वॉशिंगटन : सौर पैनलों द्वारा संचालित विलवणीकरण प्रौद्योगिकी से भारत में जल की कमी से जूझ रहे गांवों की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वच्छ एवं पीने योग्य पानी उपलब्ध कराया जा सकता है।
भारत के 60 प्रतिशत हिस्से में खारे पानी का भंडार है और इनमें से अधिकतर इलाके में कोई इलेक्ट्रिक ग्रिड नहीं है जिससे पारंपरिक रिवर्स-ऑसमोसिस (आरओ) विलवणीकरण संयंत्र चल सकें।
मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ता एमोज विंटर और नताशा राइट ने अपने अध्ययन के आधार पर कहा है कि इलेक्ट्रोडायलिसिस नाम की सौर उर्जा से चलने वाली एक अलग तरह की विलवणीकरण तकनीक से एक पारंपरिक गांव की जरूरतों के लिए स्वच्छ एवं पीने योग्य पानी उपलब्ध कराया जा सकता है।
भारत में हफ्तों तक अनुसंधान करने और कई स्थापित तकनीकों का जायजा लेने के बाद विंटर ने कहा, जब हम सभी चीजों को साथ रखकर देखते हैं तो पूरी तरह इलेक्ट्रोडायलिसिस की तरफ ध्यान जाता है। वहीं नताशा ने कहा कि अगर पानी तकनीकी रूप से पीने के लिहाज से स्वच्छ भी हो तो भी समस्या का हल नहीं होता क्योंकि उसके नमकीन स्वाद की वजह से लोग उसे पीने से इनकार कर देते हैं।
लेकिन इलेक्ट्रोडायलिसिस से पानी का स्वाद अच्छा और पीने योग्य हो जाता है। विंटर ने कहा कि इस तकनीक के तहत विपरीत आवेश वाले दो इलेक्ट्रोड के बीच पानी की एक धारा निकाली जाती है। चूंकि पानी में घुले नमक में धनायन और रिणायन होते हैं, दोनों इलेक्टोड उन आयनों को पानी से बाहर खींच लेते हैं जिससे बहाव के मध्य में ताजा पानी रह जाता है।
साथ ही इलेक्ट्रोडायलिसिस प्रणाली से कहीं ज्यादा प्रतिशत में स्वच्छ पानी मिलता है जोकि रिवर्स ऑसमोसिस प्रणाली के 40 से 60 प्रतिशत की तुलना में 90 प्रतिशत से भी अधिक है। इस तरह जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां यह बहुत लाभप्रद होगा। शोधकर्ताओं ने साथ ही कहा कि इस तकनीक का इस्तेमाल आपदा राहत और दूरदराज के इलाकों में सैन्य उपयोग के लिहाज से भी किया जा सकता है।