भारत की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रस्ताव भड़काऊ : एचएएफ
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भारत की धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रस्ताव भड़काऊ : एचएएफ

अमेरिका में एक प्रभावशाली हिंदू संगठन ने भारत की धार्मिक स्वतंत्रता के रिकॉर्ड से जुड़ा एक प्रस्ताव अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में लाने वाले सांसदों के एक समूह की निंदा करते हुए कहा है कि यह प्रस्ताव सही नहीं है।

वाशिंगटन : अमेरिका में एक प्रभावशाली हिंदू संगठन ने भारत की धार्मिक स्वतंत्रता के रिकॉर्ड से जुड़ा एक प्रस्ताव अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में लाने वाले सांसदों के एक समूह की निंदा करते हुए कहा है कि यह प्रस्ताव सही नहीं है और इसका उद्देश्य लोगों को उकसाना है।
वाशिंगटन स्थित हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने आरोप लगाया कि सोमवार को डेमोकेट्रिक पार्टी के कांग्रेस सदस्य कीथ एलिसन और रिपब्लिकन पार्टी के जोए पिट्स द्वारा लाया गया प्रस्ताव हाल ही में हुए जेहादी आतंकी हमलों को ‘नजरअंदाज’ करता है और यह भारत के इतिहास को धार्मिक दंगों के संदर्भ से जोड़ने में विफल रहा है।
एचएएफ ने आरोप लगाया, ‘प्रस्ताव में लिखी बातें मुकदमा चलाने के लिए अल्पसंख्यकों के एक अधिकार संपन्न न्यायेत्तर निकाय के गठन की मांग भड़काऊ तरीके से की गई है।’ इस प्रस्ताव में विदेश मंत्रालय से अपील की गई कि वह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका आने के लिए वीजा देने से इंकार करने की नीति पर कायम रहे। यह प्रस्ताव सदन के एशिया व प्रशांत संबंधी विदेश मामलों की उपसमिति को उचित कार्रवाई के लिए भेज दिया गया है।
पिट्स की अत्यधिक आलोचना करते हुए एचएएफ ने आरोप लगाया कि रिपब्लिकन सांसद उन लोगों में से एक थे जिन्हे गुलाम नबी फाई की ओर से अत्यधिक धन उपहार में मिला करता था। गुलाम नबी पाकिस्तान से धन लेकर कश्मीर के एजेंडे को प्रोत्साहित करने के आरोप में इस समय दो साल की जेल काट रहा है। एचएएफ ने दावा किया, ‘हालांकि इस साल का प्रस्ताव हिंदू राष्ट्रवाद की निंदा करता है और पिछले दशक में हुए दंगों की याद करता है लेकिन यह इस बात का जिक्र करने में विफल रहा है कि वर्ष 2012 के बाद से भारत में जो हमले हुए हैं, उनमें से 80 प्रतिशत हमले इंडियन मुजाहिद्दीन ने किए हैं। शेष 20 प्रतिशत हमले माओवादी आतंकियों ने किए हैं।’
अमेरिका में हिंदुओं के इस प्रमुख संगठन ने कहा, ‘इसके अलावा, यह भारत के एक टेबलॉयड (छोटे अखबार) में छपे आरोपों को सबूत की तरह इस्तेमाल करके भारत के प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार नरेंद्र मोदी की विशेष तौर पर निंदा करता है।’ एचएएफ के सरकार संपर्क विभाग के सह निदेशक जे कंसारा ने कहा, ‘आतंकवाद और धार्मिक हिंसा आज भारत में गंभीर मुद्दे हैं और सभी भारतीय अमेरिकी इस उम्मीद में एकसाथ खड़े हैं कि देश इस अभिशाप से मुक्त हो।’
कंसारा ने आरोप लगाया कि पूरी तरह गलत प्रस्ताव में दशकों पुराने जिन मुद्दों को उठाया गया है उनमें भारतीय अदालतें फैसले सुना चुकी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ये मुद्दे इतिहास को तोड़ते मरोड़ते हैं, आगामी चुनावों में कोई एक पक्ष लेकर राजनीतिक प्रक्रिया को दूषित करते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये मुद्दे भारत में आतंक के असल पीड़ितों के साथ न्याय नहीं करते। कंसारा ने
1992 में भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाना अस्वीकार्य बताते हुए यह भी कहा कि प्रस्ताव में इस बात पर ध्यान दिए बिना बाबरी विध्वंस की घटना का लगातार स्मरण किया गया है कि एक भारतीय (इलाहाबाद) उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि पुरातत्वीय साक्ष्य वहां पर भगवान राम का मंदिर होने की बात की पुष्टि करते हैं। बाद में इस मंदिर को कुख्यात इस्लामी घुसपैठिए बाबर ने नष्ट करके मस्जिद बनवाई थी।
एचएएफ ने कहा कि यह प्रस्ताव इस बात पर ध्यान नहीं देता कि उच्चतम न्यायालय के एक विशेष जांच दल ने गुजरात में हुए उन भयावह दंगों में नरेंद्र मोदी को सुस्पष्ट तरीके से दोषमुक्त किया था, जो ट्रेन में हिंदू श्रद्धालुओं वाले डिब्बों में आग लगाए जाने के बाद हुए थे।
संगठन के अनुसार, यह प्रस्ताव अक्तूबर 2008 को पूर्वोत्तर भारत में दिवाली के जश्न को लक्षित कर किए गए बम धमाकों की भी उपेक्षा करता है, जो कथित तौर पर दो ईसाई आतंकी संगठनों द्वारा किए गए थे। ये संगठन थे- नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम। एचएएफ के वरिष्ठ निदेशक शीतल शाह ने कहा कि यह प्रस्ताव सिर्फ भड़काने और उकसाने का काम करता है, जिससे कोई कानूनी नतीजा नहीं निकलता। (एजेंसी)

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