे बल्कि एक मित्र और शुभचिंतक की ओर से पहल मानेंगे।’

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